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तेज हुई जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट 

देश में इन दिनों एक ओर जहां 18 जुलाई हो होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए सियासत गरमाई हुई है वहीं साल के अंत में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के साथ – साथ जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट तेज हो गई है। जम्मू – कश्मीर में इस बार के चुनाव कुछ अलग होंगे, क्योंकि पहली बार जम्मू-कश्मीर में तब चुनाव होंगे जब अनुच्छेद 370 का अस्तित्व नहीं रह गया है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर भी कश्मीरी पंडितों समेत जम्मू की हिंदू आबादी के वोट होगा ।


कुछ दिन पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर्ण सिंह ने राज्य में चुनाव करवाने और अनुच्छेद 370 बहाल करने की मांग उठाई थी, जिसको लेकर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि जैसे ही मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी, वैसे ही चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी जाएंगी। इस के बाद से ही राज्य में राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं । राज्य के दो प्रमुख दल नेशनल कांफ्रेंस और जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने साथ में चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी है। यह घोषणा श्रीनगर में एक प्रेस कांफ्रेंस में पूर्व मुख्यमंत्री एवं एनसी नेता डा. फारूक अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने की है। इससे पहले भी उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने संकेत दिए थे कि गठबंधन में शामिल दल मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं और अब इस पर मुहर लग गई है। इससे पहले इन दलों ने डीडीसी का चुनाव भी मिलकर लड़ा था।


बता दें कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद कुछ विपक्षी दलों ने मिलकर पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन यानी गुपकार गठबंधन बनाया था। इसमें पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), नेशनल कॉन्फ्रेन्स, जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेन्स, आवामी नेशनल कॉन्फ्रेन्स और सीपीआई-एम शामिल थे। लेकिन अब जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेन्स इससे अलग हो गई है। फारूक़ अब्दुल्ला ने पीपल्स कॉन्फ्रेन्स के नेता सज्जाद लोन को लेकर सवाल उठाए हैं और कहा है कि उनकी पार्टी का गुपकार गठबंधन में शामिल होना एक साजिश थी।

कहा जा रहा है कि गुपकार गठबंधन भाजपा और कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बनेगा ही साथ ही यह राज्य की छोटी पार्टियों जैसे अपनी पार्टी और पीपल्स कॉन्फ्रेन्स की भूमिका को भी बहुत हद तक सीमित कर देगा। लेकिन गुपकार गठबंधन के लिए सीटों का बंटवारा करना भी आसान नहीं होगा।परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या को 83 से बढ़ाकर 90 कर दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है जब जम्मू-कश्मीर में 9 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गई हैं।

अगर राजनीतिक दलों की तैयारियों की बात करें तो गुपकार गठबंधन की ओर से फारुख अब्दुल्ला का एक बयान वायरल हो रहा है । जिसमें उन्होंने कहा है कि अमरनाथ यात्रा की कश्मीरी लोग वर्षों से पूरे दिल से स्वागत करते आए हैं। गुफा की खोज करने वाला व्यक्ति पहलगाम का रहने वाला मुसलमान था। कभी भी मुसलमान ने किसी धर्म के खिलाफ उंगली नहीं उठाई है, वे भाईचारे में रहे। 90 के दशक में वह हवा आई, पर वह हमारी हवा नहीं थी। वह कहीं और से आई थी और उसका खामियाजा हम आज भी भुगत रहे हैं। उनके इस बयान को लेकर कहा जा रहा है कि वे सिर्फ मुस्लिम पॉलिटिक्स नहीं बल्कि कश्मीरी पंडितों की हमदर्दी हासिल करने की भी कोशिश करेंगे। क्योंकि पिछले दिनों जिस तरह से एक के बाद एक कश्मीर में लोगों की हत्याएं हो रही थी और कश्मीरी पंडित सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी और प्रदर्शन कर रहे थे उससे साफ है कि कहीं न कहीं कश्मीरी पंडितों का एक तबका सरकार से नाखुश है। इसके अलावा देश में फैल रही मुसलमानों के खिलाफ अराजकता को मुद्दा बनाकर गुपकार गठबंधन भाजपा पर हमला बोलने की पूरी कोशिश करेगा।


एक रिपोर्ट के मुताबिक,कांग्रेस द्वारा गुपकार गठबंधन को समर्थन दिए जाने की बात इसलिए कही जा रही है ,क्योंकि फारुख अब्दुल्ला अभी तक कश्मीर की स्वायत्तता की मांग करते आए हैं, वो पहली बार यह कहा है कि उन्हें कोई आपत्ति नहीं कि कश्मीर के हर एक घर में तिरंगा हो, लेकिन ये हर एक की ख़ुद की सहमति से होना चाहिए। बल्कि ज़बरदस्ती नहीं।इसके बाद अब सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हो रही है जिसमे पत्रकार उनसे राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सवाल किए। जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा 9 जुलाई के कश्मीर आ रहे हैं। इसी दौरान पत्रकारों ने उनसे हर घर तिरंगा कैम्पैन को लेकर सवाल भी पूछ लिया, जिस पर फारूक अब्दुल्ला ने बिगड़ते हुए कहा ‘ये अपने घर रखो।’और फिर पिछले दिनों हुई हत्याओं को कांग्रेस साल 1990 पर हावी करने का मुद्दा ज़रूर बनाएगी।वहीं दूसरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गणतंत्र दिवस के मौके पर लाल किला से कहा था, कि पहले जम्मू-कश्मीर में परिसीमन होगा फिर चुनाव। ऐसे में ये समझना ज़रूरी है कि परिसीमन में सीमाएं निर्धारित कर दी जाती हैं, और सीटों को आबादी के हिसाब से घटाया बढ़ाया जाता है, जैसा कि तय था कि अगर जम्मू में 6-7 सीटों की बढ़ोत्तरी होती है तो भाजपा को फायदा मिल सकता है और उसकी सरकार भी बन सकती है। हुआ भी यही, परिसीमन के बाद जम्मू में 6 सीटें और कश्मीर में एक विधानसभा सीट बढ़ाई गई। यानी जम्मू में 37 से बढ़ाकर 43 और कश्मीर में 46 से बढ़ाकर 47 विधानसभा सीटें कर दी गई हैं।

जम्मू क्षेत्र के 6 जिलों- किश्तवाड़सांबाकठुआडोडा राजौरी और उधमपुर जिलों में एक-एक नई सीट जोड़ी जानी हैजबकि एक सीट कश्मीर क्षेत्र के कुपवाड़ा में जोड़ी गई है। हालांकि कांग्रेस समेत बाकी विपक्षी पार्टियों ने इसपर सवाल खड़े किए और कहा कि जब पूरे देश के बाकी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर 2026 तक रोक लगी हैतो फिर जम्मू-कश्मीर के लिए अलग से परिसीमन क्यों हो रहा है।अब इसे राजनीतिक ढंग से देखेंपार्टियां जनसंख्या के लिहाज से ज्यादा आबादी वाले मुस्लिम बहुल कश्मीर में कम सीटें बढ़ाने और हिंदू बहुल जम्मू में ज्यादा सीटें बढ़ाने के कदम की आलोचना कर रही हैं। क्योंकि 2011 की जनगणना के अनुसारकठुआसांबा और उधमपुर हिंदू बहुल हैं। कठुआ की हिंदू आबादी 87 प्रतिशत  , सांबा और उधमपुर की 86 प्रतिशत   और 88 प्रतिशत   है। किश्तवाड़डोडा और राजौरी जिलों में भी हिंदुओं की आबादी 35 से 45 प्रतिशत है।

वर्ष 2008 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 87 में से 11 सीटें जीती थींलेकिन 2014  में भाजपा 25 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी  थी। 2014 विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपनी सभी 25 सीटें जम्मू क्षेत्र से ही जीती थींजबकि कश्मीर में उसका खाता तक नहीं खुला था।ऐसे में माना जा रहा है कि परिसीमन में जम्मू में 6 सीटें और जुड़ने से भाजपा और मजबूत होगी। वहीं इससे पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस को नुकसान होने की आशंका  है। यानी सीधे  लीग से हटकर भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में जो परिसीमन करवाया वो सीधे तौर पर राजनीतिक थी  ऐसे में अगर जम्मू की हिंदू आबादी ने साल 2014 की तरह उसे वोट किया तो कश्मीर के किसी छोटे दल का समर्थन लेकर भाजपा सरकार बना सकती है।

इसके अलावा भाजपा कश्मीरी पंडितों को लुभाने के तमाम कोशिशों में जुटी हुई है।राजनीतिक दल भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं कि  कश्मीरी पंडितों को लुभाने के लिए  उसने द कश्मीर फाइल्स  फिल्म बनवाई जिसमें ऐसे दृश्य दर्शाए गए हैं  जिसे देख किसी का भी सीना पसीज जएगा फिल्म के दृश्यों को लोगों के भीतर सच बनाकर थोपा जा रहा थालेकिन धीरे-धीरे ही सही देश को पता चला कि ये महज़ एक फिल्म हैऔर 1990 में जो कश्मीरी पंडितों के साथ हुई घटना से  बिल्कुल अलग है। इसके अलावा  जम्मू में भाजपा अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर खुद का गुणगान ज़रूर करेगी। वहीं कश्मीर में सुरक्षा की दुहाई देकर वोट ज़रूर मांगेगी। फ़िलहाल भाजपा के मुकाबले विपक्षियों के पास जीत के मुद्दे कम ही हैं।  

 

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