राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच यह जुबानी जंग उस समय हुई, जब राज्य विधानसभा भारतीय संविधान को ग्रहण किए जाने की 70वीं वर्षगांठ के तौर पर विशेष सत्र आयोजित किया था। हालात ऐसे रहे कि दोनों शीर्ष सवैंधानिक पदाधिकारियों ने सदन के अंदर एक-दूसरे के साथ न तो अभिवादन किया और न ही कोई अन्य बात की।
धनखड़ ने सदन को संबोधित करते हुए, राज्य के सवैंधानिक प्रमुख के पद से गंभीर समझौता हुआ है। यह एक अप्रत्याशित और चुनौतीपूर्ण स्थिति है। मैं सभी जनप्रतिनिधियों से अपनी अंतररात्मा की आवाज सुनने की अपील करता हूं। इस दौरान उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर में अनुच्छेद-370 के प्रावधान खत्म करने का भी जिक्र किया।
राज्यपाल द्वारा अपना भाषण समाप्त किए जाने के बाद वहां मौजूद विधायकों ने मेजें नहीं थपथपाईं, जबकि टीएमसी के विधायकों ने ‘जय बांग्ला’ और ‘जय हिंद’ के नारे लगाए। इसके बाद राज्यपाल ममता से कोई बात किए बगैर सभा से चले गए। ममता उनके पीछे गईं, लेकिन राज्यपाल की तरफ से कोई अभिवादन नहीं किया गया।
राज्यपाल के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सदन को संबोधित किया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, हमारे राज्यपाल ने बहुत अच्छा भाषण दिया, लेकिन वे भूल गए कि यह कश्मीर नहीं बंगाल है। उन्होंने बंगाल से ज्यादा कश्मीर के बारे में अपनी बात रखी। मुख्यमंत्री ने कहा, राज्यपाल का पद सवैंधानिक होता है। मेरी किसी भी राज्यपाल के साथ लड़ाई नहीं हुई है। तब वह ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न करते हैं? हम जानते हैं कि उनके पास फरमान कहां से आते हैं।
ममता ने सदन खत्म होने के बाद भी मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, मेरे राज्य में राज्यपाल के पद का बुरी तरह दुरुपयोग हुआ है। किसी को नहीं भूलना चाहिए कि राज्यपाल एक नामित पद होता है, लेकिन राज्य सरकार निर्वाचित होती है।