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… आ रहे हैं अखिलेश

उत्तर प्रदेश विधानसभा के सात चरणों वाले चुनाव में से चार चरण के चुनाव निपट चुके हैं। इन चारों चरणों में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ और समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान करने की बात सामने आ रही है। पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट बाहुल्य इलाका, दूसरे चरण में अल्पसंख्यक बाहुल्य इलाका तो तीसरे चरण में यादव बाहुल्य इलाके में लंबे अर्से से अलग-अलग कारणों के चलते सत्तारूढ़ योगी सरकार के प्रति भारी नाराजगी बनी हुई थी। अब चौथे चरण के बाद भी जो संकेत सामने आ रहे हैं उससे भाजपा के बैकफुट पर जाने और सपा की साइकिल के रफ्तार पकड़ने की पुष्टि होती है

उत्तर प्रदेश के सात चरणों में होने वाले चुनावों के चार चरण संपन्न हो चुके हैं। सूबे में सातां चरण में 15 करोड़ मतदाता अपने मत का प्रयोग करेंगे। जिसमें पहला चरण जाट लैंड के नाम रहा। दूसरा अल्पसंख्यकों का तो तीसरा चुनावी चरण यादव लैंड में एक तरफा जाता दिखाई तो चौथे चरण में भी मतदाताओं का रूझान सपा की ओर ही रहा। इन्हीं चार चरणों की बात करें तो अभी तक मतदाता अपनी उंगली के जरिए ईवीएम में साइकिल को मजबूती देते नजर आ रहें है। भाजपा फिलहाल चारों चरणों में पिछड़ती दिख रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण और तीसरे चरण में भाजपा मजबूती से सामने आई थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 सीटों पर सबसे पहले 10 फरवरी को चुनाव हुए। 2017 के विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा पहले नंबर पर थी वहा इस बार समाजवादी पार्टी और रालोद का गठबंधन मजबूत बनकर उभरा है। इस चुनाव में ‘नल’ और ‘साइकिल’ दोनों को मतदाताओं का भरपूर वोट मिला है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा का सबसे ज्यादा विरोध नजर आया। यहां पहले से ही किसान आंदोलन में सुलग रहे मतदाताओं ने भाजपा प्रत्याशियों को गांवो में नहीं घुसने दिया। भाजपा प्रत्याशियों पर कीचड़ फैकी गई और काले झंडे दिखाए गए। यही नहीं बल्कि कई जगह तो पत्थरबाजी भी की गई। अधिकतर गांवों में भाजपा के बस्ते तक खाली दिखें। कई बूथों पर भी भाजपा अपने एजेंटों को तैनात नहीं कर सकी। शायद भाजपा मतदाताओं के इस विरोध को पहले ही भाप गई थी। इसी के चलते सात फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिजनौर रैली को आखिरी समय में रद्द कर दिया गया था। तब प्रधानमंत्री की रैली रद्द करने के पीछे दलील दी गई थी कि मौसम खराब है, जिस वजह से प्रधानमंत्री का विमान उड़ नहीं पाएगा। लेकिन भाजपा उस समय हास्य का पात्र बन गई जब पूरे दिन धूप खिली नजर आई। इस चुनाव में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा धार्मिक एजेंडे के आधार पर ही मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करते दिखी। कैराना में कथित पलायन के साथ ही 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों का भाजपा द्वारा बार-बार जिक्र करना इसका उदाहरण रहा।

भाजपा का बार-बार यह आरोप लगाना कि समाजवादी पार्टी ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ की नीति पर चलती है, हिंदू वोटरों के धुव्रीकरण की कोशिश करना रहा। जिसमें भाजपा सफल होती हुई नजर नहीं आई। इसके साथ ही वाराणसी में काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर का भव्य उद्घाटन और राम मंदिर निर्माण की शुरुआत की बात चुनाव में प्रमुख रूप से उठाई जाती रही। दूसरे चरण में 14 फरवरी को 9 जिलों की 55 सीटों पर चुनाव हुए। इन चुनावों में अल्पसंख्यक समुदाय का वोट भाजपा के विरोध में पड़ा है। यहां से अमरोहा, बरेली, बिजनौर, बदायूं, मुरादाबाद, रामपुर, सहारनपुर, संभल और शाहजहांपुर की सीटों पर मतदान हुआ था। यहां से योगी कैबिनेट के मंत्री सुरेश खन्ना, गुलाबो देवी, बलदेव सिंह औलख के साथ पूर्व मंत्री धर्मपाल सिंह सैनी चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी की तरफ से रामपुर के सांसद आजम खान, कमाल अख्तर, डॉ ़धर्म सिंह सैनी और महबूब अली जैसे कद्दावर नेता चुनाव लड़ रहे हैं।

20 फरवरी को तीसरा चरण संपन्न हुआ। जिसमें 16 जिलों की 59 सीटों पर चुनाव हुआ। इन 16 जिलों में से 8 जिले की 29 सीटें यादव लैंड में स्थित है। तीसरे चरण के चुनाव में भाजपा और समाजवादी पार्टी दोनों ही एक बार फिर जातीय समीकरणों को साधने का प्रयास करती रही। जहां भाजपा धुव्रीकरण के सहारे हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिशों में थी वहीं अखिलेश ने महान दल और अपना दल (कृष्णा) के जरिए गैर यादव पिछड़ी जातियों को साधने की पूरी कोशिश की है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि बुंदेलखंड के जिन जिलों की सीटों पर इस चरण में चुनाव हुआ, वहां पर पिछली बार सपा-बसपा-कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। इसके अलावा एटा, कन्नौज, इटावा, फारुर्खाबाद, कानपुर देहात जैसे जिलों में भी समाजवादी पार्टी को करारा झटका लगा था। जबकि, 2012 के चुनाव में इन जिलों में सपा को 37 सीटें मिली थीं। लेकिन 2017 में वो महज 9 सीटों पर सिमट गई थी। 2017 के चुनाव में मोदी लहर के दौरान यादव लैंड पर भाजपा ने अपना परचम लहराया था बल्कि समाजवादी पार्टी के सारे समीकरण ध्वस्त हो गए थे। इस बार पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव करहल से चुनाव लड़े। करहल अखिलेश यादव के पैतृक गांव सैफई से महज 8 किलोमीटर दूर है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर मुख्यमंत्री योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य इस चुनावी क्षेत्र में उतर कर अखिलेश यादव को उनके घर में ही घेरने की कोशिशों में लगे रहे।

इसके अलावा शिवपाल यादव भी जसवंत नगर से चुनाव लड़ रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की कमान अपने हाथों में लेने के बाद अखिलेश यादव और शिवपाल यादव एक साथ मंच पर दिखाई नहीं दिए थे। उस दौरान मुलायम सिंह यादव भी अखिलेश के प्रचार से दूर नजर आए थे। लेकिन इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने न सिर्फ अखिलेश यादव के लिए जनसभा को संबोधित किया, बल्कि इटावा में रथ में सवार होकर अपने ही गढ़ में शक्ति प्रदर्शन भी किया। इस दौरान रथ में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव साथ- साथ रहें। चुनाव से पहले जिस तरह भाजपा और बसपा से पार्टी के बड़े नेता समाजवादी पार्टी में आए उससे प्रदेश में यही संदेश गया है कि इस बार साइकिल दौड़ने वाली है। भाजपा से दिग्गज गैर-यादव ओबीसी नेताओं का अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले समाजवादी पार्टी में जाने से सूबे की सियासत में बड़ी हलचल पैदा कर गया था। राजनीतिक विश्लेषक इसे सत्तारूढ़ भाजपा के साथ ओबीसी नेताओं का मोहभंग होना मान रहें हैं। साथ ही राजनीतिक विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि राज्य में भाजपा अपने व्यापक सामाजिक गठबंधन को बनाए रखने में नाकाम रही। जो ओबीसी नेता भाजपा और बसपा का दामन छोड़ रहे हैं वो इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ खड़े दिख रहे हैं। इसे समाजवादी पार्टी के गैर-यादवों के बीच में पार्टी के समर्थन को बढ़ाने के तौर पर देखा जा रहा हैं।
अभी तक चार चरणों के इन चुनावों में देखने में यह भी आ रहा है कि कभी प्रदेश की सत्ता पर आसीन रही बहुजन समाज पार्टी मुख्य मुकाबले में कहीं नजर नहीं आई है। इसकी वजह रही पार्टी के कोऑर्डिनेटर और महासचिव समसुद्दीन राइन का एक स्टिंग वीडियो सामने आना। इस वीडियो में जिस तरह से समसुद्दीन राइन धनबल पर प्रत्याशियों को भाजपा के उम्मीदवारों को जिताने के पक्ष में खड़ा करने की बात कर रहे हैं उससे पार्टी का कैडर वोट हाथ से निकलता दिखाई दिया। कभी बसपा का साथ देने वाला अल्पसंख्यक मतदाता भी इस बार उससे दूर ही नजर आया।

अब तक के चारों चरणों में बहुजन समाज पार्टी तीसरे पायदान पर जाती हुई प्रतीत हो रही है। चुनाव से पहले जहां सभी पार्टियों के सीनियर लीडर मतदाताओं को अपनी और आकर्षित करने के लिए रैलियां करते देखे गए वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती इस मामले में सबसे पीछे रही। चार चरणों में कांग्रेस भाजपा के खिलाफ कोई चुनावी मुद्दा नहीं बना पाई है। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सिर्फ प्रियंका गांधी के भरोसे करिश्मा करने की उम्मीद में है। लेकिन प्रियंका गांधी मतदाताओं के बीच लोकप्रिय होने के बावजूद कांग्रेस को जमीनी मजबूती देने में नाकाम रही हैं। वैसे भी देखा जाए तो कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश में खोने के लिए कुछ नहीं है। इसी के साथ आम आदमी पार्टी पहली बार उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़कर अपनी उपस्थिति मतदाताओं के बीच दर्ज करा रहीं है। आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में बसपा और कांग्रेस के बाद दिख रही है। पार्टी के उत्तर प्रदेश प्रभारी संजय सिंह ने चुनाव से पहले जिस तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ठाकुर वाद के नाम पर घेरा था, ऐसा वह चुनाव में नहीं कर पा रहे हैं।

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