अगले कुछ महीनों में देश के पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। पश्चिम बंगाल, केरल, असम, तमिलनाडु और पुडुचेरी विधानसभाओं के लिए होने जा रहे इन चुनावों में केवल बंगाल ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस की रणनीति अभी तक साफ नजर नहीं आ रही है। खासकर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस तरफ से पूरी तरह उदासीन प्रतीत हो रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा ने अपनी सारी ताकत ममता बनर्जी को हराने के लिए झोंक डाली है। स्वयं प्रधानमंत्री राज्य का तीन बार दौरा कर चुके हैं तो गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी बंगाल का ताबड़तोड़ दौरा करने में जुटे हैं।
राहुल ने लेकिन अभी तक एक बार भी बंगाल का न तो दौरा किया और न ही उन्होंने इस बाबत पार्टी की रणनीति को स्पष्ट किया है। केरल से सांसद राहुल गांधी लगातार केरल, तमिलनाडु, असम और एक बार पुडुचेरी तक का दौरा कर चुके हैं। लेकिन बंगाल के मोर्चे पर उन्होंने खामोशी अख्तियार कर ली है। उनकी इस उदासीनता के कई मायने निकाले जा रहे हैं। हालांकि लोकसभा में पार्टी के नेता और पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अधीर रंजन चैधरी लगातार इस बात का दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस पूरी ताकत से तृणमूल और भाजपा के खिलाफ मैदान में है, पार्टी सूत्रों का आंकलन उनके दावों से बिल्कुल अलग है। इन सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी एंटी भाजपा वोटों के बंटवारे को रोकना चाहते हैं। उनका मानना है कि इन चुनावों में भाजपा यदि तृणमूल को सत्ता से बेदखल करने में सफल नहीं होती है तो राष्ट्रीय स्तर पर इसका बड़ा असर होगा।
राहुल की रणनीति असम और केरल में कांग्रेस की सरकार बनाना, पुडुचेरी में सत्ता में वापसी और तमिलनाडु में डीएमके के संग मिलकर सरकार गठन करने की है। कांग्रेस के इन रणनीतिकारों का मानना है कि लेफ्ट फ्रंट का कोर वोट बैंक अब बंगाल में पूरी रह समाप्त हो चला है। उनका तर्क है कि पिछले विधानसभा चुनावों में लेफ्ट फ्रंट संग गठबंधन का खास फायदा दोनों ही दलों को नहीं मिला था। लेफ्ट मात्र तीस सीटें जीत पाया तो कांग्रेस के खाते में 44 सीटें आई थी।
यही कारण है कि राहुल गांधी भाजपा विरोधी वोटों के बंटवारे को रोकने की नीयत से बंगाल में ज्यादा फोकस नहीं कर रहे हैं। हालांकि खुले तौर पर टीम राहुल इस रणनीति की बाबत कुछ बोलने से कतरा रही है। लेकिन भाजपा की ‘परिबोरतन यात्रा’ और तृणमूल की धुआंधार चुनावी रैलियों के बीच कांग्रेस का मैदान में कहीं नजर नहीं आना साफ कर रहा है कि राहुल इन चुनावों में दीदी की वापसी के लिए गुपचुप तरीकों से काम कर रहे हैं।