26 जनवरी की किसान ट्रैक्टर परेड में हुए उपद्रव के बाद एक बारगी लगने लगा था कि किसान नेता अब आंदोलन से दूरी बना लेंगे। लेकिन 27 जनवरी की रात किसान नेता राकेश टिकैत जब मिडिया के सामने रोने लगे तो उनके आंसुओ ने जनसैलाब लाने का काम किया। सरकार के लिए वह रात राजनीतिक रूप से कातिल रात साबित हुई।
उस रात पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गावों में मंदिरो पर धार्मिक भजन संध्या बजाने वाले लाउडस्पीकर का प्रयोग राजनैतिक जागरूकता लाने के लिए किया गया। बताया जा रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बाहुल्य गावों में मंदिरों के लाउडस्पीकरों से उद्घोष किया गया। जिसमे अपने अपने घरो से निकलने का आह्वान करते हुए कहा गया कि प्रत्येक घरो से किसान बाहर निकले और किसान रैली में शामिल हो।
बताया जा रहा है कि 27 जनवरी की रात को ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकतर किसान बाहर निकल आए और गाजीपुर बॉर्डर का रुख कर लिया। उसी रात हजारो की तादात में किसान घरों से बाहर निकलकर दिल्ली – उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंच गए। जबकि जो किसान रात में नहीं निकल सके वह अगले दिन अपने अपने क्षेत्रों की किसान पंचायतो में पहुंच गए। इनमे ज्यादातर किसान मुजफ्फरनगर की किसान रैली में पहुंचे थे। यही वजह रही कि मुज्जफरनगर की रैली जबरदस्त सफल रही।
इस रैली का नेतृत्व किसान नेता राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत कर रहे थे। इस रैली में उमड़े भारी जनसमूह से सत्तासीन भाजपा सरकार की धड़कने बढ़ गयी। इस रैली में आम आदमी पार्टी के उत्तर प्रदेश प्रभारी और सांसद संजय सिंह भी पहुंचे। यही नहीं बल्कि चौधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ने भी इस रैली में भागीदारी की।
जिस राष्ट्रीय लोकदल को भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकेट फूटी आँख नहीं सुहाते थे, वह रातोरात एक दूसरे के बगलगीर बन गए। चौधरी अजीत सिंह के पुत्र और युवा लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी राकेश टिकैत के साथ रैली में मंच पर कंधे से कंधा मिलाते नजर आए।