ठाणे की सड़कों पर कभी ऑटो चलाने वाला कोई व्यक्ति महाराष्ट्र की ड्राइविंग सीट पर बैठ सकता है, ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं होगा। लेकिन ढाई साल से चल रही महाविकास अघाड़ी सरकार पर एकनाथ शिंदे ने एक झटके में ब्रेक लगा खुद राज्य की कमान संभाल इतिहास रच डाला है
एक कहावत है सब्र का फल मीठा होता है। लेकिन महाराष्ट्र के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिए तो बगावत का फल भी मीठा साबित हुआ है। एक नाथ शिंदे ने अपनी सरकार के खिलाफ बगावत कर राज्य के नए सरताज बन गए हैं।
शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ठाणे की सड़कों पर कभी ऑटो चलाने वाला युवक आने वाले समय में महाराष्ट्र की ड्राइविंग सीट पर बैठ सकता है। ढाई साल से चल रही महाविकास अघाड़ी सरकार पर एकनाथ शिंदे ने एक झटके में ब्रेक लगा खुद राज्य की कमान संभाल ली है। इससे शिंदे राजनीति के ऐसे खिलाड़ी साबित हुए हैं जिन्होंने अपनी पार्टी के खिलाफ बगावती रुख अख्तियार कर महाराष्ट्र सरकार में भूकंप ला दिया। यहां तक कि उद्धव ठाकरे के पैरों के नीचे से जमीन तक खींच ली। जिसके चलते मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी सीएम उद्धव सीएम आवास खाली करने पर विवश हो गए। इसके कुछ दिन बाद ही उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा भी दे दिया।
शिंदे ने एक ही बाजी में शिवसेना पार्टी और महाराष्ट्र की सत्ता दोनों पर कब्जा करने का दांव खेला और इस गेम में बीजेपी उनके कदम से कदम मिलाकर चल रही है। ऐसा कर एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे को न सिर्फ चुनौती दी बल्कि सत्ता से भी बेदखल कर दिया है। शिवसेना के बागी नेता शिंदे ने कहा कि ‘हम बाला साहेब के हिंदुत्व को आगे ले जाना चाहते हैं।’ फिलहाल सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिवसेना के 16 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने वाली याचिका और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट द्वारा नए पार्टी सचेतक को मान्यता देने के अध्यक्ष के फैसले को चुनौती पर सुनवाई के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के राज्य मंत्रिमंडल में विस्तार की संभावना है। सुप्रीम कोर्ट 11 जुलाई को सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगा।
इस पूरे मामले पर शिवसेना का कहना है कि एकनाथ शिंदे ने बाला साहेब ठाकरे के साथ गद्दारी की है। 58 साल के एकनाथ शिंदे ने राजनीति में शून्य से शिखर तक सफर तय किया है। उनका परिवार सतारा का रहने वाला है। पढ़ाई के लिए एकनाथ शिंदे ठाणे आए, लेकिन 11वीं क्लास के बाद पढ़ाई छूट गई। जीवन यापन के लिए एकनाथ शिंदे ऑटो चलाने लगे। आज उनके पास 11 करोड़ से अधिक की संपत्ति है।
तंज कसते रहे संजय राउत
पिछले कुछ दिनों से शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत लगातार शिंदे पर तंज कसते रहे। उन्होंने कहा, ‘पहले वह रिक्शा चलाते थे, अब मर्सिडीज रिक्शा चलाते हैं।’ राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी हालात के हिसाब से तय होती हैं, लेकिन एकनाथ शिंदे जब ऑटो ड्राइवर थे, उस दौर के उनके दोस्तों को अब भी शिंदे पर भरोसा है। एकनाथ शिंदे शायद राजनीति में नहीं आते अगर उनकी मुलाकात ठाणे में शिवसेना नेता आनंद दिघे से नहीं होती। बाला साहेब ठाकरे के अलावा जिस नेता को एकनाथ शिंदे अपना आदर्श मानते हैं, वह हैं शिवसेना के नेता स्वर्गीय धर्मवीर आनंद दिघे।
एकनाथ शिंदे का कहना है कि वह धर्मवीर आनंद दिघे के सिखाए रास्ते पर चल रहे हैं, लेकिन शिव सेना का दावा है कि एकनाथ शिंदे आनंद का नाम सिर्फ अपने सियासी फायदे के लिए ले रहे हैं। शिवसेना को लगे झटके के बाद संजय राउत ने कहा था कि ‘धर्मवीर आनंद दिघे को हमने नजदीक से देखा है, हमें मत सिखाओ।’
कौन हैं एकनाथ शिंदे के गुरु आनंद दिघे
पिछले महीने धर्मवीर आनंद दिघे पर एक फिल्म रिलीज हुई, जिसका नाम है, धर्मवीर मुक्काम पोस्ट ठाणे। आनंद दिघे के समर्थक उन्हें धर्मवीर कहते थे। इस फिल्म में एकनाथ शिंदे का किरदार भी नजर आया है। आनंद दिघे शिवसेना के ताकतवर और कद्दावर राजनेता थे। ठाणे-कल्याण और आसपास के इलाकों में उनका काफी प्रभाव था। वह जनता के मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरते थे। उन्हें जमीनी नेता के तौर पर जाना जाता था। माना जाता है कि आम लोगों के हक के लिए सत्ता और प्रशासन से टकराने में हिचकिचाते नहीं थे। आनंद दिघे प्रखर हिंदुत्व की विचारधारा को मानने वालों में से एक थे। दिघे बाला साहेब ठाकरे से प्रभावित होकर शिवसेना से जुड़ गए। बाला साहेब ठाकरे आनंद दिघे पर बहुत विश्वास करते थे। 1980 और 1990 के दशक में ठाणे कल्याण में बाला साहेब ठाकरे के बाद वह आनंद दिघे दूसरे सबसे शक्तिशाली नेता बन चुके थे। आनंद दिघे इतने लोकप्रिय थे कि उन्हें ठाणे का ठाकरे भी कहा जाता था।
आनंद दिघे थे ठाणे के बाल ठाकरे
एकनाथ शिंदे के गुरु आनंद दिघे ठाणे जिले में शिवसेना के लिए दरबार लगाते थे, जिसमें आम लोगों की समस्याओं का हल किया जाता था। आनंद दिघे के फैसले को अंतिम माना जाता था। खुद बाला साहेब ठाकरे भी इसमें ज्यादा दखलअंदाजी नहीं किया करते थे। इन्हीं आनंद दिघे की ऊंगली पकड़कर एकनाथ शिंदे ने राजनीति की सियासी राहों पर चलना सीखा। मुंबई आने से पहले शिंदे ने आनंद दिघे की छत्रछाया में पॉलिटिक्स में कुशलता हासिल की। 18 वर्ष की उम्र में शिंदे शिवसेना में शामिल हुए थे। करीब 15 साल तक एकनाथ शिंदे ने आनंद दिघे के साथ शिवसेना में कार्यकर्ता बनकर काम किया। जिसके चलते उनका राजनीतिक आधार मजबूत हो गया। आनंद दिघे ने उन्हें जमीनी सियासत के दांव पेच और राजनीति के गुर सिखाएं।
शिंदे को आनंद दिघे ने दिया सहारा
एकनाथ शिंदे को चुनावी राजनीति में साल 1997 में आनंद दिघे ने उतारा। फिर ठाणे नगर निगम चुनाव में शिवसेना से पार्षद का टिकट मिला। शिंदे ने अपना पहला टेस्ट पास कर लिया और 2001 में वह नगर निगम में विपक्ष के नेता बन गए। साल 2002 में एकनाथ शिंदे दूसरी बार पार्षद का चुनाव जीतने में सफल रहे। लेकिन इस बीच एकनाथ शिंदे को एक बड़ा झटका लगा। उनके दो बच्चों की डूबने से मौत हो गई। दुख की इस घड़ी में आनंद दिघे ने उन्हें सहारा दिया।
कहा जाता है कि आनंद दिघे की ही तरह एकनाथ शिंदे के दरवाजे भी अपने समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा खुले रहा करते हैं। वह बेबाकी से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं। 2001 में एक हादसे में आनंद दिघे की मौत हो गई। धीरे-धीरे एकनाथ शिंदे ने उनकी जगह ले ली। ठाणे और आस-पास के क्षेत्रों में वह शिव सेना के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे।
महाराष्ट्र की सियासत में कैसे आगे बढ़े शिंदे?
अब वह महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार थे। पार्षद से विधायक बनने की बारी थी। 2004 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने ठाणे से एकनाथ शिंदे को टिकट दिया। उन्होंने फिर अपना दबदबा कायम किया। इसके बाद 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में भी वह विधायक चुने गए।
आज एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच 36 का आंकड़ा है। लेकिन एक दौर वो भी था, जब शिंदे ठाकरे परिवार के करीबी माने जाते थे। शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे भी उन पर विश्वास करते थे। पार्टी से जुड़े बड़े फैसलों में उनसे सलाह मशवरा होता था। 2005 में नारायण राणे और राज ठाकरे ने शिव सेना छोड़ दी। इसके बाद पार्टी में एकनाथ शिंदे का रुतबा और बढ़ गया।
2014 में शिवसेना-बीजेपी की गठबंधन सरकार बनी।
तत्कालीन सीएम देवेंद्र फडवणीस सरकार द्वारा एकनाथ शिंदे को लोक निर्माण मंत्री बनाया गया। देवेंद्र फडणवीस एकनाथ शिंदे पर भरोसा जताने लगे थे। लेकिन फडणवीस के साथ शिंदे की नजदीकी शिवसेना में कई नेताओं को खलने लगी थी।
एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना ने किया धोखा
2019 के विधानसभा चुनाव के बाद एकनाथ शिंदे का नाम मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे अग्रणी था। उन्हें शिवसेना विधायक दल का नेता चुना गया था। एकनाथ शिंदे भावी मुख्यमंत्री होंगे ऐसे पोस्टर भी लगा दिए थे। समर्थकों में खुशी की लहर थी।
लेकिन बीजेपी-शिव सेना के बीच बात नहीं बन पाई। एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद ‘सामना’ के संपादकीय में जिक्र किया गया कि मुख्यमंत्री बनाने के लिए उद्धव ठाकरे ने शिंदे को वचन दिया था। इससे ही बगावत की पटकथा की शुरुआत हुई। मुख्यमंत्री पद को लेकर वचन हो सकता है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के साथ हुए ढ़ाई-ढ़ाई साल के मुख्यमंत्री पद के करार को भाजपा ने तोड़ दिया। यह करार अगर पूरा हुआ होता तो निश्चित तौर पर शिंदे को ही मुख्यमंत्री पद मिला होता और न ही उद्धव ठाकरे ने उनका नाम आगे किया गया होता।
उद्धव सरकार के समय में एकनाथ शिंदे को शहरी विकास मंत्री बनाया गया। उस वक्त शिंदे पार्टी में दूसरे सबसे अहम नेता माने जाते थे। लेकिन शिंदे महाविकास अघाड़ी के गठबंधन से नाराज माने जा रहे थे। शिंदे को शिकायत थी कि सीएम उद्धव ठाकरे उनकी अनदेखी कर रहे हैं। बताया जाता है कि शिंदे को उद्धव ठाकरे से मिलने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था। पार्टी में एकनाथ शिंदे के मुकाबले आदित्य ठाकरे का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा था। ऐसे में उद्धव ठाकरे के साथ एकनाथ शिंदे के रिश्तों में कड़वाहट पैदा होने लगी थी।