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थम नहीं रहा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री विवाद

पिछले कई दिनों से विवादों में रही बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर विवाद जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के बाद अब एक बार फिर हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दरवाजे तक पहुंच गया है। इससे पहले 21 जनवरी को इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग हैदराबाद यूनिवर्सिटी में की गई थी। हालाँकि केंद्र सरकार द्वारा डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। लेकिन 26 जनवरी के दिन एक ओर जहाँ देश 74वें गणतंत्र दिवस का जश्न मनाया रहा था वहीँ दूसरी तरफ हैदरबाद यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्रों के बीच बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

 

जब एसएफआई के छात्रों ने डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की तो इसके विरोध में एबीवीपी के छात्रों ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म की स्क्रीनिंग की। जिसमें पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी हिंदुओं की हत्याओं के बाद कश्मीर से कश्मीरी हिंदुओं के पलायन का दृश्य दिखाया गया है। इन प्रदर्शनों को देखते हुए विश्वविद्यालय परिसर ने पुलिस सुरक्षा ली है।

 

 

जेएनयू में विरोध प्रदर्शन

 

23 जनवरी की रात जेएनयू के छात्रों ने इस वीडियो को रात 9 बजे स्क्रीनिंग कराए जाने की बात कही थी। सभी छात्र करीब 8 बजे के आसपास उस स्थान पर एकत्रित हो गए जहाँ वीडियो दिखाई जानी थी। लेकिन , वीडियो स्क्रीनिंग से करीब आधे घंटे पहले करीब 8:30 बजे अचानक पूरे कैंपस की बत्ती गुल हो गई और इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई । जिसके सभी बाद छात्रों ने एक दूसरे के फ़ोन पर लिंक और क्यूआर कोड भेजकर वीडियो देखना शुरू कर दिया। छात्रों का आरोप है कि यह कैंपस की चाल है जिससे उन्हें वीडियो स्क्रीनिंग से रोका जा सके। वहीं जेएनयू छात्र संघ की प्रेसिडेंट आइशी घोष ने प्रदर्शन में शामिल छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि “वे डरते हैं कि सच्चाई बाहर आ जाएगी। आप लाइट छीन सकते हैं, आप हमारे हाथ से स्क्रीन छीन सकते हैं, आप हमारे लैपटॉप छीन सकते हैं, लेकिन आप हमारी आंखें, हमारे जज़्बे को नहीं छीन सकते।”
छात्रों का प्रदर्शन चल ही रहा था कि रात के करीब 10 बजे उनपर पत्थरबाजी होने लगी जिसके बाद वहां भगदड़ मच गई। इसके विरोध में प्रदर्शनकारी भीड़ ने छात्रसंघ दफ़्तर के बाहर की जगह खालीकर दी जहाँ वे वीडियो देख रहे थे और इसके थोड़ी देर बाद वहां उपस्थित सभी छात्रों ने छात्रसंघ दफ़्तर के बाहर से जेएनयू के मुख्य द्वार तक मार्च निकाला और नारेबाज़ी की। विवाद को बढ़ता देख विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुलिस बुला ली। जिसके कारण प्रदर्शनकारी छात्र नाराज हो गए। लेकिन छात्रों द्वारा निकले गए मार्च को देखते हुए पुलिस की एक टीम देर रात कैंपस पहुंची और छात्रों की शिकायत दर्ज की। हालांकि अभी तक इस मामले की एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। पुलिस का कहना है कि उन्हें अब तक पत्थरबाजी के सबूत नहीं मिले हैं। वह एफआईआर तब तक दर्ज नहीं करेंगे जब तक जेएनयू की ओर से कोई शिकायत दर्ज नहीं की जाती । जबकि JNU प्रशासन ने विवाद को देखते हुए अर्जेंट एडवाइजरी जारी कर दी है। उनका कहना है कि ऐसे अनधिकृत प्रदर्शन से यूनिवर्सिटी कैंपस की शांति भंग हो सकती है। ऐसे में उन छात्रों को सलाह है कि इस कार्यक्रम को जल्द से जल्द रद्द करें नहीं तो डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग होने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी।

 

 

जामिया की कक्षाएं हुई रद्द

हैदराबाद और जेएनयू में हुए प्रदर्शन के बाद यह विवाद जामिया तक पहुँच गया। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में भी 24 जनवरी की शाम 6 बजे डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की घोषणा की गई थी। लेकिन बढ़ते विवाद को रोकने के लिए पुलिस ने उन 3 छात्रों को हिरासत में ले लिए है जिन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया में डॉक्यूमेंट्री स्क्रीनिंग की घोषणा की थी। हालाँकि छात्रों की गिरफ्तारी का विरोध किये जाने पर उन्हें रिहा कर दिया गया और क्लासेज को रद्द कर दिया गया।

 

डॉक्यूमेंट्री में क्या है

 

बीबीसी द्वारा बनाई गई यह डॉक्यूमेंट्री साल 2002 में हुए गुजरात दंगों पर आधारित है। इंडिया: द मोदी क्वेश्चन नाम से बनाई गई यह डॉक्यूमेंट्री दो एपिसोडों में बनाई है। जिसका पहला एपिसोड 17 जनवरी को प्रसारित किया गया और दूसरा 24 जनवरी को। डॉक्यूमेंट्री के पहले एपिसोड में नरेंद्र मोदी के शुरुआती राजनीतिक जीवन को दिखाया गया है। किस प्रकार वे राजनीति में आगे बढ़ते हुए गुजरात के मुक्यमंत्री के पद पर पहुंचे और गुजरात दंगों में उनका क्या रोल था । बीबीसी द्वारा बनाई गई यह पूरी डॉक्यूमेंट्री एक अप्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित है जिसे बीबीसी ने ब्रिटिश फ़ॉरेन ऑफ़िस से प्राप्त किया है। ब्रिटिश विदेश विभाग की रिपोर्ट का दावा किया गया है कि मोदी साल 2002 में गुजरात में हिंसा का माहौल बनाने के लिए ‘प्रत्यक्ष रूप से ज़िम्मेदार’ थे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दिया जा चुका है। जिसके आधार पर केंद्र सरकार वीडियो प्रसारित किये जाने वाले सभी प्लेटफॉर्मों से वीडियो को हटा देने की घोषणा की है। केंद्र का कहना है कि इस डॉक्यूमेंट्री में तथ्यों को गलत तरीके से और तोड़-मरोड़कर दिखाया गया है।इसके बावजूद वामपंथी छात्र संगठन इस डॉक्यूमेंट्री को दिखाने पर अड़े हैं और इसे अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ रहे हैं।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस बात को स्पष्ट करते हुए प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि, “मुझे ये साफ़ करने दीजिए कि हमारी राय में ये एक प्रोपेगैंडा पीस है। इसका मकसद एक तरह के नैरेटिव को पेश करना है जिसे लोग पहले ही खारिज कर चुके हैं।”

 

बीबीसी पर उठे सवाल

 

 

कानून मंत्री किरण रिजिजू ने तंज कस्ते हुए कहा है कि ”कुछ लोगों के लिए गोरे शासक अभी भी मालिक हैं जिनका भारत पर फैसला अंतिम है न कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय का फैसला या भारत के लोगों की इच्छा।” उनका कहना है कि ”भारत में कुछ लोग अभी भी औपनिवेशिक नशे से नहीं उतरे हैं। वे बीबीसी को भारत के सर्वोच्च न्यायालय से ऊपर मानते हैं और अपने नैतिक आकाओं को खुश करने के लिए किसी भी हद तक देश की गरिमा और छवि को गिरा देते हैं।’

 

डॉक्यूमेंट्री का कांग्रेस पर असर

 

डॉक्यूमेंट्री में मोदी पर उठे सवालों के बाद विपक्षी पार्टियों में एक अलग ही तेज आ गया है। विपक्षियों का मानना है कि सरकार द्वारा इस डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए। कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी ने कहा कि अगर आपने हमारे शास्त्रों को, भगवत गीता या उपनिषदों को पढ़ा है तो आपको मालूम होगा कि सच्चाई हमेशा सामने आती है। आप उसे कैद नहीं कर सकते हैं। आप मीडिया को दबा सकते हैं। आप संस्थानों को कंट्रोल कर सकते हैं, आप CBI, ED आदि सभी चीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन सच तो सच होता है।
वहीं दूसरी ओर केरल के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे अनिल एंटनी ने जो केरल इकाई के डिजिटल संचार प्रमुख का पद संभाल चुके थे। उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। क्योंकि उनकी पार्टी के अन्य सदस्यों द्वारा उप पर एक ट्वीट को डिलीट करने के लिए दबाव बनाया जा रहा था। जिसमे उन्होंने डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबन्ध लगाए जाने की मांग की थी। इसके विरोध में एंटनी ने यह कहते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया कि “मैंने कांग्रेस से अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। मुझ पर एक ट्वीट को वापस लेने के असहिष्णुता से दबाव बनाया जा रहा था। वह भी उनकी तरफ से जो अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खड़े होने की बात करते हैं। और मैंने इसके लिए मना कर दिय।” एंटनी का कहना है कि “मैं राज्य नेतृत्व में सभी का शुक्रिया अदा करता हूं और डॉक्टर शशि थरूर का भी, उन्होंने अनगिनत पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मेरा समर्थन किया और मेरे कार्यकाल के दौरान मुझे राह दिखाई। मुझे विश्वास है कि मेरे पास कुछ अनोखी ताकतें हैं, जिससे मुझे पार्टी में अलग-अलग तरह से योगदान का मौका मिला। हालांकि, अब मुझे आपके, आपके साथियों और कांग्रेस के नेतृत्व के करीबियों की तरफ से ज्ञात हो गया है कि वे सिर्फ चाटुकारों और चमचों के साथ काम करने के लिए उत्सुक हैं, जो कि बिना सवाल के आपके सवालों और मांगों को पूरा करेंगे। सिर्फ यही अब मेरिट की एकमात्र योग्यता है। अब हमारे पास ज्यादा कुछ साझा करने के लिए है भी नहीं।”

 

 

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