- एलबी रॉय
देश भर में प्रति वर्ष दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर पश्चिम बंगाल के लोग इसे उत्सव के रूप में मनाते हैं। यही वजह है कि इन दिनों उत्तराखण्ड के ऊट्टामसिंह नगर जिले के दिनेशपुर, कालीनगर, जगदीशपुर, खानपुर आदि बंगाली बाहुल्य क्षेत्रों में भी दुर्गा पूजा को लेकर उत्साह है। इसके लिए शारदीय दुर्गा पूजा महोत्सव पर होने वाले पांच दिवसीय मेले के लिए आयोजक समिति की ओर से तैयारी पूरी कर ली गई है। क्षेत्र में दिनेशपुर के अलावा अन्य स्थानों में भी दुर्गा पूजा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। स्थानीय कलाकारों द्वारा देवी प्रतिमाओं को मुहूर्त रूप देने का कार्य जोरों पर है
हिंदू धर्म में कई त्योहार होते हैं, जिन्हें देशभर में बड़े ही धूमधाम और भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। ये त्योहार बिल्कुल किसी उत्सव के समान लगते हैं लेकिन कुछ त्योहार किसी खास स्थान का प्रमुख त्योहार बन जाते हैं। जैसे दिल्ली की दिवाली, केरल का ओणम और महाराष्ट्र का गणेश उत्सव, लेकिन बात करें दुर्गा पूजा की तो यह पश्चिम बंगाल का प्रमुख त्योहार है। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा को लोग अलग और खास तरीके से मनाते हैं। ऐसे में उत्तराखण्ड के तराई इलाकों में बसे बांग्लाभाषी लोग प्रति वर्ष दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े धूमधाम से मनाते हैं। खासकर दिनेशपुर के दुर्गा पूजा महोत्सव की बात ही अलग होती है, इसमें लाखों की जनसंख्या आती है, सिर्फ क्षेत्र से ही नहीं, दूसरे प्रदेशों से भी लोग आते हैं। दशमी पूजन के बाद मां की मूर्ति को सिंदूर लगाकर विसर्जन किया जाता है और इसी के साथ दुर्गा पूजा महोत्सव का समापन हो जाता है।
इसीलिए दिनेशपुर नगर क्षेत्र, कालीनगर, जगदीशपुर, खानपुर आदि बंगाली बाहुल्य क्षेत्रों में भी दुर्गा पूजा को लेकर उत्साह है। यही वजह है कि दिनेशपुर बंगाली बाहुल्य क्षेत्र में नवरात्र पर्व पर शारदीय दुर्गा पूजा महोत्सव पर होने वाले पांच दिवसीय मेले के लिए आयोजक समिति की ओर से तैयारी पूरी कर ली गई है। क्षेत्र में दिनेशपुर के अलावा अन्य स्थानों में भी दुर्गा पूजा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। स्थानीय कलाकार देवी प्रतिमाओं को मुहूर्त रूप देने में लगे हुए हैं। पांच दिवसीय मेले के आयोजन हेतु दुकानें भी सजने लगी हैं। 1 अक्टूबर (षष्टी) से शुरू होने वाला दुर्गा महोत्सव पांच अक्टूबर को विसर्जन और सिंदूर खेला के साथ संपन्न होगा। पूजा और पांडाल सजाने की तैयारी के साथ ही मूर्तियों की एडवांस बुकिंग चल रही है। वहीं, मूर्तिकारों में भी उत्साह देखने को मिल रहा है।
गौरतलब है कि कृष्ण पक्ष में अमावस्या के समाप्त होने के बाद, शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के ब्रह्मा मुहूर्त में, दुर्गा जी के पृथ्वी पर आबिरभव के उपलक्ष्य में, महालय का विशेष कार्यक्रम होता है और इसी के साथ ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाती है। मूर्तिकार देवी की मूर्ति को आकार देता है। मूर्तिकार के उंगलियों के जादू से उस मिट्टी को सर झुकाने लायक स्वरूप में परिवर्तित कर देता है जिसे कल तक कोई पूछता नहीं था। भक्तों में सबसे अधिक उत्सुकता दुर्गा जी के मुख मण्डल को लेकर रहती है कि दुर्गा पूजन महोत्सव मे बनने वाली सारी प्रतिमाओं में दुर्गा जी का मुख मंडल सबसे अधिक आकर्षक, मनमोहक और सम्मोहक हो, जिसमें भक्तों को प्रदान करने वाली दया, करुणा ममता स्नेह के भाव के साथ-साथ आसुरी शक्तियों को वध करने का क्रोध भी हो। दुर्गा जी के साथ-साथ लक्ष्मी, सरस्वती सहित अन्य प्रतिमाओं को भी बहुत ही आकर्षक स्वरूप दिया जाता है।
इस दौरान कदली छेदन (कला काटा) के बाद शष्टि से दशमी तक पूजा होती है। उन दिनों में रात भर जात्रागान का आयोजन होता था। लेकिन समय बदल गया है। वर्तमान समय में दुर्गा पूजा महोत्सव के सारे कार्यक्रम होते हैं, परंपरागत लोक मंच अब नहीं रहा। दुर्गा पूजा महोत्सव में बंगाली बाहुल्य क्षेत्रों के हर घर में नए कपड़े सिलवाए एवं खरीदे जाते हैं। पूरे साल भर बच्चों को दुर्गा पूजा का इंतजार रहता है। दुर्गा पूजा महोत्सव में प्रतिदिन शंख, करताल, धुनोची नृत्य आदि रोज होता है। मेला बाजार बहुत ही बड़ा लगता है। बंगाली मिठाई रशो गोल्ला, पंतुआ, काला जाम, चमचम, दाना दार, बोर्फी आदि को विशेष पसंद किया जाता है। हर घर में खूब सारे मेहमान भी आते हैं। दुर्गा पूजा महोत्सव बंगाली समाज में सबसे प्रमुख त्योहार होता है।