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सवालों में उलझा अतीक-अरशद हत्याकांड

 

  •  राजकुमार भाटी
    राष्ट्रीय प्रवक्ता, समाजवादी पार्टी

 

भारत जैसे देश में जहां हिरासत में हुई क्रूर मौतों का एक लंबा इतिहास रहा है शायद यह पहली बार हुआ है जब पुलिस हिरासत में किसी व्यक्ति की हत्या किसी तीसरे पक्ष ने कर दी हो। सवाल यह है कि खतरनाक उच्च सुरक्षा वाले कैदियों के इतने करीब तक मीडिया को जाने की स्वीकृति किसने दी? अतीक और अरशद को देर रात अस्पताल ले जाने के बारे में मीडिया को इत्तला किसने की? ऐसे एक नहीं अनेकों सवाल हैं, जो प्रयागराज में हुए दोहरे हत्याकांड को लेकर हर जनमानस के मन में तैर रहे हैं

चार दशक तक उत्तर प्रदेश में आतंक का पर्याय रहे माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अरशद की पुलिस के सख्त पहरे के बीच हुई हत्या को लेकर उठे बहुत से सवाल अभी भी अनसुलझे हैं और शायद ही कभी इन सवालों के जवाब मिल पाएं। पुलिस की मानें तो ये हत्याएं 18,20 और 21 वर्ष के 3 नौजवानों ने अपराध की दुनिया में अपना नाम करने के लिए की। लेकिन पुलिस की इस कहानी पर विश्वास करना इतना आसान नहीं है। हत्या करने वाले नौजवानों में से एक बांदा का, दूसरा हमीरपुर का और तीसरा कासगंज का रहने वाला है। इन तीनों शहरों की आपसी दूरी लगभग 400 किलोमीटर है। चार सौ किलोमीटर के दायरे में रहने वाले जरायम की दुनिया के तीन नौसिखिए नौजवान आपस में कैसे मिले और उन्होंने किस तरह अतीक और अशरफ की हत्या की योजना बनाई यह पहेली अभी अनसुलझी है। इन तीनों को विदेश में बनी महंगी पिस्टल किसने मुहैया कराई? मीडिया रिपोर्टों के अनुसार तीनों में से किसी की भी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे सात-सात लाख रुपए के कीमत की पिस्टल खरीद सकते। इन लोगों को रिपोर्टर के पहचान पत्र और चैनल की आईडी किसने उपलब्ध कराई? होटल में इनके रुकने का इंतजाम किसने किया? ये सारे प्रश्न अभी अनसुलझे हैं।

पिछले कई महीने से इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चैनलों पर दिखाया जा रहा था कि अतीक और अरशद को किस तरह पुलिस के भारी सुरक्षा घेरे में एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता था। उनकी सुरक्षा में आधुनिक हथियारों से लैस पुलिसकर्मी तैनात रहते थे। उन दृश्यों को देखने के बाद कोई भी आसानी से अंदाजा लगा सकता था कि हमला करना खतरे से खाली नहीं है। तो केवल नाम के लिए इतना बड़ा रिस्क इन नौजवानों ने कैसे लिया? फिर जितनी आसानी से ये तीनों दो माफिया डॉन की हत्या करके सरेंडर हो गए क्या वह परिस्थिति अचानक पैदा हो गई थी या जान-बूझकर ऐसी परिस्थिति बनाई गई थी। रात को 10ः30 बजे मेडिकल चेकअप के लिए अस्पताल में लाने की क्या जरूरत थी और बाकी दिन जब भारी सुरक्षा बंदोबस्त के साथ ही इन्हें ले जाया जाता था तो उस दिन कम सुरक्षा के साथ भेजने की क्या जरूरत थी? गाड़ी को अस्पताल के गेट के बाहर रोक कर इन्हें पैदल क्यों आगे ले जाया गया? जबकि पहले के दृश्यों में हर समय गाड़ी को उस कमरे तक ले जाया जाता था जहां जाना होता था। मीडिया को आसानी से इनके पास क्यों आने दिया गया? जबकि पहले मीडिया वालों को इनके पास तक भटकने भी नहीं दिया जा रहा था। और सुरक्षा में लगे हथियारबंद पुलिसकर्मियों ने उन्हें बचाने की कोशिश क्यों नहीं की? हत्यारों ने आराम से उनकी हत्या कर हाथ खड़े कर फिल्मी अंदाज में सरेंडर किया और पुलिस वालों ने आराम से उन्हें पकड़ लिया। जब इन हत्यारों को मीडिया के सामने पेश किया गया तो उन्होंने पुलिस की तारीफ करते हुए कहा कि पुलिस ने बहुत तत्परता के साथ कार्रवाई करते हुए हमें पकड़ा। शायद यह पहला केस होगा जिसमें पकड़े गए अपराधी पुलिस की तत्परता का प्रमाण पत्र दे रहे थे।

हत्या के षड्यंत्र की तह तक जाने के लिए पुलिस ने इनसे ठीक-ठाक गहराई से जांच-पड़ताल किए बिना ही जल्दबाजी में जेल क्यों भेज दिया? क्या पुलिस ने इनके मोबाइल हासिल किए और उनकी लोकेशन और कॉल रिकॉर्ड की जांच की? क्या पुलिस ने उनसे पूछने की कोशिश की कि इस हत्या के पीछे असली मास्टरमाइंड कौन है? पुलिस की इस राज को खोलने में दिलचस्पी क्यों नहीं है? ये तमाम ऐसे प्रश्न हैं जो हत्या के किसी बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करते हैं। इस दौरान के अखबार और मीडिया रिपोर्टों को देखने से पता चलता है कि पिछले कुछ समय में ईडी ने प्रयागराज के कई ऐसे व्यवसायियों, बिल्डरों और रियल एस्टेट व्यापारियों से पूछताछ की है जिनके अतीक अहमद से जुड़े होने की आशंका है। मीडिया में जिन व्यवसायियों के नाम आ रहे हैं उनमें संजीव अग्रवाल, मोहम्मद मुस्लिम, खालिद जफर, अमित भार्गव और अमित गोयल आदि के नाम प्रमुख हैं। प्रयागराज की गलियों में यह खबर भी आम हैं कि अतीक अहमद के साथ जमीनों की खरीद-फरोख्त और कब्जे के व्यवसाय में भारतीय जनता पार्टी के कई नेता भी शामिल थे। एक मंत्री पर पांच करोड़ के लेन-देन का आरोप लग रहा है। एक दूसरे बिल्डर से 80 लाख रुपये आने की बात जांच में सामने आई है। अगर इन तमाम सवालों के जवाब खोजे जाएं और इस हत्याकांड की जांच बारीकी से की जाए तो बहुत बड़े राज खुल सकते हैं और इसमें कई बड़े-बड़े सफेदपोश लिप्त पाए जा सकते हैं।

(लेखक के ये अपने विचार हैं।)

कौन देगा इन सवालों के जवाब

    •   जब भारी सुरक्षा बंदोबस्त के साथ अतीक और अरशद को ले जाया जाता था तो उस दिन कम सुरक्षा के साथ क्यों भेजा गया?
      गाड़ी को अस्पताल के गेट के बाहर रोक कर अतीक और अरशद को पैदल क्यों आगे ले जाया गया?
      मीडिया को आसानी से दोनों के पास क्यों आने दिया गया?
      सुरक्षा में लगे हथियारबंद पुलिसकर्मियों ने अतीक और अरशद को बचाने की कोशिश क्यों नहीं की?
      क्या पुलिस ने आरोपियों के मोबाइल हासिल किए, उनकी लोकेशन और कॉल रिकॉर्ड की जांच की?
      दोहरे हत्याकांड के पीछे असली मास्टरमाइंड कौन है?
      वह मंत्री कौन है जिस पर पांच करोड़ के लेन-देन के लग रहे हैं आरोप?

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