राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का आज 29वां स्थापना दिवस है। इसके उपलक्ष्य में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रमुख न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा कि, ‘समाज के वंचित वर्गों के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक उत्थान के लिए कई उपाय किए गए हैं। हालांकि अभी भी सकारात्मक कार्रवाई की जरूरत है।
NHRC प्रमुख ने कहा कि, यह स्पष्ट करने का समय आ गया है कि समग्र विकास सुनिश्चित करने के लिए उन वर्गों को भी आरक्षित श्रेणी के तहत आरक्षण मुहैया कराया जाए, जिन्हें अब तक यह सुविधा नहीं मिली है। क्योंकि आरक्षण का फायदा समाज के निचले तबके तक नहीं पहुंचा है। क्योंकि समाज के वंचित वर्गों के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक उत्थान के लिए कदम उठाए गए हैं लेकिन अभी और सकारात्मक कार्रवाई किए जाने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने जेल के सुधारों की बात भी कही। न्यायमूर्ति मिश्रा ने मानवाधिकारों से संबंधित कई और भी मुद्दों पर बातचीत की और कहा कि लैंगिक समानता सभी के लिए जरूरी है।
मानवाधिकार आयोग के कार्य
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना 12 अक्टूबर 1993 में की गई थी। इसकी स्थापना मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अंतर्गत की गयी थी। यह संविधान द्वारा निश्चित किए गए एवं अंतरराष्ट्रीय संधियों में निर्मित व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है। आयोग केंद्र एवं राज्य स्तर पर सरकार में मानव अधिकार केंद्रित दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर कार्य करने के साथ-साथ लोक प्राधिकारियों एवं नागरिक समाज के बीच मानव अधिकार जागरूकता एवं संवेदनशीलता उत्पन्न करने की दिशा में कार्यरत है। नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ आयोग उनके आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करता है। मानवाधिकार आयोग का कार्य यह है कि मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों पर सरकार को निर्देश देना एवं इन निर्देशों का उल्लंघन करने वालों को दंडित करना। क्योंकि यह आम जनता के अधिकारों के लिए लड़ता है और उनका नेतृत्व करता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एचएल दत्तू ने इस आयोग को परिभाषित करते हुए कहा था कि, ‘यह आयोग एक दन्त-विहीन बाघ है’।