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भारी बिजली संकट में झारखंड

कोयले का धनी होने के बावजूद झारखंड बिजली संकट से जूझ रहा है। शहरी इलाकों से ज्यादा यहां ग्रामीण इलाकों की स्थिति खराब है। खास बात यह कि जो राज्य खुद कोयले से बिजली उत्पादन कर देश भर के कई राज्यों को बिजली की पूर्ति करता है आज वह खुद बिजली संकट से जूझ रहा है । आलम यह है कि राज्य में कई घंटों तक बिजली गुल हो रही है। इसी मामले में झारखंड स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष अंजय पचेरीवाला ने खराब बिजली व्यवस्था पर चिंता जताई है।

जेएसआईए के अध्यक्ष का कहना है कि अगर यही हाल रहे, और अगले दो तीन महीनों में भी इसमें सुधार नहीं हुआ तो अप्रैल 2023 के बाद झारखंड में उद्योगों को बंद करने की नौबत आ सकती है। बिजली संकट आपूर्ति के चलते व्यापारी कई बार राज्य की खराब स्थिति को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं। उसके बावजूद व्यापार और व्यापरियों को लेकर बिजली विभाग के अधिकारी गंभीर नहीं हैं । बिजली से ही यहां कई प्रकार केव्यापार चलाए जाते हैं। ऐसे में अगर बिजली कटौती होती है तो व्यापार पर संकट बढ़ेगा। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में इन दिनों प्रति दिन आठ से दस घंटे की बिजली कटौती हो रही है।

जीएसआईए अध्यक्ष ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि झारखंड बिजली वितरण निगम यानी जेबीवीएनएल ने 22 साल में लगभग 50 हजार करोड़ रुपए का घाटा दिखाया है। आखिर ऐसी संस्था को रखने का क्या औचित्य है? अगर इनके पास बिजली की व्यवस्था को ठीक करने का कोई रास्ता नहीं है तो जाहिर है कि भविष्य में भी बिजली की व्यवस्था ठीक होने का कोई रास्ता नहीं है।

बिजली कटौती के पीछे कारण

 

राज्य में बिजली कटौती के पीछे सबसे बड़ा कारण उत्पादन की कमी और केंद्र सरकार के नये नियम के अनुसार, बकाया होने पर राज्य की बिजली में कटौती हो रही कटौती को माना जा रहा है।दो महीने पहले 15 अक्टूबर से ही झारखंड द्वारा पिक आवर में अतिरिक्त बिजली खरीदने पर रोक लगा दी गई है। इस दौरान झारखंड को प्रतिदिन 400 से 500 मेगावाट कम बिजली आपूर्ति हो रही है।

बिजली संकट के मामले में शहरी इलाकों से ज्यादा खराब ग्रामीण इलाकों की स्थिति है। गांव में 8 से 9 घंटे बिजली की कटौती हो रही है। राज्य को फिलहाल टीवीएनएल से 360 मेगावाट, एनटीपीसी से 500 मेगावाट, इनलैंड से 50 मेगावाट समेत अन्य स्रोत से कुल मिलाकर 1200 से 1400 मेगावाट बिजली मिलती है। लेकिन शाम के समय बिजली की मांग बढ़कर 1700 से 1800 मेगावाट पहुंच जाती है।

 

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