राजस्थान में धीरे-धीरे जो लड़ाई सचिन पायलट से शुरू हुई थी अब वह राज्यपाल बनाम मुख्यमंत्री हो गई है। अब पायलट फ्रंट से गायब हैं। एक तरह से अब ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की सियासत शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आज राज्यपाल कलराज मिश्र के तरफ से विधानसभा सत्र का प्रस्ताव वापस किए जाने के बाद अपने आवास पर कैबिनेट मीटिंग रखी थी। तकरीबन दो घंटे तक मीटिंग चली। मीटिंग खत्म होने के बाद बाहर आकर उनकी तरफ से बताया गया कि राज्यपाल के सभी सवालों के जवाब तैयार किए जा चुके हैं।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सत्र बुलाना उनका अधिकार है। वो चाहते हैं कि 31 जुलाई को सत्र बुलाया जाए। कांग्रेस का कहना है कि गवर्नर ने जो भी सवाल पूछे थे उसका जवाब उनकी तरफ से दे दिया गया हैं। दरअसल, विधानसभा सत्र बुलाने के प्रस्ताव पर राज्यपाल कलराज मिश्र ने गहलोत सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। उन्होंने सोमवार को पूछा था कि क्या आप विश्वास मत लाना चाहते हैं? प्रस्ताव में इसका उल्लेख नहीं है लेकिन आप मीडिया में इसके बारे में बात कर रहे हैं। राज्यपाल ने ये भी कहा था कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर सभी विधायकों को विधानसभा सत्र के लिए बुलाना मुश्किल होगा। क्या आप विधानसभा सत्र बुलाने पर 21 दिन का नोटिस देने पर विचार कर सकते हैं?
बसपा प्रमुख मायावती ने भी उधर कमर कस ली है। उनकी याचिका को सोमवार को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। बावजूद इसके वो कांग्रेस से बदला लेने के सीधे मुड में हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती अशोक गहलोत और कांग्रेस पर एक बार फिर निशाना साधते हुए कहा कि राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद बसपा ने कांग्रेस को अपने 6 विधायकों का समर्थन दिया। दुर्भाग्य से, मुख्यमंत्री गहलोत अपने दुर्भावनापूर्ण इरादे और बसपा को नुकसान पहुंचाने के लिए बीएसपी विधायकों को असंवैधानिक तरीके से कांग्रेस में शामिल कर लिया।
मायावती ने साफ कहा है कि पहले भी बसपा अदालत जा सकती थी पर कांग्रेस और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हम सबक सिखाने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अब हमने कोर्ट जाने का फैसला किया है। ऐसे ही हम इस मामले को नहीं छोड़ेंगे। हम सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे। जैसा कि मालूम है कि जब कांग्रेस की राजस्थान नें सरकार बनी थी तब बसपा ने समर्थन दिया था। लेकिन कांग्रेस ने आगे चलकर मायावती के छहों विधायकों को पार्टी में शामिल कर उन्हें धोखा दिया था। उसी बात को लेकर आज मायावती ने कहा कि वो तब से सही समय का इंतजार कर रही थीं।
सवाल लेकिन सवाल ये है कि जो राजनीति सचिन पायलट से शुरू हुई थी वह अब राज्यपाल और बसपा सुप्रिमों के आसपास आकर क्यों टिक गई है। कलराज मिश्र गहलोत के निशाने पर क्यों हैं? राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह तय हो गया है कि विधानसभा स्पीकर जब तक सदन नहीं चलेगा जब तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस प्रदेश सचिन पायलट समेत उनके 18 समर्थक विधायकों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं कर सकेंगे। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट से स्पीकर सीपी जोशी ने याचिका वापस ली। अब यह तय है कि पूरे मामले को सियासी आधार पर उनकी तरफ से लड़ा जाएगा, न कि कानूनी आधार पर। यही वजह है कि सचिन पायलट अब किनारे हो गए हैं और कांग्रेस के निशाने पर भाजपा और राज्यपाल निशाने आ गए हैं।
एक बार नहीं बल्कि दो बार कलराज मिश्र राजस्थान कैबिनेट की विधानसभा सत्र बुलाने की मांग को टेक्निकली आधार पर खारिज कर चुके हैं। कभी वो कोरोना महामारी में सोशल डिस्टेंसिंग का बहाना बनाते हैं तो कभी सत्र से पहले विधायकों को 21 दिन के नोटिस देने की नियमों का हवाला देते हैं। अब सवाल उठता है कि विधानसभा सत्र बुलाने के पीछे की राजनीति क्या है? दरअसल, कांग्रेस चाहती है कि विधानसभा का सत्र जल्द-से-जल्द बुलाया जाए और विश्वास मत पेश किया जाए। ऐसे में व्हिप का पालन करना पायलट की मजबूरी होगी। अगर वो व्हिप का पालन नहीं करते तो उन्हें अयोग्य करार देना विधानसभा स्पीकर के लिए आसान हो जाएगा। जबकि भाजपा और पायलट चाहते हैं कि अभी किसी भी हाल में विधानसभा सत्र नहीं बुलाया जाए। उनका कहना है कि कार्यवाही नियमों के अनुसार होनी चाहिए। यही वजह है कि राज्यपाल नियमों का ही हवाला देकर अशोक गहलोत सरकार उलझाए हुए हैं।
नियमों के मुताबिक, विधानसभा सत्र बुलाने से पहले 21 दिन का नोटिस विधायकों को देना होता है। अब दलील ये दी जा रही है कि मंत्रि परिषद की सलाह को मानना राज्यपाल का दायित्व है। जबकि हकीकत यह है कि अब भी राज्यपाल के विवेकाधिकार का मसला स्पष्ट नहीं है। वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो राजस्थान संकट मामले में अब तक कैबिनेट ने यह नहीं कहा है कि संवैधानिक संकट है और विश्वास मत हासिल करने के लिए विधानसभा सत्र बुलाया जाए। अगर उनकी तरफ से ऐसा किया जाता है तो राज्यपाल को सत्र बुलाना पड़ेगा पर उससे कांग्रेस की किरकिरी होगी। ऐसे में मुख्यमंत्री गहलोत और कांग्रेस की कोशिश है कि किसी भी तरह से जनता के सामने संदेश जाए कि भाजपा और राज्यपाल दोनों मिलकर जनता की चुनी हुई सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस राज्यपाल के खिलाफ मुखर है और ज्यादा बयान जारी कर बतानी चाहती है कि राज्यपाल भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं।