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600 लोगों ने मांगी इच्छामृत्यु

 

भारत के प्रधान मंत्री का गढ़ कहे जाने वाले राज्य गुजरात से एक बेहद चौकाने वाला मामला सामने आया है। हालही में गुजरात के उच्च न्यायालय में 600 लोगों के द्वारा इच्छामृत्यु की मांग की गई है। गांव के इन लोगों ने सरकार और प्रशासन पर भेदभाव के आरोप लगाते हुए आप-बीती सुनाई है। गुजरात के 470 से भी अधिक गावों में एक गांव जिसका नाम है ‘गोसाबारा’ इस गांव में 1000 से अधिक मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं जिनमे 600 मुस्लिम मछुआरों ने एक साथ इच्छामृत्यु की मांग कर अपनी स्थिति को दर्शाया है। गुजरात उच्च न्यायालय में स्थानीय मुस्लिम मछुआरा समुदाय थिमार के नेता ‘अल्लारखा इस्माइल भाई’ ने यह याचिका दाखिल की है। अरब सागर के पास मौजूद ‘गोसाबरा गांव में मुस्लिम माइनॉरिटी के लोग रहते हैं। इन लोगों का कहना है कि मुस्लिम समुदाय होने के कारण प्रशासन न तो उन पर गौर देता है और न ही उनकी आजीविका के लिए उन्हें काम करने दे रहा है। उनके साथ पिछले 10 सालों से हो रहे भेदभाव के कारण याचिकाकर्ता ने अपने व अपने साथियों के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति दिए जाने की मांग की है। 

याचिका में कहा गया है कि ‘संबंधित विभाग के अधिकारी उन्हें गोसाबारा या ‘नवी बंदर’ बंदरगाह पर नावों को लंगर डालने की अनुमति नहीं देते हैं और 2016 से उन्हें परेशान कर रहे हैं, जिसके कारण वे बहुत कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं और अपना जीवन खत्म करना चाहते हैं। इनकी बढ़ती समस्याओं के समाधान को लेकर इस गांव के निवासियों द्वारा उच्चाधिकारियों से कई बार गुहार लगाने के बावजूद इस पर किसी तरह के कोई समाधान नहीं निकला गया है। याचिकाकर्ताओं ने आवेदन में कहा कि वे किसी भी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं हैं और समय-समय पर सुरक्षा बलों को सुरक्षा इनपुट भी प्रदान करते हैं। उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में, यह तर्क दिया गया है कि राज्य सरकार हिंदू और मुस्लिम मछुआरों के बीच भेदभाव कर रही है। जो मछुआरे मुस्लिम नहीं हैं उन पर कोई रोक नहीं है लेकिन वहीं मुस्लिम मछुआरों को परेशान कर उन्हें मछली नहीं पकड़ने दी जाती है। इस गांव के सभी मछुआरे लगभग एक सदी से मछली पकड़ कर अपनी जीविका चलाते हैं। लेकिन प्रशासन के द्वारा गए जा रहे इस भेदभाव के कारण उनके बच्चे और परिवार के लिए खाना मुहैया कराना भी बेहद मुश्किल हो गया है इसलिए इस समुदाय का कहना है कि सरकार हमें इच्छा मृत्यु की इजाजत दे दें ताकि वह अपने जीवन को समाप्त कर सके। 

अधिवक्ता धर्मेश गुर्जर बताते हैं कि याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि उनका राजनीतिक उत्पीड़न किया जा रहा है, राज्यपाल के पास इसकी कई बार शिकायत की गई है लेकिन उन पर कभी कोई एक्शन नहीं लिया गया है। स्थानीय मुस्लिम मछुआरा समुदाय के मुताबिक वर्ष 2016 से गोसाबारा बंदरगाह पर नौकाओं का लंगर डालने पर पाबंदी लगाई हुई है, इन मछुआरों के पास लाइसेंस भी है, लेकिन फिर भी इन्हें इनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। इससे मछुआरों के सामने आर्थिक संकट पैदा हो रहा है।याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पिछले 100 वर्षों में, 100 परिवारों के लगभग 600 लोग मछली पकड़ने के व्यवसाय में शामिल रहे हैं और मत्स्य विभाग के द्वारा इन्हे मछली पकड़ने का लाइसेंस भी दिया गया है। 

इस समुदाय के लोगों के यह भी आरोप हैं कि स्थानीय अधिकारी उन्हें धर्म के आधार पर परेशान कर रहे हैं। जबकि दूसरे धर्म के मछुआरों को लगातार सुविधाएं दी जा रही हैं। याचिका में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि थिमार समुदाय हमेशा राष्ट्र के प्रति वफादार रहा, कभी भी किसी तरह की नकारात्मक गतिविधि में शामिल नहीं हुआ है। इसके अलावा कई बार पाकिस्तान की ओर से की गई गलत गतिविधि की जानकारी भी सुरक्षा एजेंसियों को मुहैया कराई गई है, इसके बावजूद भी सरकार उनके पक्ष में किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं कर रही है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार मुस्लिम मछुआरों ने अपनी शिकायत मुख्यमंत्री और राज्यपाल से भी की थी। कई बार रिमाइंडर भी भेजा, लेकिन किसी ने उनकी गुहार नहीं सुनी। ऐसे में थक-हारकर अब इन लोगों ने हाईकोर्ट की शरण ली है। मुस्लिम मछुआरों ने कहा कि हम लोग देश के प्रति वफादार है। लेकिन इसके बाद भी हमें राष्ट्रविरोधी समझा जाता है और उत्पीड़न किया जाता है। 
 
इस मामले को लेकर प्रशासन का बयान आया है कि ‘वर्ष 1993 में हुए मुंबई हमले के लिए आतंकवादी गुजरात के इसी बंदरगाह के जरिये भारत में आये थे। इसलिए इस बंदरगाह पर आतंकवादियों के घुसपैठ करने का यह रास्ता बेहद आसान माना गया है। इसलिए इस बंदरगाह को बंद करने के आदेश दिए गए हैं, जिस पर प्रशासन द्वारा कार्यवाही की जा रही है। 
 
वर्ष 1993 की घटना 
 
दरअसल, यह घटना है दिसंबर, वर्ष 1992 में जब बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा ढहा दिया गया था, जिसके बाद  देश भर में बड़े पैमाने पर दंगे हुए थे। इसके बाद दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन, मोहम्मद दोसा और मुस्तफा दोसा ने ‘बाबरी मस्जिद ढहाए जाने का बदला लेने के लिए’ मुंबई में ब्लास्ट कराने का प्लान बनाया था। दिनांक 12 मार्च 1993 का वो दिन था जब बम धमाकों से देश की आर्थिक राजधानी मुंबई दहल उठी थी। इस धमाके में 257 लोगों की जान चली गई, जबकि 713 लोग घायल हुए बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की 28-मंज़िला इमारत की बेसमेंट में दोपहर 1.30 बजे धमाका हुआ जिसमें लगभग 50 लोग मारे गए थे। इसके आधे घंटे बाद ही एक कार में धमाका हुआ जिसके बाद दो घंटे में मुंबई में 12 जगहों पर 13 धमाके हुए थे।

इन बम धमाकों से करीब 27 करोड़ रुपए की संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। इस ब्लास्ट के बाद पुलिस साजिश रचने वालों की जांच पड़ताल की गई थी। जांच में पुलिस को पता चला कि इसमें बॉलीवुड से भी कुछ लोग शामिल हैं। शक के आधार पर पुलिस ने प्रोड्यूसर हनीफ कड़ावाला और समीर हिंगोरा पूछताछ के लिए बुलाया। उस समय संजय दत्त इस जोड़ी की प्रोड्यूस की हुई फिल्म ‘सनम’ में काम कर रहे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हनीफ ने शुरुआत में कोई भी जवाब नहीं दिया। लेकिन बाद में उसने पुलिस से कहा कि पुलिस हमेशा जाल में छोटी मछली पकड़ती है, जबकि बड़े लोग ऐसे ही घूमते रहते हैं। जांच में संजय दत्त का नाम सामने आने के बाद पुलिस उनको गिरफ्तार करने पहुंची। संजय उस वक्त मॉरीशस में फिल्म ‘आतिश’ की शूटिंग कर रहे थे। शूटिंग खत्म करने के बाद जब वो मुंबई लौटे तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद संजय दत्त को एयरपोर्ट से सीधे मुंबई क्राइम ब्रांच ले जाया गया। पूछताछ में संजय दत्त ने कबूल कर लिया कि उनके पास एके-56 है। संजय दत्त पर टाडा एक्ट लगाया गया और उन्हें 5 साल के लिए सजा दी गई।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, संजय दत्त ने सुनील दत्त को बताया कि दाऊद इब्राहिम के भाई अनीस इब्राहिम ने उन्हें कुछ हथियार दिए थे। सुनील दत्त ने जब पूछा तो संजय दत्त ने कहा, ‘मेरी रगों में मुस्लिम का खून दौड़ रहा है। मुंबई में जो कुछ भी हो रहा है मैं ये सब बर्दाश्त नहीं कर सकता.’ बता दें कि संजय दत्त की मां और सुनील दत्त की पत्नी नरगिस मुस्लिम थीं। नवंबर 2006 में संजय दत्त को पिस्तौल और एके-56 राइफल रखने का दोषी पाया गया था। लेकिन उन्हे कई अन्य संगीन मामलों में बरी किया गया था, बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इन धमाकों के मकसद के बारे में कहा गया था कि यह उन मुसलमानों की मौत का बदला लेने के लिए किए गए थे जो पिछले कुछ महीनों में हुए दंगों में मारे गए थे। 

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