[gtranslate]
Country

लोकसभा चुनाव और योगी का सियासी भविष्य

संत से सांसद और फिर यूपी के मुख्यमंत्री पद तक का सफर तय करने वाले यूपीके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक भविष्य अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद तय होगा। यूपी का रिजल्ट हाई कमान की अपेक्षा केअनुरूप निकला तो निश्चित तौर पर योगी आदित्यनाथ का कद बढ़ने वाला है अन्यथा योगी आदित्यनाथ का सियासी सफर एक बार फिर से सांसद तक सिमट सकताहै। कम शब्दों मे कहा जाए तो लोकसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए अग्नि परीक्षा साबित होंगे क्योंकि हाई कमान ने इस बार के लोकसभा चुनाव की कमान(यूपी की सीटों के लिए) योगी आदित्यनाथ के हाथों में सौंपी है।  विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यूपी में अपने विरोधियों को चारो खाने चित  करते हुए यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से अकेले दम पर 71 सीटांे पर कब्जा किया और उसके सहयोगी दलों ने मिलकर यूपी की 74 सीटों पर जीत हासिल कर विरोधियों के पसीने छुड़ा दिए थे। इस बार भी हाई कमान इससे  कम सीटें तो  नहीं चाहेगा। जाहिर है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यूपी की कमान सौंपते हुए इतनी ही सीटों को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गयी होगी। लेकिन इस बार यूपी में पहले जैसा माहौल नजर नहीं आता। यूपी की जनता मुलायम सिंह यादव से लेकर मायावती और अखिलेश यादव तक के कार्यकाल में  भ्रष्टाचार से लेकर आपराधिक गतिविधियों तक इतना परेशान हो चुकी थी कि उसे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में किसी चमत्कार की आस जगी थी। उसे लगा था कि बेदाग छवि वाले नरेन्द्र मोदी देश की किस्मत बदल देंगे।

लोकसभा चुनाव के लगभग तीन वर्ष बाद वर्ष 2017 में भी यूपी के विधानसभाचुनाव में कुछ ऐसी ही उम्मीद यूपी की जनता को थी। जनता को उम्मीद थी कि भाजपा के नेतृत्व में यूपी को नयी दिशा और गति मिलेगी। कमान जब गोरखपुरके तेज-तर्रार सांसद योगी आदित्यनाथ को सौंपी गयी तो यूपी की जनता के बीचउत्साह की लहर देखते बनती थी। हिन्दुओं से जुड़ा लगभग प्रत्येक वर्ग बेहदखुश था। खुशी इस बात की कि योगी के नेतृत्व में सूबे से अपराध तो कम होगाही साथ ही राम मन्दिर निर्माण की आधारशिला भी रखी जा सकती है।

केन्द्र की भाजपा सरकार का चार वर्ष से अधिक का कार्यकाल और यूपी मेंभाजपा का एक वर्ष से अधिक का कार्यकाल का आंकलन यदि जनता की नजरों सेकरें तो केन्द्र और यूपी की सरकारें जनता की उम्मीदों पर बुरी तरह से फेलसाबित हुई हैं। यूपी में आपराधिक गतिविधियों में भले ही कमी आयी हो लेकिनविकास की दिशा में योगी सरकार सिवाए ‘इन्वेस्टर्स मीट’ आयोजन के कुछ औरनहीं कर पायी है। ‘इन्वेस्टर्स मीट’ को समाप्त हुए भी लगभग पांच माह बीतचुके हैं लेकिन तमाम दावों के बावजूद किसी भी बडे़ औद्योगिक घराने ने एकभी पैसे का निवेश नहीं किया है जबकि ‘इन्वेस्टर्स मीट’ आयोजन में 24 करोड़रुपए औद्योगिक घरानों को लुभाने के लिए सरकारी खजाने से निकल गए। रही बात यूपी और केन्द्र सरकार के उन दावों की जिनका जिक्र उनके घोषणा पत्रों में किया गया था तो उनमें से एक भी वायदा भाजपा सरकारों द्वारा पूरा नहीं किया जा सका। अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण का वायदा पूरा न किया जाना खासतौर भाजपा समर्थको के लिए विश्वासघात जैसा है। इस वादाखिलाफी का परिणाम यह हुआ कि देश भर के साधू-संत से लेकर आम जनता को भाजपाईयों को विश्वासघाती की संज्ञा देने लगी है। अभी हाल ही में संतों  को मनाने की तमाम कोशिशें केन्द्र से लेकर यूपी की भाजपा सरकार ने कर डाले हैं लेकिन संत हैं कि वे मानने के लिए तैयार ही नहीं। वे तो यहां तक कहने लगे हैं भाजपा ने उनके साथ धोखा किया और वे आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के खिलाफ आन्दोलन करेंगे। यहां तक कि भाजपा के कुछ सांसद और मंत्री से लेकर विधायक तक अपनी पार्टी की बदली नीति से खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि जनता के बीच उन्हें रहना पड़ता है लिहाजा जवाबदेही उनकी ज्यादा बनती है। स्थानीय जनता उनसे पूछ रही है कि जब भाजपा ने सत्ता में आने के बाद मन्दिर निर्माण की बात कही थी तो फिर वे वादा कोर्ट में मामला होने की बात कहकर पिण्ड कैसे छुड़ा सकती है, यह बात तो पूर्ववर्ती सरकारें भी कहती रहीं हैं, फिर भाजपा में विशेष क्या है। ऐसा तब है जब भाजपा के एक सांसद इस बात को दावे के साथ कह रहे हों कि इस बार का लोकसभा चुनाव भी हिन्दुत्व के नाम पर लड़ा जायेगा।

भाजपा का संकट इस बात पर है की क्या कि इस बार यूपी की जनता हिन्दुत्व के नाम पर भाजपा पर विश्वास करेगी | जनता की नाराजगी का सबसे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उप चुनाव में अपनी गोरखपुर की सीट तक नहीं जितवा पाए। इस सीट पर योगी आदित्यनाथ पिछले कई बार से सांसद बनते आए हैं। इतना ही नहीं उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या की फूलपुर संसदीय सीट भी उपचुनाव में भाजपा के हाथ से निकल गयी। आमतौर पर उप चुनाव में सीटों पर कब्जा सत्ताधारी दल का ही बना रहता है और मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री जैसों की सीटों पर मात मिले तो यह मान लेना चाहिए  कि सूबे की जनता में भाजपा को लेकर नाराजगी है। रही बात केन्द्र सरकार के दावों की तो कश्मीर में धारा 370 को हटाए जाने का आश्वासन देने के बावजूद इस दिशा में एक भी कदम न बढ़ाना देश की जनता के साथ छल समान है। साथ ही प्रत्येक वर्ष 2 करोड़ बेरोजगारों को रोजगार, हर किसी के खाते में 15-15 लाख की रकम के  वायदे और नोटबंदी नाराज हो चुकी जनता में भाजपा के खिलाफ आक्रोश है। साफ जाहिर है कि इस बार न तो राम मन्दिर के नाम पर सूबे की जनता को बहलाया जा सकेगा और न ही रोजगार मुहैया कराने के नाम पर। भाजपा को सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के नेता, विधायक,सांसद और उन मंत्रियों से मिलने वाली है जो अनेको बार हाई कमान से इस बात
की फरियाद लगा चुके हैं कि वे अपने क्षेत्र की जनता को क्या जवाब देें। साफ जाहिर है कि इस बार भरोसे की घुट्टी नहीं चलेगी।

उपरोक्त समस्त परिस्थितियों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के समक्ष इस बार का लोकसभा चुनाव अग्नि परीक्षा के समान होगा। यह चुनाव ही उनका राजनीतिक भविष्य तय करेगा। चुनाव ही तय करेगा कि योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बने रहेंगे  या नहीं | गौरतलब है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव (यूपी की 80 सीटों के लिए) लडे़ जाने का फैसला गत दिनों (मंगलवार 26 जून) विश्व संवाद केन्द्र में आयोजित भाजपा और संघ की समन्वय बैठक में लिया गया। इस बैठक में संघ के दत्ता जी होसबोले, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय, संगठन मंत्री सुनील बंसल के साथ ही भाजपा और संघ के तमाम वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल थे। इस बैठक में संघ की तरफ से यूपी की 80 लोकसभा सीटों के लिए अगले लोकसभा चुनाव की कमान योगी आदित्यनाथ को सौंपी गयी है। संघ को विश्वास है कि इस बार मोदी की अपेक्षा योगी की छवि रंग लायेगी और पहले
जैसी जीत का स्वाद एक बार फिर से भाजपा को चखने को मिलेगा।

यूपी में भाजपा के विकास का गुणगान करने के लिए कुंभ मेले का इंतजार किया जा रहा है। यही वह मेला होता है जहां देश भर से हिन्दुओं का समागम जुटता है। भाजपा के विकास कार्यों का गुणगान करने की गरज केन्द्र और राज्य सरकार के खजाने से अरबों की रकम खर्च की जाने वाली है। जमकरप्रचार-प्रसार की योजनाएं तैयार की जा चुकी हैं। साथ ही पार्टी फण्ड से भी करोड़ों के विज्ञापन जारी किए जाने की योजना को मूल रूप दिया जा चुकाहै। जाहिर है एक बार फिर से देश की मीडिया के भाग्य संवरने वाले हैं।उम्मीद जतायी जा रही है कि लाखों-करोड़ों कमाने का मौका मिलेगा। मीडिया घरानों ने भी बाकायदा तैयारियां कर ली हैं। कैरिकेचर से लेकर लेख और समाचारों की लाईन तैयार की जाने लगी हैं,

लोकसभा चुनाव के लिए भूमिका बना चुके योगी आदित्यनाथ तैयारियों को लगभग अंतिम रूप दे चुके है। लम्बे समय से खाली चल रहे क्षेत्रीय कार्य समितियों के अलावा प्रकोष्ठों, प्रकल्पों और मोर्चा प्रभारियों की तैनाती कर दी गयी है। अवध क्षेत्र की जिम्मेदार पूर्व विधायक सुरेश तिवारी को दी गयी है जबकि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने नियुक्त हुए कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की लिस्ट भी जारी कर दी। इसके अलावा 20 विभागों के प्रमुख भी बनाए जा चुके हैं। इसमें नीति विषयक और शोध विभाग जैसे अहम पद पर डाॅक्टर विमल सिंह को प्रभारी बनाया गया है। 9 मोर्चों में भी 18 पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी गयी है। प्रत्येक मोर्चे में 3 पदाधिकारी रखे गए हैं। ‘नमामि गंगे’ और ‘बेटी बचाओ’ जैसे 9 प्रकल्पों के पदाधिकारियों को भी जिम्मेदारियों सौंपकर मैदान में उतार दिया गया है। इसके अतिरिक्त लगभग डेढ़ दर्जन प्रकोष्ठ प्रभारियों का भी चयन कर लिया गया है। फिलहाल भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से अधिक से अधिक सीटों पर जीत हासिल करने के लिए भले ही रणनीति को अंतिम रूप दे दिया हो लेकिनभाजपा के समक्ष इस बार चुनौतियां बड़ी हैं।  कयास लगाए जा रहे हैं कि लोकसभा चुनाव से ऐन पहले अयोध्या की सरगर्मियां बढ़ सकती हैं। यदि ऐसा हुआ तो योगी आदित्यनाथ की राह कुछ आसान हो जायेगी अन्यथा इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को यूपी की धरती पर खड़ा रह पाना भी आसान नहीं होगा। जाहिर है कि फेल होने की दशा में योगी का कद भी छोटा हो जाए तो आश्चर्य हीं होना चाहिए।

You may also like

MERA DDDD DDD DD