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पटना में विपक्षी एकता की बैठक

आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विपक्षी दलों ने बिगुल फूंक दिया है। इसके मद्देनजर बिहार के पटना में बीते 23 जून को 15 विपक्षी दलों की महाबैठक हुई। इस बैठक में मोदी के खिलाफ कैसे लामबंदी की जाए और आगे की रणनीति क्या हो, इसको लेकर चर्चा की गई। बैठक के बाद साझा प्रेस कांफ्रेंस में विपक्षी दलों ने बता दिया कि इस बार 2024 में लड़ाई संपूर्ण विपक्ष बनाम बीजेपी की होगी। वहीं कांग्रेस ने भी संकेत दे दिए हैं कि वह सत्ता में वापसी के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार है। दरअसल सीट बंटवारे को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे थे। जिसे लेकर कांग्रेस नरम रवैया अपनाने को तैयार है। गौरतलब है कि देश की आजादी के बाद पहली बार है जब कांग्रेस 9 साल से अधिक समय से देश की सत्ता से बाहर है। इसी के मद्देनजर कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस 2004 के फॉर्मूले को आजमा सकती है। जिसने तब एनडीए को 269 सीटों से 138 पर समेट दिया था।

                पटना में विपक्षी एकता की बैठक

इस फॉर्मूले की वजह से एनडीए पांच राज्यों में 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी थी। कांग्रेस ने वर्ष 1999 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में पहला चुनाव लड़ा था। पार्टी लेकिन शरद पवार के कांग्रेस से अलग हो जाने के बाद पार्टी कुछ कमाल नहीं कर सकी थी। चुनावों के नतीजे आए तो एनडीए को 269 सीटें मिलीं और अटल विहारी वाजपेयी की सरकार बन गई। कांग्रेस ने इस हार पर गहरा मंथन किया था। इसके बाद 2004 में सोनिया गांधी ने एनडीए से मुकाबला करने के लिए उन पांच राज्यों के लिए फॉर्मूला तैयार किया जो उन्हें सत्ता तक पहुंचा सकते थे। इन राज्यों में समान विचारधारा वाले 6 क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस ने गठबंधन किया। इन दलों में बिहार में आरजेडी-एलजेपी, झारखंड में जेएमएम, महाराष्ट्र में एनसीपी, आंध्र प्रदेश में टीआरएस और तमिलनाडु में डीएमके शामिल थीं।

इस गठबंधन का कांग्रेस को इतना फायदा हुआ कि केंद्र में उसकी वापसी हो गई। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुल 417 उम्मीदवार उतारे थे। जिनमें से उन्हें 145 सीट पर जीत मिली। जबकि बीजेपी ने 364 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जिसमें वह 138 सीट पर ही सिमट कर रह गई। वहीं जिन पांच राज्यों में कांग्रेस ने गठबंधन किया था उनमें कुल 188 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए 114 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जिसमें से 61 सीटें कांग्रेस और 56 सीटें सहयोगी दल जीते थे। तब कांग्रेस इस फॉर्मूले की वजह से सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। जबकि लेफ्ट फ्रंट को 59, सपा को 35 और बसपा को 19 सीटें मिली थीं। एनडीए और अन्य विपक्षी दलों के खाते में सिर्फ 74 सीटें आई थीं। मतलब कांग्रेस की इस रणनीति की वजह से पांच राज्यों में एनडीए सैकड़े के आंकड़े को भी नहीं पार कर सकी थी।

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