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बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में दिमागी बुखार से लगभग 117  मासूमो के मौत हो गई है।  चमकी कही जाने वाली इस बीमारी ने अभी तक कई बच्चों को अपना शिकार बना लिया है और अब तक सरकार की तरफ से कोई  ठोस  कदम नहीं उठाया गया है। बीमारी के चरम अवस्था पर पहुंचने के 9 दिन बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने श्री कृष्ण मेडिकल  कॉलेज एंड हॉस्पिटल का दौरा किया और अधिकारियों ,डॉक्टर्स के साथ समीक्षा बैठक की। 2000 से 2010 में भी इन्फ्लाइटिस सिंड्रोम के संक्रमण से कई मासूमों के जाने चली गयी थी।  इसके बावजूद इस बीमारी के प्रति लोगों में कोई जागरूकता अभियान नहीं चलाया गया।  इस बार प्रशासन की और से कोई खास तैयारी नज़र नहीं आयी। स्वास्थ्य सेवाएं इतनी बदहाल है की मरीज़ो के लिए अस्पताल में बेड भी कम पड़ रहे है।  प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रो पर इलाज के लिए ग्लूकोमीटर नहीं है,जिससे मरीज़ो में ग्लूकोस के मात्रा को नापा जाता है।  जब तक मरीज़ को अस्पताल रेफर किया जाता है तब तक पीड़ित की हालत और  बिगड़ जाती है।

अस्पताल में उचित इलाज के व्यवस्था कही नज़र नहीं आ रही है।  अस्पताल में मरीज़ो  को देखने के लिए डॉक्टर्स की कमी है।  जरुरी दवाएं उपलब्ध नहीं है।  मरीज़ो के लिए  बेड के इतनी कमी है की एक बेड पर दो मरीज़ो का एक  साथ इलाज किया जा रहा है।  नर्सिंग स्टाफ की कमी हालात का बद से बदतर कर रही है।  जनता का आक्रोश अपने चरम पर पहुंच गया है। वह सवाल कर रही है की आखिर  कब तक सोती रहेगी सरकार ,कब तक मासूमों की मौत का ये दर्दनाक मंज़र चलता रहेगा। बिहार को अब बीमारू राज्य की संज्ञा दी जाने लगी है। स्वास्थ्य सेवाओं में इतनी कमी है की हर दिन मरने वाले मासूमों की गिनती बढ़ती जा रही है। यह बीमारी हर साल आती है फिर भी अस्पतालों में लापरवाही साफ़ नज़र आयी।  इस बीमारी की रोकथाम के लिए सरकार ने इलाज का उपाय खोजने में 100 करोड़ तक ख़र्च किया है लेकिन मौतों का सिलसिला अब भी जारी है और अब भी सरकार और प्रशासन स्तर पर काफी उदासीनता नज़र आ रही है।

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