अमेरिकी जांच एजेंसियों का भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी और उनके विशाल आर्थिक साम्राज्य पर कहर ढहाने का कारण बनता नजर आने लगा है। अडानी और उनके सात सहयोगियों पर अमेरिका में भ्रष्टाचार कर सौर परियोजनाओं को हासिल करने का मुकदमा दर्ज किया गया है और न्यूयॉर्क की एक अदालत ने अडानी के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट भी जारी कर दिया है। इस मुकदमे के बाद भारतीय विपक्ष एक बार फिर अडानी के खिलाफ मुखर हो चला है
अहमदाबाद के मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले गौतम अडानी एशिया के सबसे अमीर लोगों में से एक हैं और भारत में अमीरी के मामले में दूसरे नंबर पर आते हैं। बेहद विवादित छवि के गौतम अडानी पर एक बार फिर से संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। अमेरिका द्वारा गौतम अडानी और उनके सात सहयोगियों पर रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया गया है। गौतम अडानी के साथ सागर अडानी, विनित जैन, रंजीत गुप्ता, सिरिल कैबानिस, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा और रूपेश अग्रवाल के खिलाफ मुकदमा भी अमेरिका में दर्ज किया जा चुका है। गौतम अडानी के खिलाफ न्यूयॉर्क की फेडरल कोर्ट ने अरेस्ट वारंट जारी कर 21 दिनों के भीतर जवाब मांगा है।
अमेरिकी अभियोजकों के अनुसार अडानी और उनके सहयोगियों ने भारत में सोलर एनर्जी का कॉन्ट्रैक्ट पाने के लिए सरकारी अफसरों को 26.5 करोड़ डॉलर (करीब 2200 करोड़ रुपए) की रिश्वत दी थी। आरोपियों पर इस मामले को लेकर कोर्ट ने ‘फॉरेन करप्ट प्रैक्टिस एक्ट’ (एफसीपीए) लगाया है। इस एक्ट के तहत आरोपी के दोषी पाए जाने पर जुर्माना समेत पांच साल की जेल हो सकती है।
गौरतलब है कि गौतम अडानी और उनके विशाल आर्थिक साम्राज्य वाले अडानी समूह पर अमेरिका में रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के गम्भीर आरोप लगे हैं। अमेरिकी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन के अनुसार अडानी समूह ने 2020 से 2024 के बीच भारत सरकार के अधिकारियों को सौर ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं को हासिल करने के लिए 256 मिलियन डॉलर की रिश्वत दी। आरोप है कि इन परियोजनाओं से अडानी समूह को 2 बिलियन डॉलर मुनाफा होने की उम्मीद थी। इतना ही नहीं अमेरिकी जांच एजेंसियों ने अडानी समूह पर निवेशकों और ऋणदाताओं को गुमराह कर 3 बिलियन डॉलर से अधिक धनराशि जुटाने और अमेरिकी जांच में बाधा डालने का भी आरोपी करार दिया है।
अडानी समूह पर भारी पड़ेगा यह मुकदमा
गौतम अडानी और उनके समूह पर दर्ज इस मुकदमें के व्यापक प्रभाव पड़ने तय हैं। उनकी वित्तीय स्थिति, साख और उनकी वैश्विक योजनाओं को प्रभावित करेगा। उदाहरण के लिए अडानी समूह ने हाल ही में 3 बिलियन डॉलर निवेशकों से जुटाए हैं। इन आरोपों के चलते उसे भविष्य में निवेश जुटाने में परेशानी उठानी पड़ सकती है और यह समूह भारी आर्थिक दबाव में आ सकता है। इसके अतिरिक्त इस मुकदमें के कारण उसकी अंतरराष्ट्रीय साख गिरने के साथ-साथ अमेरिका में उसके द्वारा प्रस्तावित 10 बिलियन डॉलर की सौर परियोजना को अब कर पाना मुश्किल नजर आ रहा है। भारतीय संदर्भ में गौतम अडानी एक बार फिर से विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के निशाने पर आ चुके हैं। राहुल ने गौतम अडानी की तुरंत गिरफ्तारी की मांग कर डाली है और इस मामले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अडानी समूह के बीच कथित सांठ-गांठ का प्रमाण करार देते हुए इसे -क्रोनी कैपिटलिज्म’ का उदाहरण बताया है। उन्होंने कहा है कि यह मामला केवल आर्थिक अनियमितताओं का नहीं है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने का प्रयास है।
अडानी पर इस तरह के आरोप भारत में पहले भी लगाए जा चुके हैं। लेकिन अमेरिका में इस तरह का आरोप पहली बार किसी भारतीय कारोबारी पर लगा है। जिससे अंदेशा लगाया जा सकता है कि अडानी अमेरिका द्वारा लगाए गए आरोपों से बुरी तरह घिर गए हैं। अमेरिकी डिप्टी असिस्टेंट अटॉर्नी जनरल लीसा मिलर का कहना है कि अमेरिका में यह मामला निवेशकों को बचाने के लिए दर्ज किया गया है। मिलर ने कहा है कि ऐसे भ्रष्ट और धोखाधड़ी करने वाले लोगों पर सख्त कार्रवाई जारी रखी जाएगी, चाहे वे दुनिया में कहीं भी हों। यहां एक सवाल यह भी उठता है कि अडानी द्वारा भारतीय अधिकारियों को रिश्वत दी गई। प्रोजेक्ट भी भारत का था तो अमेरिका में अडानी और उनके अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा क्यों दर्ज किया गया। अमेरिका में रिश्वत देने के आरोप में अडानी और उनके सहयोगियों के दो मामले चलाए जा रहे हैं। एक की जांच एफबीआई तो दूसरे की सिक्योरिटी एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) कर रही है। अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग एक स्वतंत्र संघीय सरकारी विनियामक एजेंसी हैं जो निवेशकों की सुरक्षा और निष्पक्ष और व्यवस्थित प्रतिभूति बाजारों को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है। अडानी और उनके सहयोगियों के खिलाफ जांच कराने वाले पांच अहम किरदारों में से दो भारतीय भी हैं जो एसईसी से जुड़े हैं। पहले हैं संजय वाधवा जो भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक हैं। वाधवा सिक्योरिटी एक्सचेंज कमीशन की इन्फोर्समेंट डिविजन के एक्टिंग डायरेक्टर हैं। जिसका काम अपराध करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना और नुकसान उठाने वाले निवेशकों को उनका पैसा वापस दिलाना है। वाधवा ने इसी साल 11 अक्टूबर को ये जिम्मेदारी संभाली थी। दूसरा अहम किरदार है तेजल डी. शाह जो एसईसी के न्यूयॉर्क ऑफिस में इन्फोर्समेंट डिवीजन की एसोसिएट रीजनल डायरेक्टर हैं। अडानी के रिश्वत देने की जांच तेजल शाह की देखरेख में की जा रही है। वे 2014 से इस संस्था से जुड़ी हैं। पिछले साल ही उन्हें एसोसिएट डायरेक्टर नियुक्त किया गया था।
क्या है अडानी मामला
अमेरिका में अडानी को लेकर चलाया जा रहा पूरा मामला अडानी ग्रीन एनर्जी और एज्योर पावर ग्लोबल लिमिटेड को लेकर है। ये बिजली उत्पादक ऊर्जा कंपनियां हैं। इनके खिलाफ पिछले महीने ही मुकदमा दर्ज हुआ है। अमेरिकी अभियोजकों द्वारा आरोप लगाया गया है कि अडानी और उनके कंपनी के अधिकारियों ने अपनी अक्षय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिलाने के लिए भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने की सहमति जताई थी। इस कॉन्ट्रैक्ट से कंपनी को आने वाले 20 सालों में दो अरब डॉलर से अधिक का मुनाफा होने की उम्मीद थी। खबरों के अनुसार सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया जो कि सरकारी कंपनी है उसे 12 गीगावाट सोलर एनर्जी का कॉन्ट्रैक्ट देना था। इसमें से अडानी ग्रीन एनर्जी ने 8 गीगावॉट और एज्योर पावर 4 गीगावॉट बिजली सप्लाई करती। अडानी और एज्योर पावर ने सोलर पावर बेचने की जो कीमत दी, उस कीमत पर सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को कोई खरीदार नहीं मिला था। दावा किया जा रहा है कि अडानी ने इस कॉन्ट्रैक्ट को पाने के लिए पूरी योजना बनाई थी। यूएस अटॉर्नी ऑफिस के मुताबिक आरोप है कि 2021 और 2022 में अडानी और अन्य लोगों ने भारत में अधिकारियों से कई बार मुलाकात की और रिश्वत की पेशकश की ताकि पावर सेल समझौता कर सकें। रिश्वत देने के बाद जम्मू- कश्मीर, उड़ीसा, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, की बिजली वितरण कंपनियों से डील की गई। इन समझौतों के तहत उड़ीसा 500 मेगावाट, छत्तीसगढ़ 300 मेगावाट, आंध्र प्रदेश 2,000 मेगावाट, तमिलनाडु 1,000 मेगावाट और जम्मू-कश्मीर 100 मेगावाट एसईसीआई से बिजली खरीदती। कथित तौर पर 22.8 करोड़ डॉलर का भुगतान आंध्र प्रदेश के अधिकारी को किया गया और इसके बदले आंध्र प्रदेश एसईसीआई से सात गीगावॉट बिजली खरीदने के लिए तैयार हुआ था। लेकिन अब गौतम अडानी समूह पर लगे रिश्वतखोरी के आरोपों के चलते तेलंगाना सरकार ने उनसे किसी भी तरह का कोई फंड नहीं ले रही। तेलंगाना सरकार ने अडानी फाउंडेशन के 100 करोड़ रुपए का फंड लेने से इनकार कर दिया है। वहीं अन्य राज्यों ने भी अडानी समूह के प्रोजेक्टों की जांच कराने की बात कही है।
अडानी समूह का जवाब
अडानी ग्रुप ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कानूनी कार्रवाई करने की बात कही है। अडानी समूह ने कहा है कि ‘हम अपने सहयोगियों और कर्मचारियों को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि हम कानून को मानने वाली कंपनी हैं जो सभी कानूनों का पालन करती है।’
इन देशों में भी मंडराने लगा खतरा
अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा लगाए गए अडानी ग्रुप पर रिश्वत के आरोपों बाद भारत के पड़ोसी देशों में चल रहे अडानी के प्रोजेक्ट्स पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। बांग्लादेश ने अडानी पावर ट्रेडिंग समझौते सहित प्रमुख बिजली उत्पादन अनुबंधों की समीक्षा के लिए एक समिति नियुक्त की है। वहीं श्रीलंका की कैबिनेट वहां चल रहे अडानी परियोजनाओं की जांच के बाद निर्णय लेगी। कुछ दिन पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के नेतृत्व वाली सरकार ने देशा के सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह पवन ऊर्जा परियोजना के लिए अडानी समूह को पिछली सरकार द्वारा दी गई मंजूरी पर पुनर्विचार करेगी।
दूसरी तरफ इसकी आंच अब केन्या और फ्रांस तक पहुंच गई है। आलम यह है कि केन्या में भी अडानी समूह का निवेश फंस गया है। अडानी समूह को केन्या के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार के लिए 1.8 बिलियन डॉलर का ठेका दिया गया था। जिसे अब केन्या ने निरस्त कर दिया है। वहीं फ्रांस की कम्पनी टोटल एनर्जी ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक अडानी समूह पर लगे आरोप के परिणाम स्पष्ट नहीं हो जाते तब तक उनकी कम्पनी में निवेश नहीं करेगी।
थम नहीं रही अडानी की मुश्किलें
अमेरिका घूसकांड के बाद से गौतम अडानी समूह की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। इस बीच अब ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अडानी को बड़ा झटका दिया है। मूडीज ने अडानी की 7 कम्पनियों की रेटिंग आउटलुक को गिराकर उसे निगेटिव कर दिया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक मूडीज ने अडानी समूह की जिन कंपनियों के आउटलुक बदले गए हैं उनमें अडानी ग्रीन, अडानी पोर्ट्स, अडानी ट्रांसमिशन, अडानी इलेक्ट्रिसिटी मुम्बई लिमिटेड, अडानी इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल, अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल एकोनॉमिक्स जोन लिमिटेड शामिल हैं। अडानी ग्रीन और अडानी ट्रांसमिशन की दो-दो इकाइयों की रेटिंग बदली गई है, वहीं अडानी इलेक्ट्रिसिटी, अडानी पोर्ट्स और अडानी इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल की रेटिंग को स्टेबल से घटाकर निगेटिव कर दिया गया है। यही नहीं मूडीज के अलावा फिच ने भी अडानी ग्रुप की 4 कंपनियों का आउटलुक में बदलाव कर दिया है। फिच ने अडानी समूह की चार कंपनियों की रेटिंग को स्टेबल से घटाकर नेगटिव कर दिया है। इतना ही नहीं फिच अडानी की मौजूदा कर्ज पर भी नजरें बनाए हुए है। फिच ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि कॉरपोरेट गवर्नेंस के बढ़ते रिस्क के चलते कंपनियों की रेटिंग को निगेटिव किया गया है।