महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ दशकों बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 5 जुलाई को एक मंच साझा करेंगे। मुम्बई महानगरपालिका चुनावों से पहले इसे शिवसेना (उद्धव गुट) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नव निर्माण सेना की संयुक्त रैली को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि शायद दोनों चचेरे भाई बीएमसी चुनावों में साथ आ सकते हैं, लेकिन मंत्री और शिंदे गुट के शिवसेना विधायक उदय सामंत ने इसे सिर्फ एक बार की घटना बताया है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर कोई एक मुद्दे पर एक साथ आता है तो इसका मतलब यह नहीं कि राजनीतिक गठबंधन भी होगा। हमें इंतजार करना होगा कि क्या उनकी विचारधारा भी मेल खाती है। चुनाव में ही असली तस्वीर सामने आएगी कि कौन किसके साथ है। फिलहाल गठबंधन की बात करना बेकार है।’’ इसके बाद से सवाल उठ रहा है कि क्या यह एक बार की बात या भविष्य की झलक?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मराठी भाषा एक भावनात्मक मुद्दा है और ठाकरे बंधु इस पर एक साथ आ रहे हैं,लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे बीएमसी चुनाव के लिए गठबंधन कर रहे हैं। मनसे हमेशा से मराठी भाषा का मुद्दा उठाती रही है ये कोई नई बात नहीं है। शिवसेना (यूबीटी) के लिए भी यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर वो चुनाव से पहले ध्यान खींच सकती है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि गठबंधन हो गया है। देखना होगा कि क्या वे इस रैली के बाद बनी गति को आगे बढ़ा पाते हैं और वैसे भी,बीजेपी ऐसा नहीं होने देगी कि ये बीएमसी चुनाव में मुद्दा बने। बीजेपी प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने इस रैली को केवल राजनीतिक दिखावा बताया और उद्धव ठाकरे की मंशा पर सवाल भी उठाया है। उन्होंने कहा, ‘‘यह अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को वापस पाने की कोशिश है। उन्हें मराठी भाषा से कोई लेना-देना नहीं है।’’ जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने माशेलकर समिति की त्रिभाषा नीति को स्वीकार किया था, जिसमें तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी की सिफारिश की गई थी। तब उन्होंने उसे क्यों स्वीकार किया? अब इसे मुद्दा क्यों बना रहे हैं? यह कोई मुद्दा ही नहीं है, फिर रैली निकालने का क्या मतलब है?
असल में महाराष्ट्र की भाषाई पहचान पर बहस पिछले महीने जून की शुरुआत में महाराष्ट्र सरकार ने एक सरकारी प्रस्ताव जारी किया, जिसमें कहा गया कि राज्य के स्कूलों में पहली से चैथी कक्षा तक तीन-भाषा नीति लागू की जाएगी जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सुझाया गया है। इस फैसले के बाद विपक्षी दलों और भाषा विशेषज्ञों ने इसका जोरदार विरोध किया और कहा कि इससे महाराष्ट्र की भाषाई पहचान कमजोर हो जाएगी। इसके बाद सरकार ने ‘जीआर’ से अनिवार्य शब्द हटा दिया और कहा कि छात्र तीसरी भाषा चुन सकते हैं, लेकिन केवल तभी जब कम से कम 20 छात्र उस भाषा को चुनें वरना उन्हें स्वतः हिंदी पढ़नी होगी। विपक्ष ने इस पर भी आपत्ति जताई और सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया। इसके बाद सरकार ने कहा कि वह अंतिम फैसला लेने से पहले शिक्षाविदों और भाषाविदों के साथ एक विस्तृत प्रस्तुति करेगी। इसी बीच राज ठाकरे ने दक्षिण मुम्बई में गिरगांव चैपाटी से आजाद मैदान तक एक रैली निकालने की घोषणा की जो हिंदी थोपे जाने के खिलाफ और मराठी भाषा की रक्षा के समर्थन में होगी। उसी समय उद्धव ठाकरे एक अलग बैठक कर रहे थे, जिसमें उन्होंने मराठी अभ्यास केंद्र के प्रमुख दीपक पवार की अगुवाई वाली समिति से मुलाकात की और रैली के लिए समर्थन दिया।
गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों से यह चर्चा तेज हो गई थी कि ठाकरे बंधु बीएमसी चुनावों में साथ आ सकते हैं, क्योंकि दोनों तरफ से मेल-मिलाप के लगातार संकेत मिल रहे थे। मराठी गौरव और मराठी पहचान के मुद्दे पर दोनों नेताओं की राय मिलती है। दो महीनों के भीतर दोनों भाई कम से कम चार बार गैर-राजनीतिक मौकों पर मिले, जिससे उनके रिश्तों में बदलाव के संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है। मुम्बई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में दोनों दलों के कार्यकर्ताओं ने पोस्टर-बैनर लगाकर एक होने की अपील की है। हालांकि राज ठाकरे की हाल ही में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात ने ये संकेत भी दिया कि एमएनएस अभी अपने सभी विकल्प खुले रखे हुए है। इसी बीच शिवसेना की स्थापना दिवस रैली में उद्धव ठाकरे ने कार्यकर्ताओं से कहा, ‘‘मैं वही करूंगा जो महाराष्ट्र की जनता चाहती है।’’ सही समय पर गठबंधन पर फैसला लिया जाएगा जो एक बार फिर इस गठबंधन की सम्भावना को मजबूत करता है।