उत्तर प्रदेश के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने दो दिन पहले ही कह दिया था कि “कानपुर हत्याकांड के आरोपियों को ऐसी सजा दी जाएगी, जो नजीर बनेगी।” उच्चाधिकारी के इस बयान से ही साफ हो जाता है कि यूपी पुलिस किसी भी हाल में विकास दुबे के एनकाउंटर का मन बना चुकी थी। इसी के साथ मध्य प्रदेश के उज्जैन के एडिशनल एसपी रुपेश द्विवेदी ने मीडिया के सामने यह कहकर मामले को और भी गंभीर बना दिया था कि विकास दुबे कानपुर तक पहुंचना मुश्किल है। मीडिया ने जब उनसे पूछा कि क्या विकास दुबे कानपुर पहुंच पाएगा तो इस पर रुपेश द्विवेदी का यह कहना कि “आई विश वह ना पहुंचे।”
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 2 पुलिस अधिकारियों के उक्त बयान यह इशारा कर रहे हैं कि गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर पहले से नियोजित था। हालांकि, प्रदेश में सत्ता पक्ष को छोड़कर विपक्ष के जितने भी नेता है वह सभी इस एनकाउंटर पर सवाल खड़े कर रहे हैं। यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है। देखा जाए तो अगर मामले की गहनता से छानबीन की गई तो यूपी पुलिस का फसना तय है।
कई दृष्टिकोण से अगर मामले को देखें तो शक की सुई यूपी पुलिस की तरफ उठ रही है। सबसे पहले विकास दुबे को मध्य प्रदेश के उज्जैन से कानपुर चार्टर्ड प्लेन से लाने की बात कही गई थी। लेकिन बाद में यह प्लान परिवर्तित कर दिया गया। यूपी पुलिस की एसटीएफ ने विकास दुबे को उज्जैन से कानपुर तक करीब 12 सौ किलोमीटर लंबे सफर को निजी वाहनों से ही तय करने का फैसला क्यों किया। आखिर किस वजह से पुलिस का प्लान बदला गया।
उज्जैन से कानपुर तक के करीब 14-15 घंटे के सफर में कई ऐसे पहलू ऐसे नजर आए जिनकी जांच जरूरी हैं। इसमें पहला पहलू यह है कि जब पुलिसकर्मी कन्नौज उज्जैन से कानपुर के लिए विकास दुबे को लेकर चले तो वह टाटा सफारी में बैठा था। लेकिन जब कानपुर में आकर वाहन पलटा हुआ दिखाया गया तो वह टाटा सफारी नहीं बल्कि महिंद्रा की एसयूवी 300 कार थी। सवाल यह है कि आखिर टाटा सफारी महिंद्रा की एक्सयूवी 300 में कैसे बदल गई।
गौरतलब है कि जब विकास दुबे को एसटीएफ मध्य प्रदेश के उज्जैन से लेकर चली तो उसके साथ मीडिया की कई गाड़ियां चल रही थी। यह गाड़ियां बकायदा विकास दुबे के काफिले को फॉलो कर रही थी। लेकिन जैसे ही कानपुर का टोल आया तो पुलिस ने मीडिया को वहीं रोक दिया। इसके करीब 10 मिनट बाद ही 1 किलोमीटर दूर जाकर कार रहस्यमय परिस्थितियों में पलट गई। कार पलटने वाली इस बात में भी कई पेज नजर आ रहे हैं। पुलिस कह रही है कि जब उनकी गाड़ियां जा रही थी तो अचानक कई पशु विकास दुबे की गाड़ी के आगे आ गए। जिससे वह गाड़ी अनियंत्रित हो गई और पलट गई।
लेकिन पुलिस की इस कहानी में भी कई झोल नजर आ रहे हैं। जिसमें सबसे पहले यह है कि गाड़ी जो पलटी उसका एक भी सीसा नहीं टूटा है। जहां गाड़ी पलटी वहां कीचड़ था। लेकिन विकास दुबे कीचड़ में नहीं सना। इसी के साथ विकास दुबे को गाड़ी के पलटने में खरोच भी नहीं आई। चौंकाने वाली बात यह है कि गाड़ी में कई पुलिसकर्मी होने के बावजूद भी वह भाग निकला। इसी के साथ ही यह भी बताया गया कि विकास दुबे ने पुलिस कर्मियों की पिस्टल निकाल ली और उन पर वार करते हुए भाग निकला।
इस मामले में यह बताना भी जरूरी है कि जब भी किसी मोस्ट वांटेड आतंकी को पुलिस कहीं ले जाती है तो वह उसको हथकड़ी लगाती है। लेकिन विकास दुबे को पुलिस ने कोई हथकड़ी नहीं लगाई थी। इसके साथ ही महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि जब भी किसी बदमाश का एनकाउंटर किया जाता है तो उसके घुटने से नीचे पैर में गोली मारी जाती है। जिससे वह भाग ना पाए। और पुलिस के हत्थे चढ़ जाए। लेकिन विकास दुबे को पैर में गोली नहीं मारी गई बल्कि गोली उसके सीने में लगी।
सीने में गोली लगने का मतलब यह है कि विकास दुबे भाग नहीं रहा था बल्कि वह सामने खड़ा था। स्वाभाविक है कि अगर वह भागता तो गोली उसकी पीठ पर लगती। हालांकि, एनकाउंटर में कुछ पुलिसकर्मियों के घायल होने की भी खबरें हैं। पुलिसकर्मी फिलहाल खतरे से बाहर है। गोलिया उन को छूते हुए निकल गई।