- प्रियंका यादव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने संसद भवन को अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक बताकर ढाई साल पूर्व नई संसद की नींव रखी थी। गत 28 मई को नई त्रिभुजाकार संसद का उद्घाटन अवसर ही सियासी भंवर में फंसता हुआ दिखाई दिया। विपक्ष का कहना है कि संसद का लोकार्पण देश के प्रथम व्यक्ति यानी राष्ट्रपति के हाथों से किया जाना चाहिए था। लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्ष की भावनाओं की अनदेखी करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को उद्घाटन का निमंत्रण दिया। नई संसद के उद्घाटन ने सियासी सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। इस मुद्दे पर काफी अरसे बाद विपक्ष एकजुट होता दिखाई दिया। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सहित 21 दलों ने इसका बहिष्कार कर एकता को प्रदर्शित किया। राजनीतिक विश्लेषक इस एकजुटता को 2024 के आम चुनाव की सियासी चौसर के रूप में देख रहे हैं। कयास लगाए जाने लगे हैं कि विपक्ष की यही एकता बनी रहती है तो आगामी लोकसभा चुनाव की नई इबारत लिखी जा सकती है
अट्ठाइस मई 2023 का दिन ऐतिहासिक बन गया। इस दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नई सभा (संसद) का उद्घाटन हुआ। लेकिन उद्घाटन से पहले ही यह नई इमारत विवादों में आ गई। त्रिभुजीयाकार की संसद के उद्घाटन को लेकर पक्ष और विपक्ष में गोलबंदी हो गई। 21 राजनीतिक दल एक पाले में तो 24 दूसरे पाले में खड़े नजर आए। दोनों ओर से जमकर वार-पलटवार हुआ। इस मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष के अपने-अपने तर्क और दावे हैं। इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण जो हुआ वह विपक्ष की एकजुटता। संसद के उद्घाटन पर यह एकता काफी अरसे बाद दिखाई दी है। इससे सबसे ज्यादा गदगद कांग्रेस है। 2024 के लोकसभा चुनाव में नए सियासी समीकरण बन सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषक गुणा-भाग करने में जुट गए हैं। वे इसे 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले की राजनीतिक गोलबंदी के तौर पर देख रहे हैं। इसे विपक्षी दलों को एकमंच पर लाने की कोशिश बता रहे हैं। उनका कहना है कि अगर यही एकता आगे भी कायम रहती है तो विपक्ष इसी एकजुटता की बदौलत 2024 की राह आसान बना सकता है।
इक्कीस दलों ने किया बहिष्कार
नए संसद उद्घाटन को लेकर विपक्ष दो खेमे में बंट गया। 24 दलों ने इस उद्घाटन कार्यक्रम का समर्थन किया, वहीं 21 दलों ने इसे बायकॉट किया। समारोह का विरोध करने वाले दलों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी, शिवसेना (उद्धव गुट), समाजवादी पार्टी, राजद, जेडीयू सीपीआई, जेएमएम, केरल कांग्रेस (मणि), वीसीके, रालोद, राकांपा, एमडीएमके, सीपीआई (एम), आईयूएमएल, नेशनल कॉन्फ्रेंस, आरएसपी, एआईएमआईएम और एजेएसयू शामिल थे।
जेडीयू संस्थापक नीतीश कुमार समेत कई दलों के नेताओं का मानना है कि नए संसद भवन को बनाने की जरूरत नहीं थी। आजादी के दौरान से जो भवन था उसी को ही विकसित किया जाना चाहिए था, अलग से भवन बनाने का कोई मतलब नहीं, केवल इतिहास को बदला जा रहा है। वहीं पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी विरोध करते हुए कहा कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए था। इसके अतिरिक्त उन्होंने प्रधानमंत्री पर तंज कसते हुए कहा कि प्रधानमंत्री संसद के उदघाटन को राज्याभिषेक समझ रहे हैं। राहुल गांधी के मुताबिक राष्ट्रपति से संसद का उद्घाटन न करवाना और न ही उन्हें समारोह में बुलाना देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान है। संसद अहंकार की ईंटों से नहीं, संवैधानिक मूल्यों से बनती है। कांग्रेस नेता जयराम नरेश का कहना है कि यह एक व्यक्ति के अहंकार और आत्म-प्रचार की इच्छा है, जिसने पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति को 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करने के संवैधानिक विशेषाधिकार से वंचित कर दिया है। ऐसा बहुत कम हुआ है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एकमत पर कभी सहमत हुए हों। लेकिन ‘आप’ और कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल संसद उद्घाटन का विरोध करने हेतु एक सुर- ताल में दिखे हैं।
‘आप’ नेता समेत सभी बायकॉट करने वाले विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया था कि सरकार को संसद उद्घाटन किससे करवाना चाहिए और किससे नहीं। ‘आप’ नेता ने आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा की मानसिकता अनुसूचित जाति और जनजाति विरोधी है। इस वजह से राष्ट्रपति को इस मामले से दूर रखा गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सवाल करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति से संसद भवन का उदघाटन क्यों नहीं कराया। इससे नाराज अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज पूछ रहा है, क्या उन्हें अशुभ माना जाता है। विपक्ष के मुताबिक इससे पहले भी अयोध्या में श्री राम मंदिर शिलान्यास में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया गया था। संसद भवन के शिलान्यास कार्यक्रम (5 अगस्त 2020) के अवसर पर भी वे मौजूद नहीं थे। राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने भी इसी संदर्भ में कहा कि भाजपा की मानसिकता हमेशा से दलितों- आदिवासियों के खिलाफ रही है।
हालांकि विपक्ष के इन आरोपों को भाजपा ने खारिज किया है। इन आरोपों पर बीजेपी नेता ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने दिल्ली के सीएम केजरीवाल का नाम लिए बगैर ट्वीट में कहा कि ‘यह बात कह कौन रहा है जो व्यक्ति प्रभु श्री राम जी के मंदिर निर्माण का विरोध करता था। दलित और आदिवासी समाज से आने वाले दोनों पूर्व महामहिमों के खिलाफ ‘आप’ ने वोट किया, नए संसद भवन का ‘आप’ ने विरोध किया, राष्ट्रपति के अभिभाषण का विरोध ‘आप’ ने किया और अब कह रहे हैं कि भाजपा दलित विरोधी है।’
24 दलों ने किया समर्थन
इस प्रकरण पर बीजेपी ने तर्क देते हुए कहा है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह का कोई उद्घाटन किया हो। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा राजीव गांधी और इंदिरा गांधी ने तत्कालीन समय में संसद परिसर में उद्घाटन किया था। उनके मुताबिक पहले भी कांग्रेस प्रधानमंत्री ऐसे कई उद्घाटन करते थे उसका विरोध क्यों नहीं किया गया था। पुरी ने तारीखों का जिक्र करते हुआ कहा कि 25 अक्टूबर 1975 को संसद परिसर में एनेक्सी बिल्डिंग का उद्घाटन किया गया था। उसके बाद राजीव गांधी द्वारा 15 अगस्त 1987 को संसदपुस्तकालय की नींव रखी गई।
24 दलों ने सरकार का समर्थन कर संसद कार्यक्रम के न्योते को स्वीकार किया था। जिसमें भाजपा समेत शिवसेना (शिंदे गुट), शिरोमणी अकाली दल, जनता दल (सेक्युलर), बसपा, एनपीपी, एनपीएफ, एनडीपीएफ, एसकेएम, जेजेपी, आरएलजेपी, आरपी (अठावले), अपना दल (एस), तमिल मनीला कांग्रेस, एजेएसयू, एआईएडीएमके, बीजेडी, तेलुगू देशम पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, एआईएमआईएम और एमएनएफ दल शामिल थे। जेडी (एस) अध्यक्ष एचडी देवगौड़ा ने कहा कि नई संसद देश की संपत्ति है और टैक्सपेयर्स के रुपयों से बनी है। इसलिए वे इसके उद्घाटन समारोह में शामिल हुए। वहीं गुलाम नबी आजाद ने कहा कि जहां तक नया संसद भवन बनाने की बात है तो यह नई बात नहीं है। यह 32 साल पहले कांग्रेस की ही सोच थी। नए भवन का निर्माण जरूरी था और यह अच्छा है कि अब यह बन गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि नई संसद पर बयानबाजी करना गलत है। विपक्ष सिर्फ राजनीति कर रहा है। यह गैर जिम्मेदार रवैया है।
क्यों जरूरत पड़ी नए संसद भवन की
उद्घाटन के दौरान नए संसद भवन की महत्व बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि नए संसद भवन का निर्माण भावी जरूरतों को देखते हुए किया गया। संसद के पुराने भवन में सभी के लिए कार्य करने में मुश्किल हो रही थी। यह सभी जानते हैं, वहां तकनीकी और बैठने से जुड़ी समस्या थी इसलिए नया संसद भवन जरूरी था। आने वाले समय में सांसद बढ़ेंगे जिसको देखते हुए नए भवन का निर्माण किया गया। 1951 में जब पहली बार चुनाव हुए तो लोकसभा की सीटें 489 थीं लेकिन बढ़ती आबादी और काम के चलते सदस्यों की संख्या 543 कर दी गई। इसी तरह राज्यसभा में भी 245 सीटें हैं। वहीं अगर नए संसद भवन की बात करें तो इसमें निचले सदन (लोक सभा) के 888 सदस्यों और उच्च सदन (राज्य सभा) के 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा संयुक्त अधिवेशन के लिए 1272 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई है।
गौरतलब है कि भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश हो गया है। जनसंख्या करीब 143 करोड़ हो गई है यानी 50 साल में ढाई गुना से भी ज्यादा। ऐसे में अब एक सांसद को करीब 25 लाख की आबादी संभालनी पड़ रही है, इसलिए देश को व्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए सांसदों की संख्या बढ़ाने की जरूरत महसूस होने लगी है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2019 में पूछा था कि आखिर कोई सांसद कितने लोगों की आबादी का प्रतिनिधित्व कर सकता है, उस दौरान उन्होंने लोकसभा में 1000 सीट करने की मांग की थी।
पुराने और नए संसद भवन में अंतर
नए संसद भवन ने 96 वर्ष पुराने संसद भवन का स्थान ले लिया है। जिसका डिजाइन देश के मशहूर आर्किटेक्ट बिमल हसमुख पटेल ने किया है। नया संसद भवन 971 करोड़ की लागत से बनकर तैयार हुआ है। पटेल ने गुजरात हाईकोर्ट की नई बिल्डिंग को भी डिजाइन किया है। नए संसद भवन में सांसदों के लिए एक लाउंज, एक पुस्तकालय, कई समिति कक्ष, भोजन क्षेत्र और पर्याप्त पार्किंग स्थान के साथ एक भव्य संविधान कक्ष भी है। नई संसद चार मंजिला त्रिकोणीय आकार की है। इसका निर्मित क्षेत्र 64 हजार 500 वर्ग मीटर है। पुरानी संसद का निर्मित क्षेत्र 24 हजार 281.16 वर्ग मीटर है। जबकि पुरानी संसद में 12 द्वार थे, नए में तीन मुख्य द्वार हैं, ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार। वीआईपी, सांसदों और आगंतुकों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार हैं। नए संसद भवन में मौजूदा और भावी जरूरतों के लिए पर्याप्त जगह हैं। इस भवन में 2 हजार लोग प्रत्यक्ष और 9 हजार अप्रत्यक्ष रूप से बैठ सकते हैं। सन् 1927 में बना पुराना संसद भवन अब संग्रहालय में परिवर्तित हो जाएगा।
प्रधानमंत्री के मुताबिक पुराना संसद भवन गुलामी का प्रतीक था। जिसका निर्माण अंग्रेजों द्वारा किया गया था लेकिन इस नए संसद भवन का निर्माण आजाद भारत में हुआ है। जिसके कण -कण में देश के हर राज्य, शहर का योगदान है। नए संसद भवन के निर्माण के लिए बलुआ पत्थर राजस्थान के सरमथुरा से, सागौन (टिक वुड) की लकड़ी महाराष्ट्र के नागपुर से मंगवाई गई। कारपेट उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से मंगवाए गए हैं। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से बांस की लकड़ी की फ्लोरिंग मंगवाई गई है। स्टोन जाली वर्क्स राजस्थान के राजनगर और उत्तर प्रदेश के नोएडा से लिए गए हैं।