देश में हर साल हजारों बच्चे ये सोचकर अपने घर से भागकर रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं ताकि वो अपने घर की गरीबी और बुरे बर्ताव से खुद को बचा सकें। आँखों में अनगिनत सपने लिए हजारों बच्चे बिना गंतव्य जाने ट्रेन में सवार हो जाते हैं। ये बच्चे क्यों अपना घर छोड़कर ट्रेन में सवार हो जाते हैं इनकी क्या समस्या है ये बेहद चिंतनीय विषय है।
एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘रेलवे चिल्ड्रन’ सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए काम करती है। इस संस्था द्वारा द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। संस्था के मुताबिक हर साल हजारों बच्चे अपने घरों को छोड़कर ट्रेन से अक्सर देश की राजधानी दिल्ली आ पहुंचते हैं और जिसके बाद उनकी जिंदगी अनिश्चितता के साए में घिर कर रह जाती है।
देश की राजधानी में आये ये बच्चे तस्करों के जाल में फंस जाते हैं या बाल मजदूरी की चपेट में आ जाते हैं। केवल इतना ही नहीं कुछ बच्चे तो यौन शोषण के शिकार भी होते रहते हैं। ऐसे में एक ट्रस्ट इन बच्चों की मदद करने के लिए प्रयासरत है। इस गैर लाभकारी संगठन द्वारा खोए और घर से भागे बच्चों की मदद करने के लिए रेलवे स्टेशन पर एक टीम तैनात की जाती है। इस संस्था का नाम है सलाम बालक ट्रस्ट जो कई बच्चों को बचाने में सफल भी हुई है।
सलाम बालक ट्रस्ट द्वारा इन बच्चों को रेलवे प्लेटफॉर्म पर तलाशने के बाद उन्हें सबसे पहले डे केयर यूनिट में लेकर जाया जाता है। वहां उन्हें कपड़े और भोजन जैसे जरुरी चीजे उपलब्ध कराई जाती हैं। फिर उन्हें काउन्सलिंग के जरिए समझाया जाता है। कई बच्चे सही जानकारी दे देते हैं और कुछ को घर का पता नंबर कुछ मालूम नहीं होता है।
संस्था द्वारा किसी बच्चे को अपनी निगरानी में लेने के बाद कई सारी प्रक्रियाएं पूरी की जाती है। ऐसे में संस्था को भी काफी कागजी कार्रवाई, काउंसलिंग और 24 घंटे के भीतर पुलिस के साथ-साथ बाल कल्याण समितियों के सामने बच्चों को पेश करने जैसी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।
सलाम बालक ट्रस्ट ने पाया कि अधिकतर बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से शोषित होते हैं। 90 फीसद बच्चों में अवसाद और पीटीएसडी के लक्षण मिलते हैं।