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उत्तर प्रदेश में मैनपुरी के साथ ही रामपुर और खतौली में भी उपचुनाव हो रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा राजनीतिक हलचल मैनपुरी उपचुनाव की वजह से हो रही है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी का चुनाव ‘करो या मरो’ की तरह है। यह भी कहा जा रहा है कि यह उनके नेतृत्व की अग्नि परीक्षा है। लोकसभा की अपनी जीती हुई आजमगढ़ सीट उपचुनाव में गंवाने के बाद अब उनके सामने इसके सिवा कोई चारा नहीं है कि उनकी पार्टी मैनपुरी सीट जीते। ध्यान रहे सपा ने सबसे मुश्किल समय में भी आजमगढ़ और मैनपुरी की सीट जीती थी। पहली बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हो रहे 2014 के चुनाव में भी सपा दोनों सीटों पर जीती थी और 2019 में भी पार्टी दोनों सीटों पर जीती। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन करने के बाद जब अखिलेश यादव ने सांसद की बजाय विधायक रहने का फैसला किया तो उन्होंने आजमगढ़ सीट छोड़ी और उपचुनाव में पार्टी वह सीट हार गई। इतना ही नहीं पार्टी रामपुर की सीट भी हार गई, जहां के सांसद आजम खान ने इस्तीफा दिया था।

अब आजम खान की विधानसभा सीट और मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई मैनपुरी सीट पर चुनाव हो रहा है। ये दोनों चुनाव अखिलेश यादव का नेतृत्व की परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है। इसके लिए अखिलेश ने कोई जोखिम नहीं लेते हुए अपनी पत्नी डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया है। पार्टी के स्टार प्रचारकों की जो सूची बनी है उसमें चाचा शिवपाल यादव को भी रखा गया है। हालांकि भाजपा ने शिवपाल यादव के करीबी रहे रघुराज सिंह शाक्य को उम्मीदवार बना दिया है। इससे पहले आजमगढ़ सीट पर अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव हारे थे। इसलिए भी मैनपुरी में डिंपल की जीत सुनिश्चित करना अखिलेश के लिए बेहद जरूरी है। विधानसभा चुनाव के बाद उपचुनावों में हार का जो सिलसिला शुरू हुआ है उसे तोड़ने के लिए भी यह चुनाव अहम है।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मैनपुरी उपचुनाव अखिलेश के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। अब तक अखिलेश को अपने पिता और यूपी के कद्दावर नेता रहे मुलायम सिंह यादव का साथ मिलता रहा है, लेकिन पिछले महीने हुए निधन के बाद अखिलेश के लिए यह बड़ा चुनाव है। हालांकि उनके निधन के बाद गोला गोकर्णनाथ सीट पर भी उपचुनाव हुआ, लेकिन सीधे मुलायम से जुड़ी होने की वजह से मैनपुरी सीट काफी अहम है। यहां से अखिलेश का सियासी भविष्य भी तय हो सकता है। पिछले कई चुनाव में समाजवादी पार्टी को करारे झटके लगे हैं। पहले विधानसभा चुनाव में सपा को हार का सामना करना पड़ा और फिर आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव में भी हार नसीब हुई। अभी हाल ही में गोला सीट पर भी सपा उम्मीदवार को हार मिली। इस तरह एक के बाद एक मिल रही हार से सपा नेताओं के मनोबल पर भी असर पड़ा है। पार्टी के कार्यकर्ता चुनावी नतीजों से काफी निराश हैं। यदि मैनपुरी के नतीजे सपा के हक में जाते हैं तो फिर अखिलेश के लिए बीजेपी पर निशाना साधना आसान हो जाएगा। 2024 लोकसभा चुनाव के लिए भी वे सकारात्मक नजरिए के साथ तैयारी कर सकेंगे। वहीं, डिंपल की जीत से वे मुलायम के जाने के बाद दिल्ली में भी पार्टी को मजबूत कर सकेंगे।

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