बिहार विधानसभा चुनाव में अभी करीब दस महीनों का समय बचा है। लेकिन सभी राजनीतिक दल अभी से अपने-अपने कील-कांटे दुरुस्त कर चुनावी तैयारी में जुट गए हैं। इसके साथ ही एनडीए गठबंधन के अलग-अलग दल सीट शेयरिंग को लेकर अपनी मांग भी सामने रखने लगे हैं। एनडीए की अहम सहयोगी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने विधानसभा चुनाव में 20 सीटों की डिमांड कर डाली है। ऐसे में एनडीए के अंदर सीट शेयरिंग को लेकर खलबली मची हुई है।
इस मामले में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल की तरफ से जवाब दिया गया है। उन्होंने साफ-साफ कह दिया है कि अब कुछ नहीं हो सकता है। सीट भी तय हो गई है और फार्मूला भी। ऐसे में सवाल यह है कि जब एनडीए के भीतर सब कुछ पहले से तय हो गया है तो मांझी फिर से डिमांड क्यों कर रहे हैं? कहीं यह मांझी की प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा तो नहीं है।
हालांकि इस बीच जीतनराम मांझी ने मोदी सरकार से अलग होने की अफवाहों को गलत बताया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर उनके खिलाफ कोई साजिश करेगा भी तो वे नतीजे भुगतने के लिए तैयार हैं। ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन पर जो भरोसा जताया है वो बहुत बड़ी बात है। हमें मोदी जी पर पूरा भरोसा है और हम उनके साथ हैं।’ बकौल मांझी बिहार में हम अपनी ताकत दिखाएंगे मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा। मैं अपने कार्यकर्ताओं से कहता हूं कि आप ही हमारी ताकत हैं। झारखंड में हमारी ताकत का सही इस्तेमाल नहीं हुआ, अगर हमारी मदद ली जाती तो एनडीए को ज्यादा सीटें मिल सकती थीं। दिल्ली में भी मैंने इस बारे में बात की थी, लेकिन वहां भी हमारी मदद नहीं ली गई। हमारी मदद से एनडीए को फायदा होता, मगर हमारी बात नहीं मानी गई। जीतनराम मांझी के राजनीतिक रणनीतियों की बात करें तो पहले भी वह इसी तरह अधिक सीटों पर अपनी डिमांड पेश करते रहे हैं। हालांकि बाद में एनडीए के बड़े नेताओं के मनाने पर मान भी जाते हैं। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या सच में एनडीए के अंदर सीटों को लेकर बातचीत फाइनल हो गई है। दिलीप जायसवाल ने जो बयान दिया है उससे तो ऐसा ही लगता है कि एनडीए में सीट शेयरिंग पर चर्चा हो चुकी है और अगर चर्चा हो चुकी है तो सीटों का फॉर्मूला क्या होगा।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव 2020 में एनडीए में रहते जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार एनडीए के साथ चिराग पासवान भी हैं। ऐसे में अगर मांझी ज्यादा सीटों की डिमांड करते हैं तो निश्चित तौर पर एनडीए के अंदर मतभेद की स्थिति बन सकती है। वहीं विधानसभा चुनाव 2020 में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा था और पार्टी सिर्फ एक सीट पर चुनाव जीत पाई थी। लेकिन उसके 9 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे और इन्हीं की वजह से जेडीयू को बड़ा नुकसान हुआ था। तब एलजेपी ने बीजेपी के बागी नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा था। इस बार चिराग एनडीए के साथ हैं तो उनकी पार्टी भी मांझी से कम सीट पर चुनाव लड़ेगी ऐसी सम्भावना कम ही है।
ऐसी स्थिति में देखना यह होगा कि एनडीए के अंदर इस बार किसका पलड़ा भारी रहता है। क्योंकि जीतनराम मांझी और चिराग पासवान दोनों एनडीए के अहम सहयोगी हैं। दोनों ही मोदी कैबिनेट का हिस्सा हैं और दलितों के बड़े नेता माने जाते हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव और झारखंड विधानसभा चुनाव की बात करें तो चिराग पासवान की लोजपा रामविलास के नाम 100 फीसदी स्ट्राइक रेट रहा। हालांकि बीते विधानसभा चुनाव की बात करें तो जीतनराम मांझी का पलड़ा भारी रहा है और उनकी पार्टी ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब जेडीयू और बीजेपी लगभग बराबर सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी थी। चुनाव में जेडीयू को काफी निराशा हाथ लगी और जेडीयू सिर्फ 42 सीट ही जीत पाई थी। गौरतलब है कि 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा के लिए 2020 के चुनाव में एनडीए के अंदर जेडीयू 115, बीजेपी 112, वीआईपी 9 और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने 7 सीटों के फार्मूले पर चुनाव लड़ा था।