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पंजाब के बाद अब हिमाचल फतह करना चाहती है आप

अन्ना आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी पहले दिल्ली फिर पंजाब में अपनी सरकार बनाने के बाद अब उसकी निगाहें अन्य राज्यों पर है। खासकर साल के आखिर में हिमाचल और गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी अभी से सक्रिय नजर आ रही है। गुजरात में आम आदमी पार्टी पहले भी चुनाव लड़ चुकी है लेकिन हिमाचल में वह पहली बार चुनाव लड़ेगी। कहा जा रहा है कि पार्टी को जिस तरह हाल ही में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला उसका असर हिमाचल में भी देखने को मिल सकता है। हिमाचल प्रदेश के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो यहां की राजनीतिक धुरी भाजपा और कांग्रेस के आसपास ही घूमती नजर आती है। लेकिन आम आदमी पार्टी पंजाब में जीत के बाद अब हिमाचल फतह करना चाहती है ।

हालांकि हिमाचल में “आप” की इस एंट्री के जोश को भाजपा ने ज़रा हल्का कर दिया है। दरअसल, कुछ दिन पहले भाजपा ने आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अनूप केसरी को भाजपा में शामिल कर लिया है। केसरी के साथ ही ‘आप’ के संगठन महामंत्री सतीश ठाकुर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है । वहीं ऊना से आप अध्यक्ष इकबाल सिंह भी भाजपा में शामिल हो गए हैं।

आप के हिमाचल प्रदेश अध्यक्ष अनूप केसरी ने पार्टी छोड़ने का कारण बताते हुए कहा, “हम पिछले 8 साल से आम आदमी पार्टी के लिए काम कर रहे थे लेकिन इसके बावजूद 6 तारीख को मंडी में हुई आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान की रैली में 4 घंटे हमारे कार्यकर्ता धूप में खड़े होकर इंतजार कर रहे थे, लेकिन उनके पास उन्हें मिलने के लिए एक मिनट का भी समय नहीं था।”

राज्य में साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 68 में से 44 सीटों पर जीत मिली थी जबकि कांग्रेस के खाते में महज़ 21 सीटों आई थीं। जबकि एक सीट सीपीएम के खाते में भी गई थी।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यहां प्रदेश में जातीय समीकरण बहुत मायने नहीं रखते लेकिन देश की मौजूदा राजनीति जातियों को साध हो रही है तो जातीय समीकरण को नज़रअंदाज़ करना भी ठीक नहीं होगा। राज्य में सबसे ज्यादा सवर्ण मतदाता हैं, जो फिलहाल भाजपा का कोर वोटर माने जाते हैं, 2017 में इन्होंने भाजपा का भरपूर साथ दिया था, हालांकि इस चुनाव में चौंकाने वाली बात यह रही थीं कि भाजपा के लिए मुख्यमंत्री पद का चेहरा रहे प्रेम कुमार धूमल खुद चुनाव हार गए थे, जबकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सत्यपाल सिंह भी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे।

साल 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में 50 फीसदी से ज्यादा आबादी सवर्ण मतदाताओं की है। 50.72 सवर्णों में सबसे ज्यादा 32.72 फीसदी राजपूत और 18 फीसदी ब्राह्मण हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 25.22 फीसदी है और अनुसूचित जनजाति की आबादी 5.71 फीसदी है। प्रदेश में ओबीसी 13.52 फीसदी और अल्पसंख्यक 4.83 फीसदी हैं।

अगर इन जातियों के आधार पर भाजपा की रणनीति को समझें तो, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेश के ब्राह्मण बिरादरी से आते हैं, तो 2017 में जब भाजपा सत्ता में आई तो पहले राजीव बिंदल और फिर अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले शिमला के सांसद सुरेश कश्यप को संगठन की कमान सौंप दी गई, जनसंख्या के लिहाज से राजपूतों के बाद एससी समुदाय का नंबर है, और फिर प्रदेश की राजनीति में राजपूतों का दखल किसी से छिपा है नहीं, जबकि किंग मेकर की भूमिका अक्सर ब्राह्मण निभाते हैं। कहने का मतलब साफ है कि भाजपा अपने पुराने ढर्रे पर ही चलकर जातियों को साधकर एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर चुकी है।

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वहीं विपक्षी पार्टी कांग्रेस अपने दलित नेताओं के माध्यम से मतदाताओं को उनके उत्थान के बारे में समझाने में जुटी हुई है। राज्य में कांग्रेस के द्वारा दलित सशक्तिकरण और महंगाई के मुद्दे के माध्यम से सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है। इसमें भी कांग्रेस के लिए सरकार के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार महंगाई ही साबित हो सकता है, क्योंकि अक्टूबर 2021 में जितनी सीटों पर उपचुनाव हुए भाजपा ने सभी गवां दी थीं। जिसमें मंहगाई का मुद्दा ही सबसे ऊपर निकलकर आया था।

वैसे हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के लिए मुस्लिम फैक्टर भी असरदार होने की सम्भावना है। क्योंकि पिछली बार इस समुदाय के 67 फीसदी वोट कांग्रेस के पाले में गए थे। जबकि 21 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। अन्य के खाते में 12 फीसदी वोट थे। वैसे तो प्रदेश में मुस्लिम मतदाता अधिक नहीं है, फिर भी दर्जन भर सीटों पर वो उलटफेर करने की ताकत रखते हैं।

ऐसे में आम आदमी पार्टी भी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए पूरी तरह से मैदान में है , पार्टी पहले ही सभी 68 सीटों पर लड़ने का एलान कर चुकी है। पार्टी का फोकस हिमाचल के ऊना, कांगड़ा, बिलासपुर और सोलन जिलों पर है। इसका कारण यह है कि ये सभी इलाके पंजाब से सटे हुए हैं। वहीं पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व में सरकार बनी है, इसका असर पड़ोसी राज्य के इन इलाकों में देखा जा सकता है। वहीं, कांगड़ा जिले में राज्य की सबसे ज्यादा 15 विधानसभा सीटें हैं।

विश्लेषकों का मानना है कि आम आदमी पार्टी भाजपा -कांग्रेस दोनों का खेल बिगाड़ सकती है, इसमें ज्यादा खतरा कांग्रेस पर मंडरा रहा है, क्योंकि पिछले कुछ दिनों में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए अधिकतर नेता कांग्रेस से ही आये हैं, लेकिन इस बात से भी किनारा नहीं किया जा सकता है कि अपरिपक्व संगठन के साथ हिमाचल का पहाड़ चढ़ना आम आदमी पार्टी के लिए इतना आसान भी नहीं होने वाला। क्योंकि इस प्रदेश में आम आदमी पार्टी के पास लगभग 2.25 लाख सदस्य ही हैं और यहां के कुल वोटरों की संख्या 52 लाख से भी ज्यादा है ।

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