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कुमार राकेश

आजम खान के बाद अब मायावती का नम्बर! स्थितियां तो कुछ ऐसी ही नजर आ रही हैं। मौजूदा योगी सरकार के कार्यकाल में मायावती के खिलाफ शिकंजा कसने की कार्रवाई बीते अगस्त माह से शुरु हो चुकी है। विजिलेंस ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। कार्रवाई के भय से तत्कालीन एलडीए के अधिकारियों से लेकर बसपा खेमे तक में खलबली है।

 

मायावती के खिलाफ सत्ताधारी दलों द्वारा इस तरह की कार्रवाई कोई नयी नहीं है। इससे पूर्व की सरकारों में भी मायावती द्वारा निर्मित पार्कों और मूर्तियों पर बेहिसाब खर्च को लेकर हिसाब मांगा जा चुका है। इस मामले में सीबीआई से जांच भी करायी जा चुकी है।
इतना सब कुछ होने के बाद मौजूदा योगी सरकार द्वारा विजिलेंस से जांच कराए जाने का औचित्य भले ही आम जनता की समझ से परे हो लेकिन इस औचित्य के पीछे का रहस्य बसपा प्रमुख मायावती से लेकर अन्य भाजपा विरोधी दल भी अच्छी तरह से जानते हैं। बसपा के साथ ही अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे पर इसलिए नहीं बोल रहे हैं क्योंकि वे भी अच्छी तरह से जानते हैं कि आखिर योगी सरकार की मंशा क्या है। कुछ ने तो खुलकर कह दिया है कि योगी सरकार का यह दांव सिर्फ बसपा को अर्दब में लेने तक ही सीमित है। भाजपा विरोधी दलों के दावों में कितनी सच्चाई है इसका फैसला तो आने वाले कुछ दिनों में स्वतः हो जायेगा, फिलहाल बीते अगस्त माह में विजिलेंस की टीम ने मायावती सरकार के कार्यकाल में बनाए गए पार्कों और मूर्तियों पर खर्च को लेकर लखनऊ विकास प्राधिकरण से हिसाब मांगा है। बताते चलें कि मायावती के कार्यकाल में जिस दौरान पार्कों और मूर्तियों पर बेहिसाब खर्च किया जा रहा था उन दिनों जो जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारी एलडीए में तैनात थे उनमें से अधिकतर के या तो तबादले हो चुके हैं या फिर सेवानिवृत्त हो चुके हैं। ऐसे में यदि विजिलेंस किसी प्रकार का निचोड़ निकाल भी लेती है तो वह कार्रवाई किस पर करेगी? रही बात पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की तो वह पहले ही कह चुकी हैं कि पार्कों और मूर्तियों पर खर्च करने की जिम्मेदार एलडीए की थी लिहाजा एलडीए अधिकारियों से ही पूछा जाए कि कहां कितना खर्च किया गया है। यही वजह है कि विजिलेंस के एक्टिव होने के बावजूद बसपा प्रमुख मायावती पर इसका कोई खास असर नजर नहीं आ रहा। ज्ञात हो आंबेडकर पार्क, ईको गार्डन, बौद्ध विहार, स्मृति उपवन का निर्माण मायावती सरकार के कार्यकाल में कराया गया था।
विगत माह विजिलेंस ने एलडीए से जो जानकारी मांगी है उसमें एलडीए के तत्कालीन उपाध्यक्ष, सचिव और सेक्शन अफसरों के नाम-पते शामिल हैं। एलडीए में उनकी नियुक्ति, कार्यकाल और वर्तमान तैनाती के साथ ही सभी के फोन नंबर भी मांगे गए हैं। इससे साफ है कि विजिलेंस पूर्व में हुई जांचों पर विश्वास करने के बजाए अपने स्तर से और नए सिरे से जांच करने का मन बना चुकी है।
पूर्ववर्ती मायावती सरकार के कार्यकाल (वर्ष 2007 से लेकर वर्ष 2011) में एलडीए के चीफ इंजिनियर त्रिलोक नाथ, संयुक्त निदेशक एसबी मिश्रा, एक्सईएन विमल कुमार सोनकर, महेंद्र सिंह गुरुदत्ता व राकेश कुमार शुक्ला पर विजिलेेंस की नजर गड़ी है। विजिलेंस ने इन्हीं अधिकारियों से जुड़े कई दस्तावेज तलब किए गए हैं। इतना ही नहीं तत्कालीन एलडीए के उपाध्यक्ष/सचिव और सेक्शन अफसरों के नाम पतों के साथ ही एलडीए में उनकी नियुक्ति, कार्यकाल और वर्तमान तैनाती की जानकारी भी मांगी गयी है।
फिलहाल मौजूदा योगी सरकार के कार्यकाल में सतर्कता विभाग ने जिस तेजी के साथ जांच का काम शुरु किया है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले दिन कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए मुसीबत का सबब बन सकते हैं। यदि अधिकारियों ने स्वयं को फंसता देख विजिलेेंस टीम के समक्ष मंुह खोला तो निश्चित तौर पर बसपा प्रमुख मायावती भी विजिलेंस के शिकंजे में कसी जा सकती हैं।

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