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सरकार की उदासीनता से दुखी होकर संत राम सिंह ने खुद को मारी गोली

कृषि कानूनों को लेकर किसान पिछले कई दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। किसान मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार को तीनों कृषि बिलों को निरस्त कर देना चाहिए। लेकिन सरकार इन बिलों को लेकर बैकफुट पर नहीं जा रही है। बुधवार को सरकार की उदासीनता से दुखी होकर संत राम सिंह ने खुद को गोली मार ली है। बाबा राम सिंह ने सिंधु बार्डर पर आत्महत्या की है। वह लगातार किसानों के आंदोलन में आते-जाते रहते थे। उन्होंने किसानों के लिए 5 लाख रुपए का दान भी दिया था। बाबा का एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ है।

 

 

अपने सुसाइड नोट में बाबा ने लिखा कि “किसानों का दुख देखा। वे अपना हक लेने के लिए सड़कों पर हैं। बहुत दिल दुखा है। सरकार न्याय नहीं दे रही, जुल्म है, जुल्म करना पाप है, जुल्म सहना भी पाप है।” संत राम सिंह हरियाणा के करनाल के रहने वाले थे। पंजाब हरियाणा के अलावा दुनिया भर में उनके चाहने वाले हैं। वे कई सिख संगठनों में अलग-अलग पदों पर रह चुके थे। बाबा पिछले कई दिनों से दिल्ली में किसानों के समर्थन में उतरें हुए थे, और किसानों के लिए आवाज उठा रहे थे। उन्होंने किसानों के लिए शिविरों की व्यवस्था भी की थी, और जरुरतमंद किसानों को कंबल भी बांटे थे। संत बाबा रामसिंह का डेरा करनाल जिले में सिंगड़ा गांव में है। वे सिंगड़ा वाले बाबा जी के नाम से मशहूर थे। बाबा राम सिंह सिंगड़ा वाले डेरे के अलावा दुनिया के अलग-अलग देशों में प्रवचन करने के लिए जाते थे।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वायनाड सांसद राहुल गांधी ने बाबा की मौत को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि “करनाल के संत बाबा राम सिंह जी ने कुंडली बॉर्डर पर किसानों की दुर्दशा देखकर आत्महत्या कर ली। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएँ और श्रद्धांजलि। कई किसान अपने जीवन की आहुति दे चुके हैं। मोदी सरकार की क्रूरता हर हद पार कर चुकी है। ज़िद छोड़ो और तुरंत कृषि विरोधी क़ानून वापस लो! किसान आंदोलन का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। किसानों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई का आज दूसरा दिन है। इस मामले में बुधवार को उच्चतम न्यायालय ने केंद्र, किसान संगठनों और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर समस्या के जल्द समाधान के लिए एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया था। चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है।

17 दिसंबर यानी आज हुई सुनवाई शुरू होने के बाद सीजेआई ने कहा कि हम प्रदर्शन के अधिकार को मानते हैं इसको हम इसको बाधित नही करेंगे। इस बीच सरकार की तरफ से पैरवी कर रहे सॉलिसिटर वकील हरीश साल्वे ने कहा कि किसान आंदोलन की वजह से मिल्क, फ्रूट, सब्जियों के दाम बढ़ गए हैं। यह सामान बॉर्डर पार से आते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा ”कि आज हम जो पहली और एकमात्र चीज तय करेंगे, वो किसानों के विरोध प्रदर्शन और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर है। कानूनों की वैधता का सवाल इंतजार कर सकता है।” चीफ जस्टिस ने आगे कहा ”कि हमने कानून के खिलाफ प्रदर्शन के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी है। उस अधिकार में कटौती का कोई सवाल नहीं, बशर्ते कि उस प्रदर्शन से किसी की जिंदगी न प्रभावित हो।”

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