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‘भगत सिंह वो, जिसने यूथ मूवमेंट खड़ा किया’

तेइस मार्च, शहीद दिवस पर ‘शहीद भगत सिंह और युवा’ विषय पर ‘दि संडे पोस्ट’ के सहयोगी प्रकाशन ‘पाखी’ की डिजिटल एडिटर शोभा अक्षर ने शहीद भगत सिंह के भतीजे एवं शहीद भगत सिंह सेंटिनरी फाउंडेशन के अध्यक्ष जगमोहन सिंह, देश में सबसे लंबी अवधि तक लगने वाले शहीद मेला बेवर के आयोजक राज त्रिपाठी और लेखिका एवं साहित्य अध्येता अनीता मिश्रा से खास बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के कुछ अंशः

शोभा अक्षर : देश के अधिकतर युवाओं में महात्मा गांधी और भगत सिंह को लेकर एक द्वंद्व हमेशा देखने को मिलता है, जहां वे दोनों के बीच एक तुलनात्मक शीट तैयार करते रहते हैं। यह द्वंद्व दोनों के विचारों के समझने के बजाय कौन ज्यादा महान और कौन कम महान है, इस पर टिप्पणी अधिक की जाती है। ऐसे में भगत सिंह सिर्फ उग्रता के प्रतीक बन कर ही रह जाते हैं। देश के बलिदानियों को लेकर यह भटकाव आखिर क्यों हैं?

राज त्रिपाठी : देखिये, भगत सिंह युवाओं के छाती पर बैठें (टी शर्ट), कंधे पर रहें (ड्रेस कोड, टैटू आदि) या सर के ऊपर बैठें (हैट), लेकिन कोई ऐसा नहीं चाहता कि भगत सिंह युवाओं के दिमाग के अंदर घुस जाएं, विशेषकर जम्हूरियत के लोग। वे ऐसा इसलिए नहीं चाहते क्योंकि इससे उनकी राजनीति जुड़ी हुई है। भगत सिंह के विचार यदि युवाओं के जेहन में जाएंगे तो वे तर्क करेंगे, इससे उन्हें समस्या होगी।

युवाओं ने जब गांधी जी को देखा, पढ़ा तो वह बड़े सॉफ्ट हो जाते हैं, लेकिन वहीं भगत सिंह जी को देख और पढ़कर उग्र होने वाली प्रवृत्ति क्यों हो जाती है, इस पर बात होनी चाहिए। हाल ही में मैंने एक चित्र देखा। भगत सिंह, हाथ में पिस्तौल लिए हुए हैं, बल्कि भगत सिंह स्पष्ट कहते हैं कि ‘कोई भी क्रांति बम और पिस्तौल से नहीं हो सकती।’ वो कहते हैं कि ‘क्रांति की तलवार विचारों की शान पर तेज होती है।’ उन्होंने उग्रता और हिंसा की तो बात ही नहीं लिखी कभी। देखिये, व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक दीवार खड़ी की गई युवाओं के बीच कि गांधी या भगत सिंह। हिंसा या अहिंसा! बल्कि यह गलत है। 23 वर्ष 5 माह और 26 दिन का युवा, देश की हर समस्या पर बात करता है, लिखता है। भगत सिंह, युवा, विद्यार्थी, अछूत, राजनीति, नास्तिकता आदि सब पर तार्किकता से बात करते हैं। मैं आपको उदाहरण देता हूं, गाड़ियों के पीछे हनुमान जी की तस्वीरें देखीं, उसमें वे खूब उग्र नजर आते हैं, राम जी जो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, वे लगभग हर तस्वीर में प्रत्यंचा ताने दिखाए जाते हैं, बल्कि दोनों का असल व्यक्तित्व बहुत ही उदार और गहरा है।

शोभा अक्षर : महात्मा गांधी को समझने के लिए अथाह साहित्य है, खुद महात्मा गांधी द्वारा जो लिखा गया वह सिलेबस में हैं, उस तक पहुंचना बड़ा आसान है। लेकिन असल भगत सिंह को जानने के लिए, उनके विचारों को समझने के लिए उनके लिखे और उन पर लिखे को युवाओं तक क्यों नहीं आसानी से पहुंचाया गया?

राज त्रिपाठीः ये बात बिल्कुल ठीक है कि भगत सिंह तक पहुंचना मुश्किल है। लेकिन इंटरनेट पर उनके कई लेख मौजूद हैं, युवा पढ़ सकते हैं, युवा चाहें तो! मैं उदाहरण देता हूं, 16 मई 1925 को उन्होंने ‘मतवाला’ साप्ताहिक में एक लेख लिखा, जिसमें वे युवा पर लिखते हैं कि ‘मानव जीवन का वसंत काल है। (युवा) …वो (युवा) रावण के अहंकार की तरह निर्भीक है। देश के लिए रक्त बहाने की बात होगी तो युवा की ओर देखना होगा। बलिदान चाहते हैं तो युवा की तरफ देखना होगा। वह तोप के मुंह पर भी बैठ कर हंसता है। सच्चा युवक बिना झिझक के मृत्यु का आलिंगन कर लेता है।’ विद्यार्थियों के लिए भगत सिंह का एक विशेष लेख है। यह उन्होंने तब लिखा था जब पंजाब में विद्यार्थियों के लिए घोषणा की जाती है कि उन्हें यह प्रमाण पत्र देना होगा, वे सिर्फ पढ़ेंगे राजनीति में हिस्सा नहीं लेंगे। जुलाई, 1928 में वे इस पर लिखते हैं कि ‘इस वक्त पता चला है कि पढ़ने वाले लोग, राजनीति में हिस्सा न लें। यह पंजाब की अनोखी राय है।’ उनका मानना था कि यदि पढ़ने वाले विद्यार्थी जिनको भविष्य में देश की राजनीति का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिस्सा लेना है, वही राजनीति नहीं करेंगे, तो कौन करेगा! वो कहते हैं कि नौजवानों को अक्ल का अंधा बनाया जा रहा है, जबकि उन्हें ही देश की बागडोर संभालनी है।

शोभा अक्षर : मैम, भगत सिंह असेंबली हॉल में बम फेंकने वाले ही नहीं, बल्कि अपने तार्किक लेखन के साथ बौद्धिकता के प्रतीक थे, यह युवाओं तक पहुंचाने में हम कहां पीछे रह गए? अभाव कहां रह गया?

अनीता मिश्राः मैं कहती हूं कि जो पॉलिटिकल पार्टियां, भगत सिंह की तस्वीर का प्रयोग अपने राजनीतिक हित के लिए करती हैं, वे क्यों नहीं, ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ को बुकलेट की तरह युवाओं में बंटवाती है? इस किताब को कोर्स में शामिल क्यों नहीं किया गया? क्योंकि भगत सिंह सिर्फ सुधार की बात नहीं करते, बल्कि बदलाव की बात करते हैं। उनके क्रांति का रास्ता विचारों से आता है। युवा, भगत सिंह को समझ लेंगे तो सवाल पूछने लगेंगे और कुछ भी अतार्किक होगा तो वे सत्ता को बदलने की बात उठाएंगे। वे धर्म के नाम पर हो रही राजनीति को छोड़कर, समाज में व्याप्त असमानताओं पर बात करेंगे। भगत सिंह, विचारों के इतने मजबूत हैं कि सत्ता के लोग बस उनकी तस्वीर पर फूल-माला डालकर उनसे दूरी बना लेना चाहते हैं। वे इंकलाब जिंदाबाद बोलकर, इसके सही मायने को नजरअंदाज कर देते हैं।

शोभा अक्षर : सर, भगत सिंह पर अधिकतर लेख और खबर इस मुद्दे पर मिलते हैं कि महात्मा गांधी चाहते तो भगत सिंह को बचा सकते थे। 25 मार्च 1931 को ‘खूनी हत्यारा, गांधी मुर्दाबाद’ के नारे लगे, आदि। तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने के बजाय, भगत सिंह से जुड़ा वास्तविक इतिहास अभी तक क्यों नहीं पहुंच पा रहा है? क्योंकि भागों वाला भगत से शहीद-ए-आजम भगत सिंह बनने तक कि यात्रा तो क्रांतिकारी विचारों की यात्रा है।

जगमोहन सिंहः देखिये, जो थोड़े-बहुत सीरियस विद्यार्थी हैं वे अध्ययन करते हैं। कई बार वो भगत सिंह जी को जिस नजरिये से तलाशते हैं। मुझे लगता है वहां मैं भी खुद को स्किप करता हुआ मानता हूं। लेकिन यह भी अफसोसजनक बात है कि जो कार्य सरकारों को स्वयं करना था, मसलन उनके साहित्य को सही ढंग से सबके समक्ष रखने और संकलित करने का कार्य, वह उनके परिवारों को करना पड़ रहा है, मुझे करना पड़ रहा है। भगत सिंह को समझना है तो 1924 में हुए दंगों के भगत सिंह को पढ़ना होगा। जहां सुभाष चंद्र बोस लिखते हैं कि ‘भगत सिंह वो जिसने यूथ मूवमेंट खड़ी किया।’ उनके विचारों में इतनी ताकत थी कि पूरे देश के लगभग हर कोने में विद्यार्थियों और युवाओं की सभाएं बनीं। उनकी विचारधारा वैज्ञानिक आधार पर केंद्रित थी। उनका मानना था कि युवाओं को धार्मिक उन्माद और जातिवाद से देश को मुक्त करना होगा। लेकिन वे ऐसा कब कर सकेंगे, जब वह स्वयं इससे मुक्त होंगे।

शोभा अक्षर : भगत सिंह ने कहा है कि ‘यथार्थवादी होने का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति को पुरानी मान्यताओं की सच्चाई को चुनौती देनी होगी। अगर विश्वास तर्क के हमले का सामना नहीं कर सकता, तो वह ढह जाता है।’ यह व्यक्तित्व युवाओं तक कैसे पहुंचेगा?

जगमोहन सिंहः भगत सिंह कहते थे कि हर चीज का कारण ढूंढ़ों। अंग्रेज को हम क्यों हटाना चाहते हैं, इसके बारे में पहले सोचो। हम क्यों झगड़ा कर रहे हैं, इस पर विचार करो। क्योंकि उन्होंने बराबरी की। उन्होंने सोशलिज्म की बात की। उनका मानना था कि अगर किसी से सीखना है तो उसके जीवन और लेखन दोनों से सीखो। यदि लेखन में कुछ छूट जाता है तो उसने जीवन कैसे जिया, उससे बहुत कुछ जानने को मिलता है। वो जब लेनिन के बारे में लिखते हैं, तो बार-बार उपर्युक्त बात पर जोर देते हैं। युवाओं को अगर कुछ सीखना है तो उन्हें भगत सिंह के यूथ मूवमेंट से सबसे पहले सीखना होगा। भगत सिंह ने लिखा कि संपूर्ण व्यक्ति बनो। 17 वर्ष की उम्र में संपूर्ण व्यक्ति को वो परिभाषित भी करते हैं। जैसा सुभाषचंद्र बोस जी लिखते हैं कि ‘संपूर्ण व्यक्ति बनना यानी अपने इतिहास को गहराई से पढ़ना। उसे समझना। उससे सीखना क्योंकि ऐसा करके वह समझ सकेगा कि वह कहां खड़ा है।’ भगत सिंह कहते हैं कि ‘संपूर्ण व्यक्ति बनकर ही युवा तय कर सकेगा कि भविष्य में उसे क्या करना है। आज जो हो रहा है उसका सही आकलन वह तभी कर सकेगा।’

शोभा अक्षर : सर, राजनीतिक पार्टियां समय-समय पर भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों का नाम लेकर उन्हें अपने मंतव्य के लिए भुनाती रहती हैं। राज सर, आप भी एक क्रांतिकारी परिवार से आते हैं, जमुना प्रसाद त्रिपाठी जी ने देश की आजादी के लिए अपनी जान की बाजी लगाई। आपको क्या कोई टीस है कि सरकारों को देश के क्रांतिकारियों के संदर्भ में जो कार्य करना चाहिए, वह नहीं हो रहा है?

राज त्रिपाठीः बिना शक, महसूस होता है। देखिये, मैं फिर कहूंगा कि 1925 या 1928 से देश के युवा को अक्ल का अंधा नहीं बनाया जा रहा है बल्कि अभी तक यही किया जा रहा है। मैं हर वर्ष शहीद मेला का आयोजन करता हूं, हजार में से पांच सौ लोगों को वहां आज भी नहीं पता होता कि शहीद मेला क्यों मनाया जाता है। हम 50 वर्षों की अथाह मेहनत के बाद भी नहीं बता पाए कि असल में उनकी विचारधारा क्या थी और क्या प्रसार किया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि सत्ता के पास हमसे कई गुना बड़े संसाधन हैं, उन्हें जो पहुंचाना है वे पूरी सफलता से पहुंचा रहे हैं।

शोभा अक्षर : आप सभी का बहुत बहुत ट्टान्यवाद।

 

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