बिहार की राजनीति के सियासी राजकुमार तेजस्वी यादव के सामने कन्हैया कुमार अब बड़ी चुनौती बनते नजर आ रहे हैं। बिहार में होने वाले उपचुनाव के लिए कांग्रेस ने स्टार प्रचारकों की जो सूची जारी की है, उसमें कन्हैया कुमार का नाम शामिल हैं। इस सूची में लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार और पूर्व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा भी शामिल हैं। तारिक अनवर, भक्त चरण दास, मदन मोहन झा, अजित शर्मा, निखिल कुमार, अखिलेश सिंह इनके अलावा डॉ.अनिल शर्मा जैसे बड़े नाम भी हैं। सबसे अधिक चर्चा कन्हैया कुमार की हो रही है।
कांग्रेस में कन्हैया कुमार की एंट्री ने आरजेडी को परेशानी में डाल दिया है। मीडिया के सामने आरजेडी नेता कन्हैया का नाम लेने से बचते आए हैं। आलम यह है कि आरजेडी पार्टी नेता कन्हैया को पहचानने से भी इंकार कर देते हैं। वे पत्रकारों से ही सवाल करने लगते हैं कि कौन हैं कन्हैया अब कन्हैया कुमार को कांग्रेस ने कुशेश्वर स्थान और तारापुर उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारक घोषित कर दिया है। इस उपचुनाव में कांग्रेस ने आरजेडी पर गठबंधन धर्म न निभा पाने का आरोप लगाया है। माना जा रहा है कि कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने से आरजेडी खुश नहीं है। बिहार में कांग्रेस और सीपीआई दोनों महागठबंधन का हिस्सा है और कन्हैया कुमार सीपीआई से ही कांग्रेस में आए हैं।
बिहार में कांग्रेस को हराकर ही लालू यादव ने ‘राज’ करना शुरू किया था। 15 साल तक उनकी पार्टी राज्य की सत्ता पर काबिज रही। जगन्नाथ मिश्रा के कांग्रेस छोड़ने के बाद से पार्टी नेतृत्वविहीन हो गई और धीरे-धीरे लालू यादव कांग्रेस को ‘एडजस्ट’ करते रहे। कांग्रेस और आरजेडी का रिश्ता लगभग दो दशक से ज्यादा पुराना है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर कन्हैया के कांग्रेस में आने से आरजेडी नाराज क्यों है?
दरअसल बिहार में कांग्रेस के पास कोई प्रभावी चेहरा नहीं था। पार्टी को युवा नेतृत्व को जरूरत थी। हालांकि कन्हैया की ये खासियतें लालू यादव और तेजस्वी को सूट नहीं करती है।
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राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब तक कांग्रेस कमजोर रहेगी, क्षेत्रीय दलों की दुकानदारी चलती रहेगी। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कांग्रेस के मजबूत होने से आरजेडी को नुकसान होगा। इसमें कोई दो मत नहीं है। आरजेडी कभी नहीं चाहेगी कि कांग्रेस को मजबूत नेतृत्व मिले। कन्हैया की मेहनत और जिम्मेदारियों पर सब कुछ निर्भर है।
बिहार में महागठबंधन का चेहरा तेजस्वी हैं। बिहार कांग्रेस में कन्हैया का रोल बढ़ने से ‘फेस वॉर’ शुरू हो जाएगा। तेजस्वी की पहचान लालू यादव की बदौलत है। जबकि कन्हैया कुमार ने खुद को गढ़ा है। अपनी भाषण शैली से वे लोगों को कनेक्ट करते हैं। कांग्रेस में कन्हैया को शामिल सके, इसके लिए आरजेडी ने कई तिकड़म किए थे। मगर मामला श्सेटश् नहीं हो पाया। कहा जाता है कि कन्हैया को पार्टी में शामिल कराने का फैसला राहुल गांधी का है।
कन्हैया कुमार को बिहार में कोई जिम्मेदारी कांग्रेस सौंपती है तो इसका सीधा असर तेजस्वी यादव के राजनीतिक भविष्य पर पड़ सकता है। कन्हैया की स्टाइल तेजस्वी पर भारी मानी जाती है। लालू यादव और नीतीश कुमार ने पिछले चुनाव में ‘अंत भला तो सब भला’ कहते हुए अगले चुनाव न लड़ने का संकेत दिया तो वहीं लालू यादव की भी चुनावी पारी लगभग खत्म हो चुकी। अपनी सभी जिम्मेदारियां तेजस्वी को सौंप रहे हैं। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि युवा नेता बिहार के चुनावी मैदान में अपना परचम कैसे लहरा पाएंगे।