पिछले काफी समय से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने को लेकर एलजीबीटी समुदाय मांग कर रहा है। जिस पर देश की सर्वोच्च न्यायलय में सुनवाई जारी है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने लंदन के कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस संबध में जो चीज सबसे ज्यादा मायने रखती है वह यह है कि विवाह संबध में स्टेबिलिटी , समाजिक और वित्तीय अंतर निर्भरता होनी चाहिए । जो कि सबसे ज्यादा मायने रखता है। ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक ये गुण समलैंगिक विवाह संबंध में भी हो सकते हैं । ब्रिटेन की कोर्ट का ये फैसला मील का पत्थर साबित हुआ और समलैंगिक लोगों के अधिकारों के लिए जाना गया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से दी गई इस दलील से सुप्रीम कोर्ट सहमत नजर आया। सुनवाई कर रहे पांच न्यायधीशों की बेंच ने कहा कि भारत को संवैधानिक और सामाजिक रूप से देखते हुए हम पहले ही मध्यवर्ती चरण में पहुंच चुके हैं। समलैंगिकता को अपराध न मानना मध्यवर्ती चरण को दर्शाता है। समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करना ही इस बात पर विचार करता है कि समान लिंग के लोग एक स्थिर, विवाह जैसे रिश्ते में हो सकते हैं।
सुप्रीमकोर्ट द्वारा इस मुद्दे पर फैसले सुनाने को लेकर जहां एक ओर इस्लामी संगठन समेत केंद्र सरकार इसका विरोध कर रहें हैं। वहीं दूसरी तरफ टीएमसी नेता अभिषेक बैंनर्जी ने समलैंगिक विवाह का समर्थन किया हैं। उन्हाने सरकार के पक्ष का विरोध जताते हुए कहा कि हर किसी को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है । प्यार करने अधिकार है, प्यार के लिए कोई धर्म या जाति नही हैं । अगर मैं महिला हूं , मुझे महिला पंसद है। प्रेम की कोई सीमा नहीं होती । हर किसी को प्रेम करने का अधिकार है।
गौरतलब है कि सरकार लगातार समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध कर रही है। केंद्र सरकार के मुताबिक इस तरह के विवाह को मान्यता देने का अधिकार सुप्रीमकोर्ट का नहीं बल्कि विधायिका का है। कोर्ट को इस मामले से बचना चाहिए। कोर्ट ने इस का जवाब देते हुए कहा कि ये मामला एक बडे समुदाय का है इस वजह से लोगों को सुनना जरूरी हो जाता है।