भारतीय साहित्य जगत में अमृता प्रीतम एक ऐसा नाम है, जिन्हें पढ़ना एक अद्भुत एहसास है।आज उनकी जयंती का शताब्दी वर्ष है।
गूगल ने भी इस महान लेखिका के शताब्दी वर्ष को डूडल बना कर अपनी श्रद्धांजलि दी है।
अमृता ने अपनी रचनाओं में ना सिर्फ स्त्री मन को अभिव्यक्ति दी बल्कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के दर्द को भी बखूबी उकेरा। उन्हें अपनी पंजाबी कविता ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ के लिए बहुत प्रसिद्धि मिली। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुए नरसंहार का अत्यंत मार्मिक चित्रण है।यह रचना ना सिर्फ भारत बल्कि पाकिस्तान में भी बहुत सराही गयी।

अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 को गुजरांवाला पंजाब में हुआ था।86 वर्ष की उम्र में उनका निधन 31 अक्तूबर 2005 को हुआ था। अमृता का बचपन लाहौर में बीता।
अमृता प्रीतम एक ऐसी साहित्यकार हैं जिन्होंने अपने जीवन में सौ से ज्यादा पुस्तकें लिखीं और उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। उन्हें 1956 में साहित्य अकादमी पुस्कार से नवाजा गया। 1969 में उन्हें पद्मश्री मिला। 1982 में साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार ‘कागज़ ते कैनवस’ के लिए दिया गया और 2004 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्मविभूषण भी दिया गया।
भारत पाकिस्तान विभाजन के दौर को अमृता प्रीतम ने अपनी रचना ‘पिंजर’ में बखूबी उकेरा है।
इस उपन्यास की नायिका पारो ने विभाजन के दर्द को झेला, किस तरह उसे एक मुस्लिम युवक अगवा कर ले जाता है और उसके बाद उसे अपने घर में जगह नहीं मिलती।
उसके बाद पारो का पूरा जीवन कैसा होता है साथ ही विभाजन की त्रासदी को महिलाएं किस तरह जीती हैं उसका सजीव चित्रण इस किताब में है।पढ़ते वक्त रौंगटे खड़े हो जाते है।
वहीं रसीदी टिकट अमृता प्रीतम की आत्मकथा है, जिसके बारे में अमृता ने लिखा है कि खुशवंत सिंह से बात हो रही थी तो उन्होंने कहा था तेरी जीवनी का क्या है, बस एक आध हादसा, लिखना चाहो तो रसीदी टिकट पर लिख सकते हैं।
अमृता की आत्मकथा इतनी प्रसिद्ध हुई कि इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है।अमृता की कविताएं प्रेम में पगी हुई हैं। अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में अमृता प्रीतम ने अपनी शादी और प्रेम का खुले तौर पर वर्णन किया है। अमृता ने प्रेम को जिया है, यही कारण है कि उनकी रचनाएं प्रेम में आकंठ डूबी हैं।
अमृता की शादी प्रीतम सिंह से हुई थी जिसके कारण उनका नाम अमृता प्रीतम हुआ लेकिन उनकी शादी सफल नहीं रही। उनके बाद अमृता की निकटता साहिर लुधियानवी से हुई।
जिनके बारे में अपनी आत्मकथा में अमृता ने लिखा है कि एक रात साहिर घर आया था, वह बीमार था उसे बुखार था। मैंने उसके गले और छाती पर विक्स मला था। उस वक्त एक औरत के तौर पर मुझे ऐसा लगा था मैं पूरी जिंदगी ऐसे ही गुजार सकती हूं।