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उत्तराखंड PPE किट घोटाले में एडवोकेट मैनाली ने हाईकोर्ट में किया झूठ का पर्दाफाश

मैनालीउत्तराखंड PPE किट घोटाले में एडवोकेट मैनाली ने हाईकोर्ट में किया झूठ का पर्दाफाश

कोरोना जैसी महामारी पर भी कुछ संवेदनाओं के सौदागर घोटाला करने से बाज नहीं आ रहे हैं। उनके ऐसे घृणित कारनामे सामने आ रहे हैं कि इंसानियत भी शर्मसार हो रही है। ऐसे समय में जब पूरी दुनिया इंसान को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं तो कुछ लोग इस बीमारी में डॉक्टरों को बचाने के लिए बहुउपयोगी पीपीई किट में भी घोटाला करके अपना जुगाड़ करने में जुटे हैं।

ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड के जिला नैनीताल के हल्द्वानी मे सामने आया है। यहां सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में कोरोना महामारी का इलाज कर रहे डॉक्टरों को मरीजों से बचाव के लिए पीपीई किट खरीदी गई। जिसके लिए कॉलेज प्रबंधन ने 1000 पीपीई किट का आर्डर दिया था। जब यह किट हॉस्पिटल में पहुंची तो डॉक्टर ने इन्हें लेने से मना कर दिया।

क्योंकि उस पीपीई किट में वह बचाव के जरूरी उपकरण नहीं थे जिनसे डॉक्टर कोरोना जैसी महामारी से रोगियों का इलाज करते समय बच सके। इसके बाद किट वापिस करके मामला रफा-दफा कर दिया गया। स्थानीय मीडिया ने इस मामले को पहले तो बडे जोर शोर से उठाया लेकिन बाद में इसकी तह में जाना तक उचित नहीं समझा। फिलहाल इस मामले को दबाने का पूरा खेल चल रहा है।

यहां तक कि घटिया पीपीई किट पकडे जाने के बाद आपूर्तिकर्ता फर्म पर छापामारी भी की गई। लेकिन उस छापामारी में क्या सामने आया यह उजागर नही किया गया। इस पूरे प्रकरण में प्रदेश के किसी मंत्री का हाथ होने की आशंका भी जाहिर की जा रही है।

यह उजागर होना बहुत जरूरी है कि महामारी के ऐसे कठिन दौर में भी कौन ऐसा घोटालेबाज है जो पैसा बनाने में जुटा है। हालांकि हाई कोर्ट नैनीताल के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने इस पूरे खेल को समझा। जिसके बाद मामले की छानबीन की गई । जिसमें कई चौंकाने वाले रहस्य सामने आए।

एडवोकेट दुष्यंत मैनाली ने इस मामले में पूरे सबूत जुटाए और हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर दी। ऑनलाइन दायर की गई याचिका में उन्होंने करीब 50 पेज के दस्तावेज दिए। इस पर हाई कोर्ट नैनीताल में उनकी याचिका को स्वीकार करते हुए सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल चंद्रप्रकाश भैसोडा को तलब कर लिया। जब भैसोडा को कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया गया तो उन्होंने बड़ी साफगोई से अपने आप को बचाने का प्रयास किया और कहा कि हमने सिर्फ पीपीई किट की सैंपल मंगवाई थी।

लेकिन प्रिंसिपल के इस झूठ का पर्दाफाश अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने कोर्ट में कर दिखाया। उन्होंने कोर्ट के समक्ष वह सबूत भी रखें जिसमें पीपीई किट निर्माण करने वाली कंपनी ने कहा था कि आपकी 1000 किट बनकर तैयार है ले जाईए। यही नहीं बल्कि एडवोकेट दुष्यंत मैनाली ने कोर्ट के समक्ष उक्त फर्म की परचेज ऑर्डर और रिजेक्शन ऑर्डर दोनो की स्लिप भी रख दी। इसके बाद जब यह भी पता चला कि पीपीई किट बनाने वाली कंपनी ही फर्जी है जो हरिद्वार में एक होटल के कमरे में चल रही थी।

फिलहाल, बीएनके इंटरप्राइजेज नामक यह कंपनी अपने पीपीई किट में धांधली बाजी के आरोप में बुरी तरह फस गई है। इस कंपनी ने पीपीई किट में जमकर घोटाला किया। 1000 किट 90 लाख मे दी गई। जिसमें प्रति किट 900 की लगाई गई। जबकि रुद्रपुर की एक कंपनी उसी किट को 800 रूपए में दे रही थी। इसमें सरकार की मिलीभगत भी उजागर हो रही है।

अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली की माने तो पहले जब इस कंपनी को ऑर्डर किए गए तो उसी में खामियां थी। उस आर्डर में स्पष्ट नहीं था कि पीपीई किट किस तरह की बनाई जानी है। उस आर्डर में स्पष्ट नहीं था कि पीपीई किट में डब्ल्यूएचओ के मानक के हिसाब से क्या क्या होना है। उल्टे उसमें ट्रॉली शीट जैसे वो उपकरण मंगाए गए जो ऑपरेशन में चाहिए होते है।

जानकारी के अनुसार पीपीई किट का आर्डर सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में 27 मार्च को दिया गया था। जिसमें 1000 किट सप्लाई करनी थी। 15 अप्रैल को यह सभी पीपीई किट सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में पहुंच भी गई।

इसके बाद जब डॉक्टरों ने इसका विरोध किया तो यह मामला सामने आया। सुशीला तिवारी मेडिकल हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने इस किट को देखकर कह दिया कि वह इस किट को नही पहनेंगे। क्योंकि किट पूरे सेट में नहीं थी। जिसमें ना तो चश्मा था और ना शूट था और ना ही सर्जिकल बूट था। इस तरह कई खामियों वाली यह किट जब सुशीला तिवारी डॉक्टरो के सामने पहुंची तो  चिकित्सको ने इसे लेने से मना कर दिया। प्रिंसिपल चंद्रप्रकाश भैसोडा ने इस मामले की कानोकान किसी को खबर ना हो इसलिए इनको तत्काल वापस कर दिया।

हुआ यह कि पीपीई किटो का भुगतान होने से पहले डाँक्टरो ने हंगामा कर दिया और मीडिया को भी यह सब बता दिया। इसके बाद जब मीडिया में यह मामला उजागर हुआ तो सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज प्रबंधन बैक फुट पर आ गया। इसके चलते फर्म को भुगतान होने से तो रूक गया। जबकि इस मामले में यह तथ्य छुपा दिया गया कि सैंपल जांचने के बाद खरीद तो हो ही चुकी थी।

सवाल यह है कि अगर खरीद हुई तो किसके इशारे पर हुई और क्यों हुई? दूसरा सवाल यह है कि अगर सैंपल की ही बात करें तो एक हजार पीपीई किट कैसे भंडार में उसी फर्म ने आपूर्ति कर दी? तीसरा सवाल यह है कि इस मामले की पूरी जांच होनी चाहिए थी तो आखिर जांच क्यों और किसके सहारे पर नहीं हुई?

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