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जयंती विशेष : भगत सिंह के दो आखिरी संदेश……..

फांसी से महज दो घण्टे पहले जब भगत सिंह के वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने सेंट्रल जेल लाहौर पहुंचे तो वहां उन्होंने 5 फुट 10 इंच के नौजवान को, शेर की तरह उस जेल की कोठरी में चहल कदमी करते हुए देखा।
मेहता साहब को देखते ही भगत सिंह ने पूछा, ” आप मेरी किताब लाये, ‘रेवोल्यूशनरी लेनिन’ जो मैंने आपको पिछली बार लाने को कहा था?”
मेहता ने जवाब दिया, “हां, लाया हूँ ।” और उन्होंने वो किताब उन्हें पकड़ा दी। किताब मिलते ही भगत सिंह ने उसे तुरंत पढ़ना शुरू कर दिया। भगत सिंह ने बिना किताब से नजर हटाये मेहता से कहा, ” आप नेहरू और बोस को मेरी तरफ से शुर्किया कहना क्योंकि उन्होंने मेरे केस में विशेष रुचि दिखाई।”
मेहता कहते है,”ठीक है, कह दूंगा। पर मैं यहां वो संदेश जानने आया हूँ जो आप मरने से पहले देश के युवाओं को देना चाहते है और मैं उन्हें वो संदेश आपके माध्यम से पहुंचा सकूँ।”
भगत सिंह ने किताब के एक पन्ने को उंगलियों से सहलाते हुए ,आँखों को किताब पर ही केंद्रित करते हुए कहा, ” बिल्कुल, मेरे मात्र दो सन्देश हैं उनके लिए पहला साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और दूसरा इंक़लाब जिंदाबाद।”

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