‘अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल, मगर लोग मिलते गए कारवां बनता गया..’ मजरूह सुल्तानपुरी का यह शेर उत्तराखण्ड के पीसीएस अधिकारी हिमांशु कफल्टिया के मिशन एजुकेशन पर सटीक बैठता है। उत्तराखण्ड में तीन जिलों चंपावत, नैनीताल और चमोली के 19 गांवों में कफल्टिया ने पुस्तकालय बनाकर मिसाल पेश की है। 2016 कैडर के इस अधिकारी ने उन बच्चों के दर्द को समझा जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए गांव छोड़कर शहरों में पलायन कर रहे हैं। वह खुद ऐसी परिस्थितियों से गुजर चुके हैं। वह चाहते हैं कि ऐसे बच्चों के सपने उनके गांवों में ही पूरा हो और वे अपने भविष्य को बेहतर बना सके। वह अपने वेतन का 10 प्रतिशत पुस्तकालयों पर खर्च कर रहे हैं। वर्तमान में चमोली जिले के कर्णप्रयाग में उपजिलाधिकारी हिमांशु कफल्टिया ने पुस्तकालयों को हर गांव से जोड़ने के लिए पाठक क्लब भी बनाए हैं। वह स्वयं पुस्तकालयों में जाकर छात्रों का मार्गदर्शन भी करते हैं। उनकी इस शानदार पहल की काफी सराहना हो रही है
वे स्ट्रीट लाइट की रोशनी में रातों को पढ़ा करते थे। दिन में लम्बी दूरी तय करके स्कूल पहुंचते थे। इतनी कठिनाइयों में पढ़ाई करने के बाद सुविधाओं का आभाव होने के कारण उन्हें अपना गांव छोड़ कर दिल्ली जाना पड़ा। दिल्ली जाकर पढ़ाई करने के बाद वह पीसीएस (प्रोविंशियल सिविल सर्विस) अफसर बने। अपने जीवन के अनुभवों से उन्होंने प्रेरणा ले संकल्प लिया कि जिन हालातों ने उन्हें अपना गांव छोड़ कर शहर जाने पर मजबूर कर दिया, वे अब भविष्य की पीढ़ी के लिए उत्तराखण्ड के गांवों में ही शहर को लाने की कोशिश करेंगे। आज इनकी कोशिश एक अभियान का रूप ले चुकी है।
यह कहानी है नैनीताल जनपद के ओखलकांडा के एक छोटे से गांव तुषराड में रहने वाले हिमांशु कफल्टिया की। हिमांशु के जीवन की शुरुआत संघर्षों से भरी हुई थी। जब वह स्कूली छात्र थे तो उन्हें अपने गांव से स्कूल पहुंचने के लिए लगभग 4 किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता पैदल चलकर जाना पड़ता था। उनकी मां उन्हें रोजाना स्कूल के लिए इस तरह तैयार करके भेजतीं कि हिमांशु स्कूल नहीं कोई जंग जीतने जा रहा हो। देखा जाये तो यह एक जंग पर जाने जैसा ही था। एक छोटा-सा बच्चा अपने कंधों पर किताबों का बोझ लिए कठिन पहाड़ी रास्तों से जूझता हुआ स्कूल पहुंचता था। हिमांशु को सुबह जल्दी निकलना होता था और छुट्टी होने पर कई घंटों का उतार-चढ़ाव वाला रास्ता तय करके घर पहुंचना पड़ता था। जब वह छोटे थे तो उनके मां-बाप को भी यह रास्ता उन्हें छोड़ने और ले जाने के लिए तय करना पड़ता था। यह आज के समय में एक कहानी जैसा लगता है लेकिन उत्तराखण्ड जैसे राज्य में आज भी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
लंबी दूरी तय करने वाले हिमांशु ने बचपन से ही सरकारी अफसर बनने का सपना देख लिया था। गांव में उपयुक्त कोचिंग स्थान और पुस्तकों की अनुपलब्धता के कारण उन्हें अपना गांव छोड़कर आगे की शिक्षा के लिए दिल्ली आना पड़ा, शहर की चकाचौंध में भी अपने गांव के लोगों के भविष्य को लेकर वह हमेशा चिंतित रहते। वह सोचते कि गांव में उन जैसे कितने बच्चों ने सपने देखे होंगे लेकिन शहर न आने की वजह से उनमें से कितनों के सपने पहाड़ों से गिर कर धराशायी हो गए होंगे। इन चिंताओं में लीन हिमांशु ने खुद से वायदा किया कि वह अपने गांव के बच्चों की पढ़ाई के लिए पुस्तकालय खोलेंगे, जिससे वहां मौजूद बच्चे वहीं रहकर अपने सपनों को पूरा कर सकेंगे। पहाड़ों पर रह रहे बच्चों का भविष्य हिमांशु के लिए हमेशा चिंता का विषय बना रहा। हिमांशु का चयन वर्ष 2016 में उत्तराखण्ड राज्य प्रशासनिक सेवा में हुआ। जिसके बाद हिमांशु ने अपनी तनख्वाह का 10 प्रतिशत उत्तराखण्ड के बच्चों के उज्ज्वल भविष्य में योगदान करने का निर्णय लिया और उत्तराखण्ड के हर गांव में एक पुस्तकालय स्थापित करने का बीड़ा उठाया।
हिमांशु कहते हैं कि ‘हमने नवंबर 2020 में उत्तराखण्ड के टनकपुर में अपना पहला पुस्तकालय स्थापित किया। बाद में चंपावत जिले के बनबसा, ज्ञानखेड़ा, उचोलीगोठ, कालीगुंथ, सुखी ढांग, सल्ली, तालियाबांज, बुदम, डंडा, फागपुर, छिनिगोठ केबाद नैनीताल जिले के तुषराड और नाई के साथ ही चमोली जिले के कर्णप्रयाग के तीन गांवों में पुस्तकालय स्थापित किए। अब तक प्रदेश के 19 गांवों में पुस्तकालय स्थापित किए जा चुके हैं। आगे भी इस मुहिम को जारी रखा जाएगा। मुझे अपना सपना पूरा करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा था, लेकिन मुझे आशा है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हम इन संघर्षों को कम कर पाएंगे। हमारे इन पुस्तकालयों में न केवल सामान्य किताबें हैं बल्कि हमने इन पुस्तकालयों में प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें भी उपलब्ध कराई हैं, ताकि बच्चों को इन किताबों के लिए शहरों की यात्रा न करनी पड़े। मेरा मकसद राज्य के दूर-दराज के इलाकों में भी बच्चों को अवसर प्रदान करना है। हमारी इस पहल के प्रति बच्चों ने काफी अच्छी प्रतिक्रिया दी है। हमें हर गांव के पुस्तकालयों में बच्चों की भीड़ देखने को मिली है। वे सभी उत्साहित होकर हमारी इस पहल का स्वागत भी कर रहे हैं। उनके लिए यह बहुत बड़ी बात है कि एक एसडीएम और अन्य अधिकारी उनके छोटे से गांव का दौरा कर रहे हैं। हमारी इन यात्राओं से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ा है। यह पुस्तकालय उनके किसी और सुविधा से कई ज्यादा है। चूंकि मैं भी बहुत ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता हूं, इसलिए मैं इन बच्चों से गहरे स्तर पर जुड़ सकता हूं।’
अपनी इस मुहिम की बाबत ‘दि संडे पोस्ट’ से बातचीत के दौरान वे बताते हैं कि ‘हम छात्रों को करियर मार्गदर्शन भी प्रदान करते हैं। मेरी पत्नी एक आईआरएस (इंडियन रेवेन्यू सर्विस) अधिकारी है। शुरू-शुरू में हम दोनों पुस्तकालयों का दौरा किया करते थे और बच्चों को करियर परामर्श देते थे, इसके बाद हमने अन्य विशेषज्ञों को परामर्श देने के लिए आमंत्रित करना शुरू किया। हम बच्चों की अच्छे प्रदर्शन के लिए रविवार को सामान्य ज्ञान और गणित की परीक्षा भी आयोजित कराते हैं। हमारी इन कोशिशों और बच्चों की मेहनत से अब तक गांवों के 38 विद्यार्थियों ने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की है। हमारे इस कदम से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ा है और बच्चे बड़ी-बड़ी पोस्ट पर कार्य कर हमारे काउंसलिंग सेशन में अपना आभार व्यक्त करने आते हैं। यहां के पुस्तकालयों में दी गई पुस्तकें ग्राम पंचायत या व्यक्तियों द्वारा दान की जाती हैं और कुछ खरीदी जाती हैं इससे बच्चों की पढ़ाई में बहुत मदद मिलती है, उन्हें इसके लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता। इसके बाद वह केवल अपने भविष्य पर फोकस करते हैं जिसमें उन्हें काफी सफलता भी हासिल हुई है। सफल होते बच्चों को देख हमें बेहद गर्व होता है कि हम अपने कर्तव्यों के साथ-साथ पुण्य का काम भी कर रहे हैं।’
प्रण बनता अभियान
हिमांशु बताते हैं कि ‘एक अभियान शुरू किया जहां प्रत्येक ग्रामीण से दो किताबें दान करने के लिए अनुरोध किया। हमारा यह निर्णय बेहद सफल रहा, जिसके फलस्वरूप हमें इतनी किताबें मिलीं कि कुछ समय बाद किताबें खरीदने की जरूरत ही नहीं पड़ी। वैसे तो शुरुआत में हमारे लिए पुस्तकालयों का रखरखाव एक चुनौती बन गया था, लेकिन जल्द ही हमने इसका समाधान निकाला और ग्रामीणों को ही इसकी जिम्मेदारी सौंप दी। जिससे हमारा कार्य भी आसान हो गया और ग्रामीणों के लिए इसका रखरखाव करना पसंदीदा बन गया। धीरे-धीरे समस्याओं के समाधान के साथ हमने अन्य पुस्तकालयों को खोलने के लिए पैसों और किताबों की कमी होने के कारण ग्रामीणों से ही दो-दो किताबे दान करने का अनुरोध किया। सेमिनार और परामर्श के कार्यक्रमों को करने के लिए धन की कमी होने के कारण हमने ग्रामीणों से ही दान लेना शुरू कर दिया। अब इन पुस्तकालयों का प्रयोजन और रखरखाव पूरी तरह ग्रामीणों के हाथों में है। वह इन पुस्तकालयों को मंदिर (शिक्षा का मंदिर) की तरह रखते हैं। इन लक्ष्यों को पूरा होते देख हमने पाठक क्लब या रीडर्स क्लब भी बनाए इनमें वह व्यक्ति थे जो पुस्तकालयों की देखभाल कर रहे हैं। इन गांवों के युवा यह जिम्मेदारी लेने के लिए इतने उत्सुक हैं कि वह इन जिम्मेदारियों को एक अवसर मानते हैं और इसी उत्सुकता के कारण हमने इन पुस्तकालयों में अच्छे बदलाव भी देखे हैं।
रीडर्स क्लब के सदस्य
हिमांशु ग्रामीणों और रीडर्स क्लब के सदस्यों के बारे में बताते हैं कि ‘वे हर दिन पुस्तकालयों की सफाई करते हैं और त्योहारों के दौरान उन्हें सजाते भी हैं। अगर लाइब्रेरी में पंखे या लाइट की मरम्मत की जरूरत होती है, तो वे ग्रामीणों से पैसे इकट्ठा करते हैं और इसे खुद ठीक कराते हैं। यह पुस्तकालय 24 घंटे खुले रहते हैं। छात्र सुबह 5 बजे ही पुस्तकालय में आ जाते हैं और कभी-कभी देर रात तक रूकते हैं। इन पुस्तकालयों में सिर्फ स्कूल जाने वाले बच्चे ही नहीं बल्कि अन्य बच्चे भी आते हैं, जो पढ़ने के लिए उत्सुक और काफी रूचि रखते हैं। किसी कारणवश वह स्कूल नहीं जा पाते, तो वह पुस्तकालयों में आकर पढाई करते हैं। इनके अलावा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी बच्चे पढ़ने आते हैं। पुस्तकालयों में परीक्षाओं की किताबों के साथ-साथ कथा साहित्य की किताबें भी रखी हैं, ताकि ग्रामीणों में पढ़ने की आदत डाली जा सके।’
वर्तमान में चमोली जनपद के कर्णप्रयाग में एसडीएम पद पर तैनात हिमांशु की इस अनूठी मुहिम को अब सवर्त्र सराहा जा रहा है। इन पुस्तकालयों का दौरा करने बड़े-बड़े साहित्यिक दिग्गजों के साथ-साथ वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता भी आने लगे हैं। इन दिग्गजों के अनुभवों को जान कर बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ा है। इन पुस्तकालयों में सेमीनार एवं बच्चों के लिए करियर काउंसिलिंग भी कराइ जाती है। हिमांशु कहते हैं कि हमारे पुस्तकालयों से पढ़ कर निकले कई बच्चों ने भी हमें सहयोग देना शुरू कर दिया है। इन लोगों के द्वारा पुस्तकालयों को काफी बार किताबें दान दी गई है। ये भी हमारी मुहिम से जुड़ गए हैं। हमारे सेमिनारों में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता देवेंद्र मेवाड़ी, म्योर पहाड़ मेरी पहचान’ के लेखक हेम पंत तथा कुमार कैलाश जैसी कई हस्तियों ने प्रतिभाग किया है। मेरा लक्ष्य राज्य के हर गांव और हर छोटे शहर में एक पुस्तकालय स्थापित करना है। हमारे देश में सोशल मीडिया के आने से बच्चों के पढ़ने की आदत कम हो रही है। बच्चों को किताबों से अधिक फोन की लत लग रही हैं जो उनके भविष्य के लिए खतरनाक है। मैं पढ़ने की इस आदत को पुनर्जीवित करना चाहता हूं।
उत्तराखण्ड में चंपावत जिले के बॉर्डर पर बसे गांवों में बच्चों की हालत बेहद खराब होती जा रही है। बच्चे अल्हड़पन में ही नशे के शिकार होते जा रहे हैं।’ इन पुस्तकालयों के जरिए बच्चों को समय रहते पढ़ाई और शिक्षा का मार्ग दिखाने की चाहत रखने वाले हिमांशु कहते हैं ‘मेरा मानना है कि कोई भी बच्चा जिसके हाथ में किताब है, कभी गलत मार्ग पर नहीं जा सकता। बच्चों को सही मार्ग शिक्षा ही सिखाती है और वह शिक्षा किताबों में मौजूद है। जैसे-जैसे हमने काम करना शुरू किया हमें इसके काफी अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं। हमारा यह संकल्प दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। हमारे इस संकल्प को पूरा करने में हमारे कई सहयोगियों और एनजीओ ने हमारा साथ दिया है। हम यह नहीं मानते यह सिर्फ हमारा संकल्प है। मैं यह मानता हूं कि इस संकल्प का सपना मैंने देखा लेकिन इसे पूरा करने में ग्रामीणों से लेकर अन्य लोगों का भी पूरा हाथ है। यदि वह लोग मेरे साथ न देते तो इतने बड़े पैमाने पर यह अभियान चलाना एक व्यक्ति के लिए बेहद मुश्किल होता।’
‘‘मुझे अपना सपना पूरा करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा था, लेकिन मुझे आशा है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हम इन संघर्षों को कम कर पाएंगे। हमारे इन पुस्तकालयों में न केवल सामान्य किताबें हैं बल्कि हमने इन पुस्तकालयों में प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें भी उपलब्ध कराई हैं, ताकि बच्चों को इन किताबों के लिए शहरों की यात्रा न करनी पड़े। मेरा मकसद राज्य के दूर-दराज के इलाकों में भी बच्चों को एक्सपोजर देना है। हमारी इस पहल के प्रति बच्चों ने काफी अच्छी प्रतिक्रिया दी है। हमें हर गांव के पुस्तकालयों में बच्चों की भीड़ देखने को मिली है। वे सभी उत्साहित होकर हमारी इस पहल का स्वागत भी कर रहे हैं। उनके लिए यह बहुत बड़ी बात है कि एक एसडीएम और अन्य अधिकारी उनके छोटे से गांव का दौरा कर रहे हैं। हमारी इन यात्राओं से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ा है। यह पुस्तकालय उनके किसी और सुविधा से कहीं ज्यादा है। चूंकि मैं भी बहुत ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता हूं, इसलिए मैं इन बच्चों से गहरे स्तर पर जुड़ सकता हूं।’’
हिमांशु के इस संकल्प में यदि आप रुचि रखते हैं या उनकी मदद करना चाहते हैं तो आप उनसे इन नंबर 7455929785, 9456564943, 916395551401 पर संपर्क कर सकते हैं। यदि आप उन्हें किताबें दान करना चाहते हैं तो उन्हें ांंसजपं50/हउंपसण्बवउ पर मेल कर सकते हैं। इनके संकल्प से आप फेसबुक आईडी रुबपजप्रमद सपइतंतल उवअमउमदज पर जुड़ सकते हैं और इनकी एनजीओ के माध्यम से भी आप इनसे कॉन्टेक्ट कर सकते हैं जिनका पोर्टल आपको गूगल पर रुरपलम चींंक और रुमसंतं विनदकंजपवद के नाम से सर्च कर सकते हैं।
लाइब्रेरी के सहयोग और पढ़ाई दोनों के लिए आगे आए ग्रामीण