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आखिर नवरुणा को कब मिलेगा न्याय

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बहुचर्चित नवरुणा हत्याकांड पर 21 अगस्त को उच्चतम न्यालय में हुई सुनवाई में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) को हत्यकांड की जाँच तीन माह में पूरी करने को कहा है जस्टिस ए एम खनविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने अभिषेक रंजन कुमार की याचिका की सुनवाई के दौरान सीबीआई को फटकार भी लगाई। सीबीआई ने जांच पूरी करने के लिए छह माह का समय मांगा था लेकिन कोर्ट ने तीन माह का ही समय दिया।

असल में यह घटना बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के थाना क्षेत्र के जहावर लाल नेहरू रोड  से 13 साल की नवरुणा का सात साल पहले 18 सितंबर 2012 को आधी रात को घर से कथित तौर पर अपहरण हो गया था।अपहरण के ढाई महीने बाद उसके घर के पास के नाले की सफाई के दौरान एक मानव कंकाल मिला था। डीएनए जांच में इस कंकाल के नवरुणा के होने की पुष्टि हुई थी। शुरु में इसकी जांच मुजफ्फरपुर पुलिस ने की और फिर सी आई डी ने की लेकिन किसी को भी केस को सुलझाने में सफलता नहीं मिली। आखिर में 14 फ़रवरी 2014 को केस सीबीआई को सौंप दिया गया.  पिछले क़रीब पांच साल से इस हत्याकांड की जांच सीबीआई कर रही है जिसमे छह लोग गिरफ्तार हुए उनमें शाह आलम शब्बू, विक्रांत शुक्ला, ब्रजेश सिंह, राजेश कुमार, विमल अग्रवाल और अभय गुप्ता शामिल हैं। लेकिन अभी तक जाँच पूरी नहीं हो पायी है। सीबीआई करीब पांच साल से जाँच के नाम पर कोर्ट से तरीख पर तारीख ले रही है लेकिन अभी तक केस का कोई परिणाम नहीं निकला।

वंही नवरुणा के माँ पापा का कहना है कि हमारा न्याय से भरोसा उठ गया है, उन्हें ऐसा लगता है कि सीबीआई ने उन्हें धोखे में रखा क्योकि उन्होंने जिन सात अभियुक्तों को एक साल तक पकड़ कर रखा था, उन्हें तीन-तीन बार रिमांड पर लेकर जमानत पर छोड़ दिया है। लेकिन इतने दिनों की पूछताछ में वे किसी परिणाम तक नहीं पहुंच सके।सीबीआई ने जिन सात लोगों को गिरफ्तार किया वे सारे वही भू-माफिया हैं। अब सीबीआई हमें बस इतना बता दे कि मेरी बेटी ज़िंदा है या मर गयी। जो हड्डियां सीबीआई ने हमें दिखायी थी, वो मेरी बेटी की हड्डियां थीं या नहीं। अगर हां तो डीएनए रिपोर्ट क्यों नहीं देती?”

उनका ये भी कहना है कि इन सबके पीछे बिहार के मौजूदा डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे हैं, ये सब गुप्तेश्वर पांडे करा रहे हैं।  वे  भू-माफियाओं से मिले हुए थे। उनकी शह पर ही सब कुछ हुआ। लेकिन आज बिहार के डीजीपी बन गए हैं। जिन गवाहों/संदिग्धों के ब्रेन मैपिंग और नार्को टेस्ट का हवाला देकर सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से समय मांगा था उनमें से एक गुप्तेश्वर पांडे का भी था। इन आरोपों पर डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे का कहना है कि उन्हें फंसाया जा रहा है। उनका कहना है कि मुझे फंसाने में दो लड़के हैं। एक है हेमंत जिसके ख़िलाफ़ मैंने एक बार छेड़खानी के मामले में कार्रवाई की थी। मुझे तो फिर बाद में उससे मतलब नहीं रहा। पर वो मेरे पीछे पड़ा रहा। दूसरा लड़का है अभिषेक रंजन जो नवरुणा की बड़ी बहन नवरूपा के मित्र हैं।  वही दिल्ली में रहकर इनका केस भी लड़ रहा है। अब ये दोनों क्यों ऐसा कर रहे हैं मुझे नहीं पता, पर मैं एक बात जरूर कहूंगा कि इन लोगों ने खुद केस में इतनी देरी करवाई। पहले तो वे डीएनए टेस्ट के लिए मना करते रहे, और बाद में डीएनए टेस्ट में साबित हो गया कि वो अस्थियां नवरुणा की ही थीं। मैं अभी भी कहूंगा कि नवरुणा की हत्या उसके घरवालों ने ही की थी। जब घर के पास से लाश मिली तो मानने से इनकार कर दिया। जहां तक बात सीबीआई इंट्रोगेशन की है तो मैंने खुद सीबीआई को कहा था, मु़झसे भी पूछताछ करिए। वरना मेरे ऊपर सवाल उठेंगे।

इस पर अभिषेक रंजन का कहना है कि ये मेरे लिए शॉकिंग है। डीजीपी का मेरे बारे में ऐसा कहना शर्मनाक है। आप किसी लड़की और उसके घरवालों के बारे में ऐसा कैसे सकते हैं।

वही आर पी पांडे जो उस समय के त्कालीन सीबीआई इंस्पेक्टर और उस मामले में जांच अधिकारी थे। लेकिन उन्हें बाद में वीआरएस दे दिया गया। उनका कहना है कि देरी की वजह एविडेंस जुटाना बहुत मुश्किल आई था। क्योंकि सीबीआई को केस बहुत देर से मिला था करीब दो साल बाद. तब तक एविडेंस सारे इधर-उधर हो चुके थे। उनका ये भी कहना था की नवरुणा केस की असल जड़ में ज़मीन का एक विवाद था। उसके परिजनों का आरोप है कि भू-माफिया ने उनकी ज़मीन हड़पने की नीयत से अपहरण कराया था। सात कट्ठे की इसी ज़मीन पर उनका घर है।

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