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नौ साल बाद फिर चिंतन मनन की राह पर कांग्रेस

चार राज्यों में करारी हार के बाद कांग्रेस एक बार फिर चिंतन मनन की राह पर चलने का मन बना चुकी है। चिंतन मनन शिविर लगाकर कांग्रेस कार्यसमिति ( सीडब्लूसी ) अपनी आगे की रणनीति बनाएगी। इस बार पार्टी का लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव होगा। जिसमें पार्टी को अपनी परफॉर्मेंस बढ़ाने के लिए पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं को टिप्स दिए जाएंगे।  हालांकि जब से सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्ष बनी है तब से कांग्रेस तीन बार चिंतन मनन शिविर लगा चुकी है। लेकिन इनका पार्टी के ग्राफ बढ़ाने में कोई योगदान नहीं रहा। कांग्रेस का अंतिम चिंतन शिविर 2013 में जयपुर में लगाया गया था। जिसके बाद पार्टी की कभी भी बढ़त हासिल नहीं हुई।
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस संगठन में गांधी परिवार की वापसी हुई। तब पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी को हटाकर सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंपी गई। इसके बाद सोनिया गांधी ने 1998 में पहली बार मध्य प्रदेश के पचमढ़ी में चिंतन मनन शिविर का आयोजन किया। पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को एकजुट कर पार्टी को जिताने के लिए रणनीति बनाई गई । तब शिविर में गठबंधन से त्रस्त कांग्रेस ने एकला चलो की नीति तय की थी। इसके बाद 1999 के आम चुनाव हुए। जिसमें कांग्रेस को सफलता नहीं मिली। इस चुनाव में पार्टी को सिर्फ 114 लोकसभा सीट ही मिल सकी। तब अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में दो दर्जन दलों के गठबंधन की केंद्र में सरकार बनी थी।
 5 साल बाद एक बार फिर चिंतन मनन शिविर का आयोजन किया गया। यह आयोजन 2003 में शिमला में हुआ था। जिसमें उत्तर प्रदेश , गुजरात सहित कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार मिलने के बाद चिंतन शिविर में पार्टी के हालातों पर चर्चा की गई। इस चिंतन शिविर में कांग्रेस ने पचमढ़ी में तय किए गए नीति निर्धारण को बदल दिया। इसके बाद ही सामान्य विचारधारा के दलों के साथ गठबंधन का फार्मूला तैयार कर चुनाव लड़ने का फैसला किया। गया कांग्रेस को इस निर्णय का फायदा भी मिला। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को शाइनिंग इंडिया के रथ पर सवार अटल आडवाणी की जोड़ी को पछाड़कर केंद्र में सफलता मिली। तब कांग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई।
दूसरे चिंतन शिविर के 10 साल बाद राजस्थान की राजधानी जयपुर में तीसरा चिंतन शिविर पार्टी के द्वारा लगाया गया । यह चिंतन शिविर अन्ना आंदोलन के बाद आयोजित किया गया था। जिसे उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात सहित कई राज्यों में मिली हार के बाद लगाया गया था। इस चिंतन शिविर की खासियत यह रही कि यह राहुल गांधी के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गया। तब राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के महासचिव पद पर थे। उन्हें उपाध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया गया। इसी शिविर में तय किया गया कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। चुनाव लड़ने के लिए उन्हें अपना पद छोड़ना होगा। हालांकि पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव में इसके उलट देखने को मिला था। यहां उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष रहते अजय कुमार लल्लू विधानसभा का चुनाव लड़े।

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