[gtranslate]

केंद्रीय जांच एजेंसियों की पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के खिलाफ कार्रवाई के बाद केंद्र सरकार ने यूएपीए के सेक्शन 3 गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 3 की उपधारा (1) के तहत पीएफआई और उससे जुड़े सभी संगठनों को पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है

देश में इन दिनों पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई जारी है। इस दौरान सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया गया है और दर्जनों गिरफ्तारियों के बाद अब केंद्र सरकार ने यूएपीए के सेक्शन 3 गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 3 की उपधारा (1) के तहत पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन, नेशनल वुमन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन को पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। गृह मंत्रालय ने पीएफआई के काले कारनामे गिनाते हुए कहा है कि इसके सदस्य आतंकी गतिविधियों में संलिप्त हैं और विदेशों से फंडिंग लेकर यह संगठन देश में अस्थिरता, हिंसा और भय का माहौल बनाने का काम कर रहा था।

पीएफआई पर प्रतिबंध के बाद अब पीएफआई विरोध प्रदर्शन, सम्मेलन, कॉन्फ्रेंस, डोनेशन एक्सरसाइज या फिर किसी तरह का प्रकाशन नहीं कर सकेगा। इस संगठन द्वारा की जाने वाली हर गतिविधि गैरकानूनी मानी जाएगी। इसके अलावा कोई भी व्यक्ति अगर इन संगठनों से जुड़ा हुआ पाया जाता है तो एजेंसियां और स्थानीय पुलिस तत्काल कार्रवाई कर सकती हैं। एजेंसी ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया है उन पर भी यूएपीए के तहत केस दर्ज किया गया है। इसके अलावा आने वाले दिनों में और भी कई लोगों पर कार्रवाई होगी। इसके जानकार लोगों का कहना है कि पीएफआई से जुड़े लोगों के ट्रैवल पर बैन, बैंक अकाउंट और संपत्तियों को भी सीज किया जा सकता है। सरकार ने स्पष्ट कहा है कि पीएफआई के संबंध प्रतिबंधित संगठन स्टुडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), आईएसआईएस और बांग्लादेश के आतंकी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश से भी लिंक है।

दरअसल हाल ही में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने करीब दो दर्जन राज्यों में छापे मारकर सैकड़ों पीएफआई कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया है। कहा जा रहा है कि हिंसक प्रदर्शनों की योजना से जुड़े इनपुट मिलने के बाद ये छापे मारे जा रहे हैं। खबरों के अनुसार, एक खुफिया नोट से पता चला कि पीएफआई सरकारी एजेंसियों, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक के नेताओं और संगठन को निशाना बनाने की योजना बना रहा था। नोट के अनुसार, नई दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल में अपने वरिष्ठ नेताओं को रखे जाने के बाद पीएफआई कार्यकर्ता नाराज हैं। नोट में आगे कहा गया है कि पीएफआई ने सरकार के खिलाफ हिंसक जवाबी कार्रवाई का फैसला किया है।

कहा जा रहा है कि पीएफआई ने मरने या मारने का रास्ता चुना, वहीं दूसरी तरफ एनआईए और ईडी द्वारा देश भर में पीएफआई से जुड़े स्थानों पर छापेमारी के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय चरमपंथी समूह पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई। इस दौरान जांच एजेंसियों द्वारा छापेमारी में एकत्र किए गए साक्ष्यों के आधार पर प्रतिबंध लगाया गया है। छापेमारी के तुरंत बाद गृह मंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और एनआईए प्रमुख के साथ बैठक भी की थी। इस दौरान पीएफआई के खिलाफ जुटाए गए तथ्यों की समीक्षा कर आगे की कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए। प्रतिबंध लगाने से पहले गृह मंत्रालय ने कानूनी विशेषज्ञों से भी सलाह ली थी, ताकि पीएफआई के अदालत जाने की स्थिति में सरकार अपनी ओर से मुस्तैद रहे। ऐसा इसलिए भी किया गया, क्योंकि केंद्र सरकार को 2008 में स्टुडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर से प्रतिबंध वापस लेना पड़ा था। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसे फिर से प्रतिबंधित कर दिया गया था। इस बार सरकार जल्दी में नहीं थी और अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। यूएपीए की धारा-35 के तहत, केंद्र सरकार के पास किसी संगठन को आतंकी संगठन घोषित करने का अधिकार केवल तभी होता है जब वह मानता है कि वह आतंकवाद में शामिल है। कानून कहता है कि किसी संगठन को आतंकवाद में शामिल तभी माना जाएगा यदि वह आतंकी घटनाओं में लिप्त पाया जाता है। आतंकवाद को बढ़ावा देता है। लोगों को आतंकवाद के लिए तैयार करता है।

वर्ष 2017 में तैयार हो गया था प्लान
एनआईए ने 2017 में ही पीएफआई का डोजियर तैयार कर लिया था। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक डोजियर में कहा गया था कि पीएफआई के 50 हजार से ज्यादा नियमित सदस्य हैं और केरल में इसके समर्थकों की संख्या लगभग डेढ़ लाख है। इसके अलावा हर साल इसमें पांच फीसदी का इजाफा हो रहा है। ये कैडर लोगों को कट्टरपंथ की ओर मोड़ने की पूरी कोशिश करते हैं। एक सीनियर एनआईए अधिकारी ने कहा था कि पीएफआई की पहुंच 22 राज्यों तक है।

जेबीएम पर 2019 में लगा बैन
जेबीएम की शाखा पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड, कर्नाटक जैसे कई राज्यों तक फैले हुए थे। इन राज्यों में आतंकी गतिविधियां चलाई जाती और फंड इकट्ठा करने की कोशिश होती थी। कई जगहों पर ट्रेनिंग भी होती थी। 2014 में बर्दवान में बड़ी कार्रवाई हुई थी और जेबीएम के 50 से ज्यादा सदस्य गिरफ्तार किए गए थे। इसके अलावा 100 से ज्यादा बम भी बरामद किए गए थे।

क्या है पीएफआई
पीएफआई की स्थापना 2006 में हुई थी और अब इसकी करीब दो दर्जन से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शाखाएं हैं। कई सुरक्षा एजेंसियों ने पीएफआई की जड़ें नेशनल डेवलेपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) में होने की बात कही है, जो एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है, जिसे बाबरी मस्जिद के विध्वंस के परिणामस्वरूप एक साल बाद वर्ष 1993 में बनाया गया था।

पीएफआई का संबंध बांग्लादेश और भारत के दो ऐसे संगठनों से भी रहा है जिन पर प्रतिबंध लगा हुआ है।अधिसूचना में लिखा गया है कि पीएफआई का संबंध आतंकवादी संगठन जमात-उल- मुजाहिदीन बांग्लादेश से भी रहा है। पीएफआई के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के नेता रहे हैं। ये दोनों ही प्रतिबंधित संगठन हैं। इसके अलावा आदेश में कहा गया है कि पीएफआई के वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ संपर्क के कई उदाहरण हैं। पीएफआई के कुछ सदस्य आईएसआईएस में शामिल हुए और सीरिया, इराक, अफगानिस्तान में आतंकी कार्यक्रमों में भाग ले चुके हैं। पीएफआई के कुछ कैडर इन देशों के संघर्ष क्षेत्रों में मारे गए हैं। कई कैडर को राज्य और केंद्रीय पुलिस ने गिरफ्तार किया है। पिछले दिनों 22 सितंबर को जांच एजेंसियों ने 15 राज्यों में पीएफआई के खिलाफ छापेमारी की थी। सूत्रों के मुताबिक एजेंसियों को आतंकी गतिविधियों में पीएफआई की संलिप्तता के पुख्ता सबूत मिले हैं। इसके आधार पर इसे प्रतिबंधित किया गया है।

पीएफआई पर इस्लामी शासन लाने के लग रहे आरोप
पीएफआई के जिन 10 सदस्यों को इस सप्ताह केरल में गिरफ्तार किया गया। उन पर युवाओं को लश्कर-ए-तैयबा, आइएस और अल कायदा जैसे आतंकी संगठनों में शामिल होने के लिए उकसाने का आरोप है। पीएफआई के नेता हिंसक जिहाद और आतंकी गतिविधियों के जरिए भारत में इस्लामी शासन लाना चाहते थे। इतना ही नहीं पीएफआई के सदस्य विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने का काम भी कर रहे थे। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया केंद्रीय जांच एजेंसियों की रडार पर था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले दिनों पीएफआई के 100 से ज्यादा ठिकानों पर रेड की थी। इस दौरान सैकड़ों पीएफआई सदस्यों को गिरफ्तार किया गया है। केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना में भी बड़े पैमाने पर कार्रवाई हुई थी। एनआईए ने पीएफआई के चेयरमैन ओएमए सलाम, केरल राज्य प्रमुख सीपी मोहम्मद बशीर, राष्ट्रीय सचिव वीपी नजरुद्दीन और राष्ट्रीय परिषद सदस्य प्रो. पी कोया शामिल को भी गिरफ्तार किया था। सबसे ज्यादा लोगों को केरल से गिरफ्तार किया गया है जिसे पीएफआई का गढ़ माना जाता है। ऐसा नहीं है कि इस तरह की कार्रवाई पीएफआई पर पहली बार की जा रही है। इससे पहले हिजाब पर विरोध-प्रदर्शनों और सीएए-एनआरसी को लेकर भी इस संगठन का नाम सामने आ चुका था।

पहले भी उठ चुकी है बैन की मांग
वर्ष 2012 में पीएफआई के टेरर लिंक सामने आने के बाद इस संगठन को बैन करने की मांग उठी थी लेकिन तत्कालीन केरल सरकार ने उसका समर्थन किया था। वर्ष 2017 में एनआईए ने गृह मंत्रालय को सौंपी अपनी विस्तृत रिपोर्ट में पीएफआई और इसके राजनीतिक दल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के आतंकी गतिविधियों जैसे बम निर्माण में शामिल होने के चलते बैन लगाने की मांग की थी। देश के कई राज्य सरकारें भी समय-समय पर पीएफआई को बैन करने की मांग कर चुकी हैं। सीएए-एनआरसी प्रदर्शन के दौरान यूपी सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस संगठन को पूरी तरह बैन करने की मांग की थी। पिछले वर्ष असम ने भारत सरकार से पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया था। असम सीएम का आरोप था कि वे सीधे तौर पर विध्वंसक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं।

पीएफआई का विवादों से नाता
पिछले कुछ सालों से पीएफआई लगातार विवादों में रहा है। यूपी के हाथरस कांड के दौरान सीएफआई का नाम सामने आया था। ईडी ने हाथरस दंगों की साजिश में पीएफआई और उसके स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के पांच सदस्यों के खिलाफ लखनऊ की स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी। इसके अलावा किसान आंदोलन, नूपुर शर्मा विवाद के बाद यूपी में करीब आठ शहरों में जुमे की नमाज के बाद माहौल को गरमाने की कोशिश की गई थी। इससे पहले सीएए-एनआरसी को लेकर हुए विवाद के समय भी पीएफआई का नाम सामने आया था। वहीं 2017 में विवादास्पद लव जिहाद केस की जांच करते हुए, एनआईए ने दावा किया था कि महिलाओं के इस्लाम में धर्मांतरण के दो मामलों के बीच एक पुख्ता सबूत पाया गया। उस समय एनआईए ने कहा था कि पीएफआई से जुड़े चार लोगों ने केरल निवासी अखिला अशोकन को धर्म परिवर्तन और हादिया नाम रखने के लिए मजबूर किया था।

पिछले वर्ष प्रवर्तन निदेशालय ने जांच के बाद निष्कर्ष निकाला कि पीएफआई ने सीएफआई जैसे संबद्ध संगठन के साथ-साथ आतंकवादी शिविर चलाने, मनी लॉन्ड्रिंग, विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देकर दंगे का माहौल बनाने के लिए राशि जुटाई थी। तब ईडी ने पीएफआई के 26 ठिकानों पर छापे भी मारे थे जिसमें जिलेटिन की छड़ें और डेटोनेटर्स बरामद हुए थे। 2021 में ही इनकम टैक्स विभाग ने सेक्शन 12ए (3) के तहत पीएफआई का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था।

You may also like

MERA DDDD DDD DD