विगत तीन दिनों के दौरान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की पार्टी नेताओं के साथ हुई बैठक के बाद जो निकलकर सामने आया है उसका लब्बोलुआब यही है कि इस बार कांग्रेस यूपी की समस्त 80 सीटों पर अपना दमखम दिखायेगी।
‘न महागठबन्धन न प्रगतिशील समाज पार्टी और न ही अन्य छोटे दलों के साथ गठबन्धन, कांग्रेस अब यूपी की सभी समस्त 80 लोकसभा सीटों पर विपक्षी दलों को अकेले चुनौती देगी।’ यूपी कांग्रेस के खेमे से इस बार कुछ ऐसे ही संकेत नजर आ रहे हैं। वैसे तो यूपी कांग्रेसियों द्वारा अकेले दम पर चुनाव लड़ने की यह मांग पिछले कई चुनावों के दौरान पार्टी हाई कमान के समक्ष रखी जाती रही है लेकिन यूपी कांग्रसियों की इन मांगों पर ध्यान देने के बजाए पार्टी को दिल्ली से चलाया जाता रहा और नतीजा यह हुआ कि पिछले लोकसभा चुनाव में देश की एक बड़ी राजनीतिक पार्टी महज दो सीटों पर ही अपनी इज्जत बरकरार रख सकी। इन दो सीटों के बारे में भी यही कहा जा रहा है कि ये सीटें उन स्थिति में जीती जा सकी थीं जब सपा और बसपा ने उन पर रहमदिली दिखाते हुए किसी मजबूत प्रत्याशी को खड़ा नहीं किया। बताते चलें कि इस बार सपा-बसपा महागठबन्धन ने भी कांग्रेस के लिए दो सीटें (अमेठी और रायबरेली) दान स्वरूप छोड़कर शेष सीटें आपस में बांट रखी हैं।
पिछले तीन दिनों में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के साथ बैठक के दौरान यूपी कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया। प्रियंका गांधी को यूपी कांग्रेस के पतन का इतिहास बताया गया है कि किस तरह से सपा और बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से कांग्रेस को नुकसान हुआ और फायदे में सपा-बसपा रही। कहा तो यही जा रहा है कि प्रियंका गांधी ने भी यूपी कांग्रेस के नेताओं और पदाधिकारियों की मांग को उचित ठहराया है और आश्वासन दिया है कि यूपी में कांग्रेस किसी भी अन्य दल के साथ या फिर किसी गठबन्धन में शामिल होने के बजाए अकेले दम पर चुनाव लडे़गी।
अकेले दम पर चुनाव लड़ने के आग्रह पर प्रियंका की सहमति के बाद से सपा-बसपा गठबन्धन की उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। बताते चलें कि जिस वक्त सपा-बसपा मिलकर महागठबन्धन की शक्ल दे रहे थे उस वक्त कांग्रेस उनके फ्रेम में नहीं थी, ऐसा इसलिए कि यूपी के इस महागठबन्धन को यह लगने लगा था कि कांग्रेस अब समाप्ति की ओर बढ़ चली है लिहाजा उन्हें गठबन्धन में शामिल करना फायदेमंद नहीं होगा लेकिन यूपी में प्रियंका गांधी के महज एक रोड शो ने ही यूपी की राजनीति में कांग्रेस की धमक का अहसास करा दिया। यही वजह है कि प्रियंका के रोड शो के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक प्रेस वार्ता के दौरान इस बात के संकेत दिए थे कि यूपी के इस महागठबन्धन में अब कांग्रेस को भी सम्मानजनक तरीके से शामिल किया जायेगा। बसपा की तरफ से भी कुछ इसी तरह के संकेत प्रियंका गांधी को दिए गए थे। जवाब में प्रियंका ने सिर्फ इतना ही कहा था कि वे अखिलेश और मायावती का सम्मान करती हैं। प्रियंका के इन शब्दों का सपा-बसपा महागठबन्धन ने भले ही पाॅजिटिव अनुमान लगाया हो लेकिन सच्चाई यह है कि प्रियंका गांधी के नेतृत्व में जवान हो चुकी यूपी कांग्रेस को अब किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं रह गयी है। नतीजा भले ही कुछ भी हो लेकिन दशकों बाद यूपी कांग्रेस के नेता अकेले दम पर यूपी की सियासत को कांग्रेस की हैसियत से परिचय करवा देना चाहते हैं। बताते चलें कि प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश की 39 सीटों की कमान सौंपी गयी है शेष 41 सीटों की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास है।
प्रियंका के नेतृत्व में जवां हो चुकी यूपी कांग्रेस की हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहां एक ओर कुछ पुराने कांग्रेसी एक बार फिर से घर वापसी करना चाह रहे हैं तो दूसरी ओर अन्य दलों से गठबन्धन का न्यौता भी लगातार आने लगा है। सपा से टूटकर बनी प्रगतिशील समाज पार्टी प्रमुख शिवपाल यादव ने भी प्रियंका गांधी से दूरभाष पर वार्ता कर अपनी इच्छा जतायी है। कहा जा रहा है कि शिवपाल ने संप्रग के साथ मिलकर एक नए गठबन्धन का स्वरूप देने की बात कही है जिस पर प्रियंका ने सिर्फ यह कहकर टाल दिया है कि ‘ठीक है इस सम्बन्ध में वार्ता की जायेगी।’
कहा जा रहा है कि अपना दल के साथ ही भाजपा के भी कुछ नेताओं ने कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा जतायी है। ये वे नेता हैं जो कभी कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके थे।
फिलहाल ऐसे में प्रियंका गांधी किसका न्यौता स्वीकार करती हैं और किसका नहीं, इस पर तब तक संशय बरकरार रहेगा जब तक प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं हो जाती लेकिन इतना जरूर तय है कि इस बार का लोकसभा चुनाव कांग्रेस या तो अकेले दम पर लडे़गी या फिर अपनी शर्तों पर।