पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कब अपना स्टैंड बदल लें इसे बड़े से बड़ा राजनीतिज्ञ भी नहीं भांप पाता है। बहुत से राजनीतिक विश्लेषक उनकी तुलना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संग करते हैं जो अपनी सुविधानुसार कभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों के साथ हो लेते हैं तो कभी भाजपा गठबंधन का हिस्सा बन जाते हैं। ममता का भी कुछ ऐसा ही टै्रक रिकॉर्ड रहा है। कांग्रेस से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाली ममता बनर्जी पीवी नरसिम्हा राव सरकार में पहली बार मंत्री बनी थीं। 1997 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की नींव रखी। 1999 में वे भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बन गईं। तब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उन्हें रेल मंत्री बनाया गया। 2001 में लेकिन वे एनडीए से बाहर आ गईं और कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल हो गईं।
2003 में लेकिन उन्होंने फिर पलटी मार ली। वे दोबारा से एनडीए का हिस्सा बन केंद्र में मंत्री बन गईं। 2009 में उन्होंने एक बार फिर से निष्ठा बदल ली और कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन में शामिल हो गईं। इस निष्ठा बदलने का ईनाम बतौर रेल मंत्री उन्हें बना दिया गया। मई 2011 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बतौर शपथ ली। तब से आज तक वे लगातार मुख्यमंत्री बनी हुई हैं। भाजपा संग उनके रिश्ते मोदी-शाह युग में बेहद खराब होने शुरू हुए जो अब अपने निम्नतर स्तर पर जा पहुंचे हैं। 2021 में हुए राज्य विधानसभा के चुनाव के दौरान दोनों तरफ से एक-दूसरे पर नाना प्रकार के आरोप- प्रत्यारोप लगाए गए थे। तृणमूल कांग्रेस में तब भाजपा ने भारी तोड़-फोड कर ममता के कई करीबियों को अपने दल में शामिल करा ममता के सामने जबरदस्त चुनौती पैदा करने का काम किया था। ममता लेकिन चुनाव जीत एक बार फिर से राज्य की मुख्यमंत्री बन गईं।
अब बारी आई केंद्रीय जांच एजेंसियों की जिन्होंने तृणमूल के कई मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को अपने शिकंजे में कसने की कवायद शुरू कर दी। इन एजेंसियों के निशाने पर ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी भी शामिल हैं। ममता सरकार के रिश्ते राज्य के तत्कालीन राज्यपाल जगदीश धनखड़़ संग भी बेहद तनावपूर्ण इस दौरान रहे। ममता इस पूरे दौर में केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ बेहद आक्रामक रहीं लेकिन अब उनके सुर बदलने लगे हैं। कुछ अर्सा पहले ममता ने यकायक ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तारीफों के पुल बांध सबको चौंकाने का काम कर डाला। तभी से यह बात उठने लगी है कि अपने भतीजे अभिषेक और अन्य वरिष्ठ नेताओं को केंद्रीय जांच एजेंसियों से बचाने का खेल ममता ने शुरू कर दिया है।
जगदीश धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने के बाद तमिलनाडु के गवर्नर एम गणेश को पश्चिम बंगाल का कार्यवाहक राज्यपाल बनाया गया है। ममता कार्यवाहक राज्यपाल संग प्रगाढ़ संबंध बनाती नजर आ रही हैं। पिछले दिनों वे राज्यपाल के भाई का जन्मदिन मनाने चेन्नई तक चली गईं। उनकी इस कवायद को विपक्षी दल संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं। कहा-सुना जा रहा है कि अब ममता के सिर से राष्ट्रीय राजनीति का सिरमौर बनने का भूत उतरने लगा है और वे पश्चिम बंगाल में ही अपना फोकस केंद्रित रखना चाह रही हैं। ऐसे में चर्चाएं हैं कि ममता 2024 के आम चुनाव से पहले एक बार फिर पाला बदल एनडीए में शामिल हो सकती हैं।