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JNU हिंसा का एक साल , दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार की ख़ामोशी पर सवाल

 याद कीजिए एक साल पहले की 5 जनवरी की वह शाम जब दिल्ली के ख्यातिप्राप्त जवाहरलाल नेहरू विश्वविधालय ( जेएनयू ) में सैकड़ो नक़ाबपोश घुस गए थे। वे कॉलेज परिसर में न केवल तोड़फोड़ कर रहे थे बल्कि जो भी सामने आ रहा था उसे चोट पंहुचा रहे थे। इस हमले में छात्र और अध्यापक बुरी तरह घायल हुए थे।  कुल मिलाकर 35 लोग घायल हुए थे। नकाबपोश हमलावर जोर जोर से चिल्ला – चिल्ला कर नारे लगा रहे थे –  ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’, ‘नक्सलवाद मुर्दाबाद’ और ‘न माओवाद, ना नक्सलवाद, सबसे ऊपर राष्ट्रवाद’।

इस हमले ने जेएनयू की छवि को गहरा धक्का पंहुचा था। नकाबपोश के सीसीटीवी फुटेज भी सामने आई थी। स्टिंग ऑपरेशन में भी हमला करने वालो का खुलासा हो गया था। तब रिपोर्ट भी दर्ज हुई।  पुलिस ने आरोपियों को पहचानने के दावे भी किए। जाँच कमेटी भी बिठाई गई थी। लेकिन एक साल बाद भी स्थिति जस की तस है। जाँच फाइलों तक सिमटकर रह गई। जांच रुकने के लिए लॉक डाउन का बहाना बना दिया गया। वामपंथी छात्र संगठन और बीजेपी का छात्र संगठन एबीवीपी दोनों हिंसा के लिए एक-दूसरे को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच की विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने 15 संदिग्धों छात्रों की पहचान की थी। लेकिन बताया गया कि लॉकडाउन के ऐलान और सभी छात्रों के अपने घर लौटने की वजह से जांच रुक गई। आज एक साल बाद भी इस प्रकरण पर दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार की खामोशी कई सवाल खड़े करती है।

  गौरतलब है कि जेएनयू परिसर में 5 जनवरी 2020 की देर शाम उस वक्त हिंसा भड़क गयी थी, जब लाठियों से लैस कुछ नकाबपोश लोगों ने छात्रों तथा शिक्षकों पर हमला कर दिया था और परिसर में संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद प्रशासन को पुलिस को बुलाना पड़ा था। आशी घोष का सिर फटने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। करीब तीन दर्जन छात्र घायल हुए थे। इनमें से 35 का एम्स और सफदरजंग अस्पताल में गंभीर हालत में भर्ती कराया गया था। तब छात्र यूनियन के महासचिव सतीश चंद्रा भी इस हिंसा में घायल हो गए तो एबीवीपी का दावा है कि अध्यक्ष पद के उसके उम्मीदावार मनीष जांगिड़ हमले में बुरी तरह से घायल हो गए थे।
कुछ शिक्षकों के भी हमले में शामिल होने की खबर सामने आई थी। बताया गया कि बाहर से कैंपस में घुसे नकाबपोशों लोगों ने इस हिंसा को अंजाम दिया। नकाबपोश हमलावरों के हाथ में लाठियां और रॉड थे।  मुनिरका इलाके से वे कैंपस में घुसे थे। हिंसा के बाद वे फरार हो गए। इससे पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने वामपंथी छात्रों पर विश्वविद्यालय के पेरियार हॉस्टर में तोड़फोड़ करने का आरोप लगाया था। उस दौरान हॉस्टल में मौजूद कई छात्र घायल भी हो गए थे। हिंसा के दौरान एबीवीपी की छात्रा कोमल शर्मा की फ़ोटो काफ़ी वायरल हुई थी। एसआईटी ने उससे भी पूछताछ की लेकिन कोमल का कहना था कि वह उस दिन कैंपस में मौजूद ही नहीं थी।
 हिंसा और गुंडई की ये जघन्य वारदात उस दिल्ली में हुई थी, जहां की सुरक्षा केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास है। जिसके पास बेहतर संसाधनों वाली पुलिस फ़ोर्स है और जो देश की राजधानी है। तब एबीवीपी की जेएनयू इकाई के अध्यक्ष दुर्गेश ने दावा किया था कि लेफ्ट के करीब 400 से 500 छात्र पेरियार हॉस्टल के पास इकट्ठा हो गए थे। उन्होंने जबर्दस्ती हॉस्टल में घुसकर तोड़फोड़ की और एबीवीपी कार्यकर्ताओं की पिटाई की। जेएनयू हिंसा प्रकरण में तीन रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। फ़िलहाल इन सभी मामलों में जाँच चल रही है। रिपोर्ट में कुछ संदिग्धों के नाम लिखे गए। लेकिन दिल्ली पुलिस के पास बहाना यह है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण हमारी जाँच प्रभावित हुई है।
 इस मामले में 9 जनवरी 2020 को दिल्ली पुलिस द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में नौ संदिग्धों के नाम जारी किए गए थे, ये सभी संदिग्ध छात्र थे, जिनमें से सात की पहचान वामपंथी छात्र संगठनों के सदस्य के तौर पर की गई थी जबकि बाकी दो एबीवीपी के सदस्य थे , इसमें आइशी घोष का नाम भी शामिल है। लेकिन पुलिस ने उनके संगठन का नाम उजागर नहीं किया। इस मामले में वसंत कुंज पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी, लेकिन दिल्ली पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी थी और 20 पुलिसकर्मियों की एक एसआईटी टीम ने जेएनयू एडमिन ब्लॉक के भीतर डेरा डाल भी दिया था। अब तक तीन जाँच हो चुकी हैं। लेकिन किसी भी जाँच की रिपोर्ट पेश नहीं की गई है।
 एक टीवी चैनल ने इस मामले में स्टिंग किया जा चूका है। जिसमे दिखाया गया था कि हिंसा को अंजाम देने वालों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ता शामिल थे। स्टिंग ऑपरेशन में जेएनयू में बीए फ़्रेंच के पहले साल के छात्र अक्षत अवस्थी ने चैनल के रिपोर्टर से कहा था कि उन्होंने इस हमले का और हमला करने वाली भीड़ का नेतृत्व किया है। अक्षत अवस्थी ने दावा किया था कि वह एबीवीपी से जुड़ा है।

जेएनयूएसयू अध्यक्ष  आशी घोष का कहना है कि एक साल बाद हमें कम से कम मामले में कुछ प्रगति दिखनी चाहिए. पुलिस ने हमें बताया कि वे हमारे साथ हैं लेकिन एक बार हमारा बयान लेने के बाद उन्होंने कुछ नहीं किया। हमें आंतरिक जांच से कोई उम्मीद नहीं, उन्होंने हमसे एक बार भी बात नहीं की। 5 जनवरी 2020 के हमले में सेंटर फ़ॉर रिजनल डेवेलपमेंट की प्रोफ़ेसर सुचित्रा सेन भी घायल हुई थी। लेकिन आजतक प्रशासन की ओर से किसी ने भी प्रोफ़ेसर सेन से इस बारे में पूछताछ नहीं की है। घटना के दो महीने के बाद पुलिस आई थी और मामले की तफ़्तीश की, लेकिन उनसे कभी नहीं पूछा गया। वह कहती हैं कि यह मेरी याद में कहीं धंस गई है। मैं इस पल को नहीं भूल सकती। मैंने निष्पक्ष जांच और जेएनयू द्वारा हायर की गई सुरक्षा एजेंसी के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए पिछले साल 20 जनवरी को वाइस चांसलर को एक पत्र भेजा था, लेकिन उस पर हमें आज तक कोई जवाब नहीं मिला। यहां तक कि पुलिस ने भी हमसे एक ही बार बात करना तक उचित नहीं समझा।

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