राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में कल 11 सितंबर बुधवार को मुस्लिम पक्ष ने कहा कि 22 दिसंबर 1949 को जो गलती हुई, उस गलती को लगातार जारी नहीं रखा जा सकता। साथ ही मुस्लिम पक्ष ने यह भी कहा कि क्या रामलला विराजमान कह सकते हैं कि उस जमीन पर मालिकाना हक उनका है?
सुनवाई के 21वें दिन मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष कहा कि पीठ को महज दो बिन्दुओं पर विचार करना है। पहला, विवादित स्थल पर मालिकाना हक किसका है और दूसरा, क्या गलत परंपरा को जारी रखा जा सकता है? मामले की अगली सुनवाई आज होगी।
कल बुधवार को हुई सुनवाई में धवन ने कहा कि 22 दिसंबर, 1949 की रात मस्जिद के गुंबद के नीचे मूर्ति रखी गई। ऐसा करना गलत था। जनवरी 1950 में मजिस्ट्रेट द्वारा इस गलत चीज को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया जाता है तो क्या इस गलती को जारी रखा जा सकता है। उन्होंने सवाल किया कि क्या इस आधार पर कोई उस जगह पर अपना अधिकार का दावा कैसे कर सकता है। दूसरे पक्ष को यह साबित करना होगा कि 22 दिसंबर की रात से पहले क्या हुआ था।
साथ ही धवन ने निर्मोही अखाड़े के वाद का विरोध करते हुए कहा कि सेवादार के अलावा अन्य चीजों पर उनका दावा नहीं बनता, क्योंकि वे मालिक नहीं हैं। वे सिर्फ सेवादार है और सेवादार और ट्रस्टी में फर्क होता है।