कुछ ही महीनों बाद गोवा सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। सत्तासीन भाजपा अपनी कुर्सी बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। वहीं इस तटीय राज्य में आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की सक्रियता से कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी है। भाजपा-कांग्रेस के साथ छोटे दलों की सक्रियता से गोवा में एक बार फिर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन सकते है। हालांकि इस राज्य में दलों और नेताओं की निष्ठाएं बदलती रहती हैं। इसका असर सरकारों पर भी व्यापक रूप से पड़ता है।
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी यहां त्रिशंकु विधानसभा उभरी थी। 40 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 17 सीटें मिली थीं। इसके बावजूद 13 सीटें जीतने वाली भाजपा ने गठबंधन सरकार का गठन किया था। अब कई विधायक भी पाला बदल रहे हैं। हाल में गोवा फ़ॉरवर्ड पार्टी के विधायक जयंत सालगांवकर ने भाजपा का दामन थामा है।
तृणमूल कांग्रेस भी गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे लुइजेन्हो फेलेरो के नेतृत्व में उतर रही है। फलेरो ने हाल में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर टीएमसी का दामन थाम लिया था। वहीं आम आदमी पार्टी यहां पर काफी दिनों से सक्रिय है। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने राज्य के दौरे भी किए हैं। उन्होंने दिल्ली की तरह कई घोषणाएं भी की हैं।
भाजपा यहां पर मौजूदा चुनावी घमासान में सबसे मजबूत दिख रही है, लेकिन राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता रहे मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद पार्टी में सर्वमान्य चेहरे की कमी है। हालांकि, युवा नेता और मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत काफी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी सरकार भी विवादों में घिरी रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस में भी नेतृत्व व समन्वय की कमी दिख रही है।
छोटा राज्य होने से गोवा में अस्थिरता ज्यादा रहती है, हालांकि बीते कुछ सालों में राज्य में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव घटा है और राष्ट्रीय दल कांग्रेस एवं भाजपा ज्यादा मजबूत हुई है। ऐसे में मुख्य चुनावी घमासान सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के बीच होने की उम्मीद है, लेकिन दोनों ही दलों में कोई स्पष्ट बहुमत हासिल कर पाए इसे लेकर स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है। राज्य की 25 फीसद सीटें ऐसी हैं, जिन पर छोटे दल प्रभावी हैं।