10 वर्ष का समय (बसपा और सपा का कार्यकाल), 800 करोड़ रुपए सरकारी खजाने से व्यय होने के पश्चात भी 10 प्रतिशत पौधे नजर नहीं आते। इस सच का खुलासा किया है। मनरेगा के सदस्य (केन्द्रीय परिषद) रहे पूर्व कांग्रेसी नेता संजय दीक्षित ने। संजय दीक्षित ने हाल ही में मुख्यमंत्री को एक शिकायती पत्र भेजकर पूर्व के वर्षों में पौधारोपण कार्यक्रमों का सत्यापन कराए जाने की मांग की है, साथ ही दोषी लोगों के खिलाफ विधि सम्मत कार्रवाई की गुजारिश भी की है।
उत्तर प्रदेश सरकार स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के मौके पर ‘एक व्यक्ति-एक वृक्ष’ अभियान चलाने जा रही है। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कई विभागों द्वारा पौधे रोपित किए जाने की व्यवस्था को हरी झण्डी दी जा चुकी है। इस अभियान में बड़ी संख्या में आम लोगों की भी सहभागिता रहेगी। सरकारी खजाने से पैसे खर्च करके लोगों को पौधे दिए जाएंगे। इस कार्यक्रम की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे सफल बनाने की जिम्मेदारी स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ले रखी है।
मुख्यमंत्री के दावों के अनुसार स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर विशेष वृक्षारोपण अभियान के तहत एक दिन में 5 करोड़ से अधिक पौधे रोपित किए जाएंगे। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस कार्य के लिए उत्तर प्रदेश में कम से कम 9.16 करोड़ पौधे रोपित करने का लक्ष्य रखा है। वृक्षारोपण का यह लक्ष्य वन एवं वन्य जीव विभाग तथा 22 अन्य विभागों के लिए निर्धारित किया गया है। इस पूरे कार्यक्रम को लेकर मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि इस वृहद कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि वृक्षारोपण कार्यक्रम की ब्राण्डिंग की जाए जिसकी शुरुआत भी विभिन्न माध्यमों से हो चुकी है। ब्राण्डिंग के तहत लाखों खर्च करके प्रकृति संरक्षण के सम्बन्ध में स्लोगन चलवाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि इस बार स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मौजूदा भाजपा सरकार प्रदेश को हरा-भरा बनाने के लिए पूरी तरह से सजग है तो शायद गलत नहीं होगा लेकिन यह सजगता कितनी कारगर होगी इस पर संदेह है। यह दावा मनरेगा के सदस्य (केन्द्रीय परिषद) रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता संजय दीक्षित का है। उनका कहना है कि यह दावा यूं ही नहीं बल्कि पूर्व में हुए अनुभवों के आधार पर किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि पिछली सरकारों के कार्यकाल में भी वृहद स्तर पर वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं। पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के कार्यकाल में तो एक दिन में 5 करोड़ पौधारोपण करके विश्व रिकॉर्ड बनाने की कोशिश हुई थी। विश्व रिकॉर्ड बनाने की जद्दोजहद में मिशन इसलिए फेल हो गया था क्योंकि इतने बड़े मिशन के लिए किसी प्रकार की कोई ट्रेनिंग नहीं कराई गई थी। सूदूर जंगलों में जिन स्थानों पर पौधारोपण कराना था, उन स्थानों तक पहुंचने के लिए वन विभाग द्वारा किसी प्रकार का कोई ठोस रोडमैप तक नहीं बनाया गया, जिसके कारण ड्यूटी में तैनात किए गए कर्मचारियों को उन स्थानों तक पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब कर्मचारी और अधिकारी ही चयनित स्थानों पर नहीं पहुंच पाए तो वृक्षारोपण कितना सफल रहा होगा। इतना ही नहीं सबसे बड़ी लापरवाही ये भी देखने को मिली की जिन पौधों को रोपित किया गया था, उनकी देखभाल के लिए किसी प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं की गई। अब इन लगाए गए पौधों का भविष्य क्या रहा होगा? ये पौधे बच भी पाए होंगे या नहीं! ये प्रश्न वैसा ही जैसा कि अगले चुनाव में जीत किस पार्टी की होगी? इस बार भी कुछ ऐसी ही व्यवस्था को लेकर उन विभागों के अधिकारी से लेकर कर्मचारी हलकान हैं जिन्हें पौधारोपण की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। जाहिर है इस बार भी करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी सफलता प्राप्त होती नजर नहीं आ रही।
कांग्रेस के पूर्व केन्द्रीय सदस्य (मनरेगा) संजय दीक्षित ने हाल ही में एक पत्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखा है। पत्र में दावा किया गया है कि विगत 10 वर्षों के दौरान 800 करोड़ रुपए खर्च के बावजूद 10 प्रतिशत पौधे तक नजर नहीं आते। ज्ञात हो ये वही कांग्रेसी नेता संजय दीक्षित हैं जिन्होंने मनरेगा कार्यक्रम में हुई लूटपाट और घोटाले का भौतिक सत्यापन करने के पश्चात रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, उसी आधार पर सीबीआई जांच भी चल रही है लेकिन अभियोजन की स्वीकृति न तो पूर्ववर्ती सरकारों की तरफ से दी गयी और न ही मौजूदा योगी सरकार के कार्यकाल में। दीक्षित ने विगत एक माह के दौरान कानपुर नगर समेत बाराबंकी, इलाहाबाद, अम्बेडकरनगर और सीतापुर जनपद के उन 77 स्थलों का भौतिक सत्यापन किया जहां पर पिछली सरकारों के कार्यकाल में पौधारोपण कराए जाने के दावे किए गए थे। दीक्षित के अनुसार मौजूदा समय में इन स्थानों में 5 से 10 प्रतिशत वृक्ष भी मौजूद नहीं हैं।
दीक्षित ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजे गए पत्र में लिखा है कि विगत वर्षों में 800 करोड़ खर्च करके जिन पौधों को रोपित किए जाने का दावा किया गया था उसका सत्यापन कराया जाए। यह पता किया जाए कि आखिर वे पौधे कहां गए। यदि पौधे नहीं पाए जाते हैं तो सम्बन्धित वन विभाग के अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाकर सम्बन्धित अधिकारियों से धन की वसूली करवायी जाए।