रामजन्मभूमि विवाद की लगभग तीन हफ्ते की सुनवाई के बाद इस मुद्दे ने एक बार फिर से नया मोड़ ले लिया है। हिन्दू और मुस्लिम पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा एक बार फिर से कोर्ट के बाहर इस मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं। इसके लिए दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखा है। यह विवाद अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने वर्ष 1961 में विवादित जमीन के मालिकाना हक के लिए केस किया था। बोर्ड ने अदालत द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखकर दोबारा बातचीत शुरू करने की मांग की है। इसी तरह का पत्र निर्वाणी अखाड़े ने भी उच्चतम न्यायालय को लिखा है। यह अयोध्या के तीन रामआनंदी अखाड़े में से एक है जो हनुमान गढ़ी मंदिर का संचालन और देखरेख करता है।
गौरतलब है कि मध्यस्थता पैनल में शीर्ष अदालत के पूर्व जज एफएम कलीफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थता के लिए मशहूर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल थे। इस पैनल की अध्यक्षता जज कलीफुल्ला कर रहे थे। पैनल ने 29 जुलाई को बातचीत बंद कर दी थी क्योंकि जमीयत उलेमा ए हिंद (मौलाना अरशद मदनी) ने कट्टरपंथी स्टैंड अपनाया और राम जन्मभूमि न्यास ने विवादित स्थल पर मंदिर बनाने की मांग की। जिसके बाद बात बिगड़ गई थी।
सूत्रों के मुताबिक, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़े ने न्यायालय के मध्यस्थता पैनल में विश्वास जताया है और समझौते पर बातचीत करने की मांग की है। उलेमा ए हिंद और राम जन्मभूमि न्यास की वजह से बात बिगड़ने से पहले तक दोनों पक्ष लगभग अंतिम निर्णय पर आ गए थे लेकिन दो पक्षकारों के हार्ड स्टैंड के कारण यह कोशिश रुक गई थी। मध्यस्थता पैनल की प्रक्रिया आठ मार्च से शुरू हुई थी और 155 दिनों तक चली थी। अब रामआनंदी अखाड़े और निर्मोही अखाड़े ने मध्यस्थता की वकालत की है।
उलेमा ए हिंद और राम जन्मभूमि न्यास की वजह से बात बिगड़ने से पहले तक दोनों पक्ष लगभग अंतिम निर्णय पर आ गए थे। इसमें मुस्लिम पक्ष विवादित स्थल पर दावा छोड़ने वाला था (जहां हिंदू पक्ष मंदिर बनाना चाहता है), मुस्लिमों को मस्जिद निर्माण के लिए फंड और दूसरी जगह दी जानी थी। फिर से बातचीत चाहनेवाली दोनों पार्टियों को लगता है कि चीफ जस्टिस के लिए इसकी इजाजत देना मुश्किल काम नहीं है और यह (बातचीत) सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के साथ-साथ भी चल सकती है।