- प्रियंका यादव
बीते कुछ समय से एनसीपी में फूट की खबरें सुर्खियां बनने लगी थीं। कहा जा रहा था कि अजीत पवार अपने समर्थक विधायकों के दम पर पार्टी तोड़ भाजपा गठबंधन का हिस्सा बनने जा रहे हैं। लेकिन अब शरद पवार के इस्तीफे के बाद अजीत पवार के लिए पार्टी तोड़ना राजनीतिक रूप से घातक साबित हो सकता है। 82 वर्षीय मराठा क्षत्रप कहे जाने वाले पवार के बारे में कहा जाता है कि वे जो कहते हैं उसके पीछे दूरगामी सोच होती है। उनका कहना है कि अध्यक्ष पद आने वाली पीढ़ी को मौका देने और अपनी उम्र के चलते छोड़ा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र में गठबंधन पर असर पड़ेगा
गत सप्ताह जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार पार्टी के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे तो किसी ने इस बात की उम्मीद नहीं की होगी कि वह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। राकांपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पवार की घोषणा से सभी चकित हो गए। पवार ने अपने इस्तीफे की वजह भी बताई और कहा कि वे अपना ध्यान महाराष्ट्र और देश के मुद्दों पर केंद्रित करेंगे। पवार ने अपने इस्तीफे से आम लोगों के साथ एनसीपी के कार्यकर्ताओं को भले ही झटका दिया हो लेकिन उनकी राजनीति करीब से समझने वालों के लिए यह हैरान करने वाला फैसला नहीं है।
राजनीतिज्ञों का कहना है कि शरद पवार कोई भी सियासी फैसला ऐसे नहीं लेते। उनके हर फैसले का एक सियासी मतलब होता है। सियासत की शतरंज पर वह कौन-सा पासा फेंकने वाले हैं इसकी जानकारी केवल उन्हीं को होती है। अपने चौंकाने वाले फैसले एवं दूरदर्शी राजनीति की वजह से उन्हें सियासत का ‘चाणक्य’ और ‘मराठा क्षत्रप’ कहा जाता है। वह राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। जानकार मानते हैं कि इस्तीफा देकर उन्होंने एक तीर से कई शिकार किए हैं। भतीजे अजीत पवार की भाजपा के साथ बढ़ती नजदीकी की अटकलों के बीच उन्होंने अपने इस्तीफे का पासा फेंककर कई चीजें अपने पक्ष में कर ली हैं।
पहला यह कि उन्होंने करीब-करीब संकेत दे दिया है कि उनके बाद पार्टी की कमान उनकी बेटी सुप्रिया सुले के हाथ में रहेगी। पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव करने के लिए पवार ने जिस समिति की घोषणा की है उसमें ज्यादातर उनके करीबी लोग हैं। जाहिर है कि वे शरद पवार की भावना का सम्मान करेंगे और अध्यक्ष पद पर सुप्रिया की ताजपोशी का रास्ता निकालेंगे। दूसरा पवार ने अपने भतीजे अजीत पवार को महाराष्ट्र की जिम्मेदारी सौंपी है। पवार का यह फैसला अजीत के पर कतरने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है।
दरअसल बीते एक महीने में मीडिया में ऐसी खबरें सामने आई हैं कि अजीत पवार एनसीपी से अपने खेमे के विधायकों को लेकर भाजपा के साथ जुड़ सकते हैं। चर्चा यह भी थी कि सीएम बनाए जाने को लेकर उनका भाजपा के साथ एक समझौता हुआ है। भाजपा के साथ अजीत पवार की बढ़ती नजदीकी महाराष्ट्र में बनती एवं बिगड़ती सियासत का संकेत देने लगी। इन्हीं सबके बीच सुप्रिया सुले ने बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि अगले 15 दिनों में दो बड़े सियासी धमाके होंगे। इसके कुछ दिन बाद शरद पवार ने कहा कि ‘रोटी पलटने का वक्त आ गया है।’ शरद और सुप्रिया शायद इसी बदलाव का संकेत दे रहे थे। पवार के इस धमाके के बाद एनसीपी में अगले कुछ दिनों में क्या बदलाव होंगे यह देखना दिलचस्प होगा। अजीत पवार एनसीपी से अलग होकर अपने गुट के विधायकों के साथ अगर अलग रास्ता अपनाने की सोच रहे थे तो उनके मंसूबों को शरद पवार ने तगड़ा झटका दिया है। अपना इस्तीफा देकर उन्होंने पार्टी की सहानुभूति बटोर ली है। इस्तीफे के बाद पूरी एनसीपी शरद पवार के पीछे खड़ी हो गई है। इसका नजारा पवार के इस्तीफे के बाद देखने को मिला। कार्यक्रम में एनसीपी नेता एवं कार्यकर्ता रोने लगे। उन्होंने इस्तीफे का विरोध किया और पवार से अपना फैसला वापस लेने की मांग की। जानकार मानते हैं कि पवार ने अपने इस्तीफे के दांव से एनसीपी पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है। यही राजनीतिक समझ एवं दूरदर्शिता पवार की ‘पावर’ को बढ़ा देता है।
शरद पवार पहले ही दे चुके थे इस्तीफे का संकेत राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक एनसीपी के वारिसों को इसकी जानकारी पहले से ही थी। पहले भी शरद पवार ने अपने इस फैसले के संकेत दे दिए थे। उन्होंने कहा था की रोटी पलटने का वक्त आ गया है। किसी ने मुझसे कहा कि रोटी सही समय पर पलटनी है, न पलटे तो कड़वी हो जाती है। इस बयान पर अजीत पवार ने कहा कि नए चेहरों को आगे लाना पार्टी की परंपरा रही है। पार्टी में फूट पड़ने के चलते इस्तीफा शरद पवार द्वारा यह फैसला ऐसे समय में लिया गया जब पार्टी में फूट पड़ने की खबरें सामने आने लगीं। पिछले महीने भी अजीत पवार को लेकर कई खबरें आई थीं जिनके अनुसार अजित पवार 40 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो सकते हैं। लेकिन इसके बाद अजीत ने साफ कह दिया था कि बेवजह गलतफहमी फैलाई जा रही है। किसी विधायक का हस्ताक्षर नहीं लिया गया है। भाजपा के साथ जाने की खबरों में कोई सच्चाई नहीं है। उन्होंने कहा था कि जब तक जान में जान है तब तक एनसीपी से जुड़ा रहूंगा, चाहो तो एफिडेविट पर लिख कर दे दूं। हालांकि इसी बीच अजीत पवार ने अपने ट्विटर अकाउंट से पार्टी का चुनाव चिन्ह् हटा लिया था। जिसके बाद 21 अप्रैल को एनसीपी ने कर्नाटक चुनाव के लिए अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की, लेकिन इसमें अजीत पवार का नाम नहीं था, इसी दिन मुंबई में हुई पार्टी की एक बैठक में भी अजीत को शामिल नहीं किया गया।
अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला रणनीति या मजबूरी
82 वर्षीय मराठा क्षत्रप कहे जाने वाले पवार के बारे में कहा जाता है कि वे जो कहते हैं उसके पीछे दूरगामी सोच होती है। कहा जा रहा है कि उन्होंने ये अध्यक्ष पद आने वाली पीढ़ी को मौका देने और अपनी उम्र के चलते छोड़ा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एनसीपी अध्यक्ष पद छोड़ने की वजह अनायास नहीं है। इसके पीछे निश्चित ही पवार की दूरगामी दृष्टिकोण है। शरद पवार 82 साल के हैं और अब उनकी सियासी पारी खत्म हो चुकी है, ऐसा मानना बड़ी गलती होगी। अतीत में वह कई बार सियासी तौर पर और मजबूत होकर उभरे हैं। कभी सत्ता के केंद्र के तौर पर उभरे तो कभी उसके आसपास पहुंचे। राजनीति में व्यक्तिगत रुझान के बावजूद शरद पवार के व्यक्तित्व का सबसे अहम पहलू यह है कि तकरीबन हर राजनीतिक दल में उनके दोस्त हैं। वैचारिक तौर पर बीजेपी के कट्टर विरोधी होने के बावजूद उनके पीएम नरेंद्र मोदी से अच्छे संबंध हैं। जब भी उन्हें सियासी तौर पर लाभ नजर आता है तो वह विपक्षी दलों के रुख से अलग राह भी अपना लेते हैं। 1978 में महाराष्ट्र में जनता पार्टी के समर्थन से मुख्यमंत्री बनने के लिए वह कांग्रेस से अलग हुए। 1999 में जब उन्हें लगा कि त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम पर सहमति बन सकती है तो उन्होंने एक बार फिर कांग्रेस से रिश्ता तोड़ लिया। तब उन्होंने तर्क दिया कि वह नहीं चाहते कि इटली में जन्मे किसी शख्स यानी सोनिया गांधी को संभावित प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाए। लेकिन 1999 में जब एक बार फिर एनडीए की ही सरकार आई तो उन्होंने बिना देर किए सोनिया गांधी से अपने रिश्ते सुधार लिए और उनकी पार्टी महाराष्ट्र में कांग्रेस की सहयोगी बन गई।
महाविकास अघाड़ी गठबंधन पर पड़ेगा कोई असर!
माना जा रहा है कि शरद पवार का यह फैसला महाराष्ट्र में बने महाविकास अघाड़ी गठबंधन के लिए खतरा बन सकता है। शरद पवार महाविकास अघाड़ी के अध्यक्ष हैं। हालांकि कई नेताओं का मानना है कि महाविकास अघाड़ी पर शरद पवार के इस्तीफे का कोई असर नहीं होगा, मगर मामला इतना सरल नहीं है। कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के साथ महाविकास अघाड़ी बनाने में पवार की भूमिका अहम रही है। पवार का यह फैसला एमवीए पर असर डाल सकता है। पहले यह गठबंधन केवल कांग्रेस और एनसीपी का था। लेकिन बाद में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के बाद शिवसेना भी इसका हिस्सा बनी। निश्चित तौर पर शरद पवार के इस्तीफे से महाविकास अघाड़ी गठबंधन पर असर पड़ेगा। महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा, शरद पवार जी ने अपने अध्यक्ष पद से किस कारणवश इस्तीफा दिया है यह बताना मुश्किल है। हमें लगता था कि वे आखिरी सांस तक सामाजिक और राजकीय जीवन में रहकर एक विचारधारा के साथ लड़ेंगे, लेकिन अब उनके इस फैसले से महा विकास अघाड़ी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वहीं इसी संदर्भ में कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण ने कहा ‘मुझे नहीं लगता कि इससे महाविकास अघाड़ी पर कोई असर पड़ेगा। नेतृत्व बदलता रहता है। लेकिन एक अनुभवी नेता को अगर इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया तो निश्चित रूप से नुकसान उठाना पड़ेगा। इसलिए मैं समझता हूं कि उनका अध्यक्ष पद पर बने रहना जरूरी है।’
विपक्षी दलों पर असर
शरद पवार वर्ष 1967 से राजनीतिक जीवन में सक्रिय रहे हैं। वह विपक्ष के भीष्म पितामह माने जाते हैं। उनके इस्तीफे से बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों का मोर्चा बनाने की कोशिशों को झटका लग सकता है। 2024 की चुनावी जंग को लेकर विपक्षी एकता को बनाने में पवार एक बड़ी भूमिका निभा सकते थे। गौरतलब है कि पवार 1999 में एनसीपी के गठन के वक्त से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पिछले साल ही उन्हें फिर से चार साल के लिए अध्यक्ष चुना गया था। वे 24 साल से इस पद पर हैं। पवार जिद पर अड़े हैं किसी के भी मनाने से अपना फैसला नहीं बदलेंगे। पवार का कहना है कि मैं अध्यक्ष पद पर नहीं रहूंगा न ही कोई अन्य पद स्वीकार करूंगा। उन्होंने कहा है कि मेरे साथियों, भले ही मैं अध्यक्ष पद से हट रहा हूं, लेकिन मैं
सार्वजनिक जीवन से रिटायर नहीं हो रहा हूं। ‘निरंतर यात्रा’ मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। मैं सार्वजनिक कार्यक्रमों, बैठकों में भाग लेता रहूंगा। चाहे मैं पुणे, मुंबई, बारामती, दिल्ली या भारत के किसी भी हिस्से में रहूं, मैं हमेशा की तरह आप सभी के लिए उपलब्ध रहूंगा। मैं लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए चौबीसों घंटे काम करता रहूंगा। कई सालों तक मुझे राजनीति में पार्टी का नेतृत्व करने का मौका मिला, अब इस उम्र में आकर यह पद नहीं रखना चाहता। पवार के मुताबिक अब (एनसीपी) राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को लीड करने मौका किसी और को मिलना चाहिए। इसलिए नेताओं को यह फैसला करना होगा कि अगला अध्यक्ष कौन होगा।