मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हुए विधानसभा चुनावों में मिली जीत के बाद लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का नया तेवर देखने को मिल रहा है। लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण में 19 मई को आठ राज्यों की 59 सीटों पर वोटिंग होगी। इसमें पीएम मोदी की संसदीय सीट समेत देश की कई ऐसी महत्वपूर्ण लोकसभा सीट है, जो न सिर्फ राजनीतिक लिहाज से अहम है, बल्कि इन सीटों पर देश की निगाहें टिकी हुई है।
पहली बार ऐसा लग रहा है कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस अपना राजनीतिक एजेंडा सेट करने में कामयाब हो रही है। उनके तीखे हमलों ने सरकार और विपक्ष के बीच चल रहे प्रचार युद्ध के केंद्र में कांग्रेस को ला खड़ा किया है।
राफेल पर चौकीदार, जीएसटी पर गब्बर टैक्स जैसे उनके विशेषण खूब चर्चा में हैं। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने राहुल विपक्ष के सर्वाधिक ताकतवर नेता के रूप में अपनी छवि बनाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। पिछले दिनों पीएम मोदी की स्वर्गीय राजीव गांधी पर की गई टिप्पणी का भी राहुल गांधी ने शालीन तरीके से जबाब दे प्रशंसक वर्ग का साथ हासिल करने में कामयाबी पाई।
अमूमन अपनी धुन में सियासत की दिशा तय करने के पक्षधर रहे राहुल कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद संगठन और सियासत का मर्म ज्यादा बेहतर तरीके से समझने लगे हैं। उन्होंने नई व पुरानी पीढ़ी के नेताओं में तालमेल बनाकर पार्टी को नया तेवर देने का प्रयास शुरू किया है। साथी दलों में सामंजस्य स्थापित करना और उनके बीच अपना नेतृत्व मनवाना उनके लिए बड़ी चुनौती है।
राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में नई पीढ़ी के नेताओं की बड़ी फौज तैयार हुई है। वे संगठन में बड़े फैसले ले रहे हैं। विपक्ष के नेताओं से सीधा संवाद करने लगे हैं। 2007 में राहुल अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बनाए गए। उन्होंने युवा कांग्रेस में चुनाव के जरिये पदाधिकारी चुने जाने की व्यवस्था शुरू की। 2013 में वे जयपुर चिंतन शिविर में उपाध्यक्ष बनाए गए। इसके बाद से ही संगठन के अहम फैसलों में उनकी सहमति ली जाने लगी। 2017 में राहुल पार्टी के अध्यक्ष चुने गए।