कोरोना काल में पूरी दुनिया संकट में थी। दुनिया के बड़े-बड़े देश भी कोरोना की चपेट में आ चुके थे। ऐसे में वायरस से बचने के लिए सिर्फ वैक्सीन ही एक मात्र उपाय था। लेकिन कोरोना का टीका लगवाने की होड़ में कई नवजात शिशुओं को जीवनरक्षक टीके नहीं लग सके। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष का कहना है कि बचपन के टीकों में एक दशक से अधिक की प्रगति के बाद टीके के भरोसे में गिरावट आई है।
यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष) की हालिया रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2023’ के अनुसार, नियमित बचपन के टीकों की सार्वजनिक धारणा में गिरावट कोरोना वैक्सीन के लिए प्रतिस्पर्धा के कारण है। दुनिया भर में 6. 7 करोड़ बच्चे एक या अधिक संभावित जीवन रक्षक टीकों से वंचित हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि “बचपन के नियमित टीकों में एक दशक से अधिक की मेहनत की कमाई का सफाया हो गया है।” रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि डेटा राजनीतिक ध्रुवीकरण, सरकारों में घटते विश्वास और गलत सूचना के बीच बढ़ती वैक्सीन हिचकिचाहट की चिंताजनक प्रवृत्ति का संकेत देता है।
जीवन रक्षक टीको पर कम हुआ भरोसा
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बावजूद टीकाकरण में तेजी लाने के प्रयास अब तक असफल रहे हैं। यह सही है कि बिखरी स्वास्थ्य व्यवस्था और घर पर रहने के प्रतिबंधों के चलते महामारी के दौरान बच्चों को दिए जा रहे टीके करीब-करीब हर जगह बाधित हुए हैं। लेकिन बच्चों को दिए जा रहे इन टीकों के प्रति भरोसे में आई गिरावट की प्रवृत्ति चिंताजनक संकेत देती है। गौरतलब है कि कई देशों में तो इसमें 44 अंकों तक की गिरावट आई है। दशकों की मेहनत के बाद टीकाकरण में प्रगति हुई थी लेकिन अब कोरोना के कारण इसमें गिरावट आई है और इसे पटरी पर लाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने एक बयान में कहा, नियमित टीकों में जो विश्वास बना रहता है, उसे महामारी का शिकार नहीं होने दिया जा सकता। उन्होंगे आगे कहा, “अन्यथा खसरा, डिप्थीरिया या अन्य रोकथाम योग्य बीमारियों से रोकी जा सकने वाली बाल मृत्यु की एक और लहर आ सकती है।” रिपोर्ट में सर्वे में शामिल 55 में से 52 देशों में टीकों पर भरोसे में कमी को लेकर भी चिंता जताई गई है।
वैक्सीन के भरोसे को “अस्थिर और समय-विशिष्ट” बताते हुए रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि वैक्सीन का भरोसा आसानी से कम हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह देखने के लिए और विश्लेषण की आवश्यकता होगी कि क्या महामारी के अंत के बाद भी आत्मविश्वास में गिरावट की प्रवृत्ति बनी रहती है।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि वैक्सीन ट्रस्ट विश्व स्तर पर भिन्न होता है और भारत, चीन और मैक्सिको जैसे देश वैक्सीन ट्रस्ट में महत्वपूर्ण गिरावट नहीं दिखाते हैं। इसके विपरीत, दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने टीकों में विश्वास में 44 प्रतिशत की गिरावट देखी, जबकि घाना, सेनेगल और जापान में एक तिहाई से अधिक की गिरावट देखी गई।
गर्भवती महिलाओं से लेकर 16 साल के किशोर तक को विभिन्न बीमारियों से बचाने के लिए तय समय में टीका लगाया जाता है। प्रत्येक माह जिले में 8717 हजार गर्भवती महिलाओं को टिटनेस के टीके लगाए जाते हैैं। शिशु के जन्म लेते ही पोलियो की पहली खुराक दी जाती है। इसके बाद साढ़े तीन माह, डेढ़ साल व ढाई साल में पोलियो की विशेष खुराक दी जाती है। इसी तरह शिशु के जन्म लेने के साढ़े तीन माह, डेढ़ साल व ढाई साल में पेंटा नाम का टीका लगाया जाता है। एक माह के शिशु को बीसीजी,खसरा, डीटीपी का का टीका एक बार लगाया जाता है। जबकि दस व 16 साल की उम्र में एक-एक टिटनेस के टीके लगाए जाते हैैं। रुबिला से बचाव के लिए शिशु को नौ माह में एक टीका लगाया जाता है।