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आजम का राजनीतिक अवसान!

आजम खान कभी यूपी की राजनीति का वह नाम था जिसके इर्द-गिर्द पूरी सियासत घूमती नजर आती थी। खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहां की राजनीति आजम का नाम लिए बिना पूरी नहीं होती थी। सपा सरकार में तो उन्हें ‘सुपर सीएम’ कहा जाता था। लेकिन जब से सूबे की सत्ता पर योगी काबिज हुए तब से आजम की उल्टी गिनती शुरू हो गई। फिलहाल ‘हेट स्पीच’ के एक मामले में तीन साल की सजा होने के बाद वह राजनीतिक करियर को लेकर चर्चाओं में हैं। क्योंकि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत दो साल से ज्यादा के सजायाफ्ता मुजरिमों की सांसद और विधायक वाली सदस्यता खत्म होने का प्रावधान है। ऐसे में उनके भविष्य के राजनीतिक करियर पर सवाल खड़े हो रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनका राजनीतिक सफर अब अवसान की ओर है

समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता और रामपुर के विधायक मोहम्मद आजम खान को एमपी-एमएलए न्यायालय ने 27 अक्टूबर को भड़काऊ भाषण के एक पुराने मामले में 3 साल की सजा सुनाई है। हालांकि आजम खान को जमानत मिल गई है लेकिन आजम खान की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई है। अब अगले 9 साल तक वह चुनाव नहीं लड़ सकते, जिसके चलते राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि आजम खान का राजनीतिक भविष्य लगभग खत्म हो गया है। दरअसल, आजम खान की विधानसभा सदस्यता रद्द करने का फैसला उच्चतम न्यायालय के एक ऐतिहासिक फैसले के तहत लिया गया है। उच्चतम न्यायालय ने साल 2013 में राजनीति से अपराधियों को दूर रखने के लिए कहा था कि सांसद-विधायक निचली अदालत में आरोपी करार दिए जाने के समय से ही अयोग्य हो जाएंगे। इतना ही नहीं उच्चतम अदालत ने अपने आदेश में उस प्रावधान को भी निरस्त कर दिया था, जिसके वजह से आरोपी सांसद, विधायक ऊपरी अदालत में मामला लंबित रहने तक अपनी अयोग्यता से बचते रहते थे। न्यायालय के इस फैसले के बाद यह निर्धारित हो गया कि देश के जनप्रतिनिधि को दो साल या इससे अधिक समय की सजा मिलने के बाद उनकी सदस्यता बरकरार नहीं रहेगी। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने 10 जुलाई 2013 को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक करार कर दिया था।

जिसकी वजह से कानून की धारा को निरस्त कर दिया गया था। न्यायालय ने यह व्यवस्था दी थी कि दोषी ठहराए जाने के समय से ही विधायक, विधान परिषद सदस्य या सांसद पर अयोग्यता प्रभावी होती है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भी ऐसी सजा पाए जनप्रतिनिधियों की सदस्यता इस आधार पर बनी रही कि उच्च अथवा उच्चतम न्यायालय में ऐसे जनप्रतिनिधियों द्वारा संबंधित फैसले को चुनौती दी जा चुकी है और चूंकि मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है इसलिए अंतिम फैसला न आने तक सदस्यता रद्द नहीं मानी जा सकती है। 2013 में एक गैर सरकारी संगठन ‘लोकप्रहरी’ ने उच्चतम न्यायालय में याचिका डाल न्यायालय का इस पहलु पर ध्यान आकर्षित किया। सुप्रीम कोर्ट ने 18 फरवरी, 2013 में ‘लोकप्रहरी’ की याचिका पर अपना फैसला देते हुए स्पष्ट कर दिया कि सजा पाए जनप्रतिनिधियों को फैसले के खिलाफ अपील का अधिकार जरूर है लेकिन उनकी सदस्यता बरकरार नहीं रखी जा सकती है।

अब उच्चतम न्यायालय की यह व्यवस्था मोहम्मद आजम खान पर भी लागू हुई है। इससे साफ है कि अदालत का फैसला आते ही वह उत्तर प्रदेश विधानसभा से अयोग्य हो गए हैं। हालांकि अभी भी आजम खान के पास कुछ विकल्प मौजूद हैं। सजा मिलने के बाद उन्होंने कहा था कि अधिकतम 3 वर्ष की सजा का प्रावधान है। ‘अधिकतम सजा सुनाई गई है। हाथों-हाथ जमानत देने की व्यवस्था है। लिहाजा, मुझे जमानत दे दी गई है। मैं इंसाफ का कायल हो गया हूं। यह पहला चरण है। अभी कानूनी रास्ते खुले हैं। बहुत सारे विकल्प हैं। आगे सेशन कोर्ट जाएंगे सारा जीवन ही संघर्ष का है।’

रामपुर के विधायक आजम खान को 3 साल की सजा मिलने के चलते उनकी विधानसभा सदस्यता इसी आधार पर रद्द की गई है। अब उनके पास केवल एक मात्र कानूनी विकल्प उच्च न्यायालय में अपील दाखिल करके राहत हासिल करना है। हालांकि यहां से राहत मिलने की संभावना बेहद कम है। क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने साल 2013 के फैसले में ही सामान्य लोगों और चुने हुए जनप्रतिनिधियों के बीच भेदभाव को समाप्त कर दिया था। सांसद और विधायकों को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत सुरक्षा हासिल थी। अब आजम खान पर जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(3) भारी पड़ेगी। दरअसल, कानून की इस धारा के तहत अगर किसी व्यक्ति को किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या उससे अधिक की जेल की सजा सुनाई जाती है तो वह सजा की अवधि और अतिरिक्त छह साल के लिए अयोग्य हो जाएगा। मतलब, साफ है कि मोहम्मद आजम खान सजा सुनने से लेकर अगले 9 वर्षों तक चुनावी राजनीति से फिलहाल बाहर हो चुके हैं।

 

आजम का सियासी सफर
आजम खान ने 1980 में पहली बार जनता दल (सेक्युलर) के टिकट पर विधायक का चुनाव जीता और अगले कई दशकों तक रामपुर की सियासत में घुल गए। वह रामपुर से 10 बार विधायक रहे हैं। 1992 में जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई तब आजम खान भी इसके संस्थापक सदस्य थे। आजम खान समाजवादी पार्टी के संगठन में भी कई पदों पर रहे। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के खराब प्रदर्शन और दूसरे महासचिव अमर सिंह के बीच विवाद की वजह से आजम खान ने 17 मई 2009 को महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था। आजम खान जहां रामपुर से पार्टी की उम्मीदवार जया प्रदा का विरोध करते रहे हैं वहीं अमर सिंह जया प्रदा का समर्थन करते रहे थे। अमर और आजम के बीच बात इतनी बढ़ गई थी कि पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह को बीच आना पड़ा था। मुलायम सिंह ने आजम खान और अमर सिंह को खरी खोटी सुनाई थी। मुलायम सिंह ने तो यहां तक कह दिया था कि आजम पार्टी विरोधी काम कर रहे हैं। 2006 में आजम खान ने रामपुर में मौलाना जौहर यूनिवर्सिटी स्थापित की थी लेकिन आरोप है कि उन्होंने इस यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए आम लोगों की जमीनों पर कब्जे किए, यूनिवर्सिटी करीब 78 हेक्टेयर भूमि में बनी है जिसमें से 38 हेक्टेयर के करीब जमीन या तो सरकारी है या शत्रु संपत्ति है या दलितों से छीनी गई है।

आजम के सबसे चर्चित बयान

आजम खान ने साल 2010 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद को लेकर कहा था कि वह कश्मीरी हैं भारतीय नहीं साथ ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर को लेकर कहा था कि यह भारत का हिस्सा नहीं, बल्कि विवादास्पद है, उनके इस बयान पर भी काफी हंगामा हुआ था। साल 2009 में उस वक्त काफी चर्चा में आए थे जब समाजवादी पार्टी ने कल्याण सिंह के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। समाजवादी पार्टी उस चुनाव में केवल 23 सीट जीत पाई थी इसके बाद आजम ने इसका दोष मुलायम और कल्याण की दोस्ती को देते हुए कहा था कि मुसलमान इससे आहत हैं। मुलायम ने आजम को छह वर्ष के लिए पार्टी से निकाला था। इतना ही नहीं 2014 में कारगिल युद्ध पर भी विवादित बयान दिया था। उस वक्त वह उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। उन्होंने कहा था कि 1999 में हुए कारगिल युद्ध को मुस्लिम सैनिकों द्वारा जीता गया है। इसके अलावा उन्होंने 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी एक विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी हमें तुम्हारा गम नहीं चाहिए, देश की लगाम कातिल के हाथ नहीं सौंपनी है, देश को एक हत्यारे के हाथ नहीं सौंपना है, बटन दबाकर मुजफ्फरनगर का बदला लेना है।

गौरतलब है कि आजम खान इसी साल मई में लगभग 2 साल तक सजा काटने के बाद रिहा हुए थे। उनके खिलाफ करीब 80 से ज्यादा मामले चल रहे हैं। साल 2012 से 2017 तक वे अखिलेश यादव की सरकार में नंबर 2 की हैसियत रखते थे। वह अपनी ठसक की वजह से अलग पहचान बनाए हुए थे, लेकिन 2017 के बाद जब से राज्य में सरकार बदली है, वह कानूनी मामलों में ऐसे उलझे हैं, जिससे उबर नहीं पा रहे हैं। इस फैसले का असर अखिलेश यादव पर भी पड़ेगा। प्रदेश में निकाय चुनाव आने वाले हैं और सपा के लिए मुस्लिम वोट बैंक काफी महत्वपूर्ण है। ऐसे में सपा का बड़ा मुस्लिम चेहरा, आजम खान की विधायकी छिन जाना वोटर्स को जो संदेश देगा, वह सपा के लिए अच्छा नहीं है। इसके अलावा, साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आजम खान की भागीदारी नहीं ले पाएंगे।

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