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नहीं हुआ खुले में शौच मुक्त भारत

  •  वृंदा यादव

वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ नाम की एक योजना शुरू की जिसके तहत कुछ वर्षों में भारत को स्वच्छ बनाने का दावा किया गया। नतीजन 2017 में सिक्किम भारत का सबसे पहला खुले में शौच मुक्त राज्य बना और 2 अक्टूबर 2019 में भारत सरकार ने देश को पूर्ण रूप से खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया। लेकिन केंद्र सरकार के संस्थान एनएसएसओ की ताजा रिपोर्ट और जमीनी हकीकत इन दावों को पूरी तरह नकार रही हैं

भारत सरकार ने वर्ष 2014 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ नाम की एक योजना शुरू की जिसके तहत कुछ वर्षों में भारत को स्वच्छ बनाने का दावा किया गया। इसी योजना में देश को खुले में शौच मुक्त बनाना भी शामिल था। जिसमें कहा गया था कि भारत के सभी राज्यों के ग्रामीण इलाकों के हर घर में सरकार द्वारा शौचालय का निर्माण कराया जाएगा। जिसका काम 2014 से ही शुरू हो गया था और भारत के कई राज्यों में शौचालय का निर्माण भी करवाया गया। नतीजन 2017 में सिक्किम पहला खुले में शौच मुक्त राज्य बना और 2 अक्टूबर 2019 में भारत सरकार ने देश को पूर्ण रूप से खुले में शौच मुक्त भारत घोषित कर दिया। अर्थात भारत एक ऐसा देश बन गया है जहां हर घर में शौचालय है, खुले में शौच मुक्त भारत का मतलब भारतवासी अब मल त्याग के लिए खेत, सड़क, पटरी आदि पर न जाकर, शौचालय का इस्तेमाल करने लगे हैं। लेकिन इसके बावजूद भी कई बार सवाल खड़े हुए हैं कि क्या सच में भारत का हर राज्य खुले में शौच मुक्त हो चुका है। सरकार के इस दावे को नकार नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के मुताबिक भारत अभी खुले में शौच मुक्त नहीं हुआ है। दरअसल, एनएसएसओ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत के 71.3 प्रतिशत घरों में ही शौचालय हैं। जब शौचालय ही 100 फीसदी घरों में नहीं बने तो भारत पूरी तरह खुले में शौच मुक्त कैसे हो गया?


गौरतलब है कि भारत सरकार 1986 से ही कमजोर तबके के लिए शौचालय बनवाने का कार्यक्रम चला रही है। तब इस योजना को ‘सेंट्रल रूरल सैनिटेशन प्रोग्राम’ के नाम से जाना जाता था। 1999 में इस कार्यक्रम का नाम बदलकर ‘टोटल सैनिटेशन कैम्पेन’ रख दिया गया। साल 2011 में इस कार्यक्रम को चलाने वाले विभाग ‘केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता विभाग’ को मंत्रालय का दर्जा दे दिया गया। 2012-13 तक स्वच्छता और शौचालय बनवाने को लेकर सरकार इतनी गंभीर हुई इसके नाम 14,000 करोड़ का बजट कर दिया। साथ ही कार्यक्रम का नाम बदलकर ‘निर्मल भारत अभियान’ कर दिया गया। सन् 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने इस पुराने वायदे को नया जामा पहनाते हुए कथित नया अभियान शुरू किया, जिसे आज ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के नाम से जाना जाता है। इस कार्यक्रम की शुरुआत के साथ ही खुले में मल त्याग को खत्म करने की तय तारीख 2 अक्टूबर 2019 में भारत सरकार ने देश को पूर्ण रूप से खुले में शौच मुक्त भारत घोषित कर दिया। लेकिन ‘कंट्रोलर एंड ऑडिटर जेनरल ऑफ इंडिया’ (सीएजी) के अनुसार 2014 से 2017 तक गुजरात को खुले में शौच मुक्त राज्य घोषित किए जाने के बाद भी लगभग 29 फीसदी घरों में शौचालय की सुविधा नहीं थी और कई शौचालयों का इस्तेमाल ही नहीं किया जाता था। वहीं 2019 में ही ‘राष्ट्रीय पतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय’ (एनएसएसओ) द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई ये एक ऐसा संगठन है जो भारत का सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण करता है। इसकी रिपोर्ट के अनुसार 2019 तक भारत के केवल 71 फीसदी घरों में ही शौचालय बने हैं। तो भारत को किस प्रकार पूर्ण रूप से खुले में शौच मुक्त देश घोषित किया गया है। इन रिपोर्टों के अनुसार यह योजना आज भी पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाई है। हालांकि राहत की बात यह है कि 2015-16 के मुकाबले खुले में शौच करने वालों के आंकड़ों में 2019-21 में सुधार हुआ है। देश में 2015-16 में जहां ग्रामीण क्षेत्रों में 54 फीसदी से ज्यादा लोग खुले में शौच करते थे तो वहीं शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 10.5 प्रतिशत था। शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा गांवों में खुले में शौच करने वाले लोगों में 25 फीसदी की कमी आई है।


एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश की 33 फीसदी से ज्यादा ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है। चिंता की बात यह है कि मध्यप्रदेश अभी भी उन शीर्ष राज्यों में शुमार है, जहां ज्यादा लोग शौचालय का प्रयोग नहीं करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में सबसे ज्यादा खुले में शौच करने वाले राज्यों की सूची में एमपी शीर्ष पांचवें नंबर है। रिपोर्ट के अनुसार खुले में शौच को लेकर ग्रामीण आबादी की सोच में बदलाव हुआ है।


2015-16 में जहां पूरे ग्रामीण भारत की 54 फीसदी आबादी खुले में शौच करती थी तो वहीं साल 2019-21 में 25 प्रतिशत की गिरावट के साथ ये आंकड़ा 25.9 प्रतिशत पर आ गया। यानी भारत की अभी भी 25.9 प्रतिशत ग्रामीण आबादी खुले में शौच कर रही है। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के दूसरे-2021 चरण के कार्यक्रम के तहत 31 दिसंबर तक खुले में शौच मुक्त गांवों की सूची में तेलंगाना पुनः देश में पहले स्थान पर है। इस राज्य के 14 हजार 200 गांवों में से 13 हजार 737 गांव ओडीएफ प्लस सूची में शामिल हैं जो 96.74 प्रतिशत है।


खुले में शौच मुक्त बनाने का कारण
भारत की एक बड़ी जनसंख्या ऐसी है जो मल त्याग करने के लिए शौचालयों का प्रयोग करने के अतिरिक्त बाहर जाती है। जिसके कारण गंदगी तो फैलती ही है साथ में कई बीमारियां भी जन्म लेती हैं। जिसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है। मानव मल से भरी मात्रा में वायरस एवं वैक्टीरिया आदि का जन्म होता है और ये हवा में फैल जाते हैं। मक्खियां जो उस मल पर बैठती हैं वही मक्खियां भोजन पर बैठ उसे दूषित कर देती हैं। जिनके कारण पोषक तत्वों की पाचन शक्ति कम हो जाती है और दस्त, टायफाइड, रोहा, फलेरिया, पीलिया, टिटनेस आदि जैसी बीमारियों का जन्म होता है। कई बार इसका खतरा जान पर भी होता है।


शौचालय निर्माण भी एक समस्या
एक ओर जहां शौचालयों के निर्माण को लेकर इतनी दिक्कत हो रही है, वहीं दूसरी ओर शौचालय निर्माण के कारण एक नई समस्या जन्म ले रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक सरकारी शौचालय दो प्रकार के बनाएं जा रहें है और दोनों ही प्रकार के शौचालय जल को दूषित कर रहें हैं। क्योंकि शौचालय इस तरह से बनाया जाता है की उसका सेप्टिक टैंक नजदीकी जल स्त्रोत के पास होता है और दूसरे प्रकार के शौचालय सीवर से जुड़े होते हैं जिससे गुजरते हुए मल नदी के पानी से मिल जाता है और पीने का पानी प्रदूषित कर देता है। उसी पानी को हम पीते हैं और हमारे अंदर बीमारियां घर बना लेती हैं।

प्रयोग में नही लाए जा रहे शौचालय
शौचालयों के इस्तेमाल न किए जाने का सबसे बड़ा कारण तो उसकी संख्याओं में कमी और शौचालयों का अधूरा निर्माण है। कई लोग ऐसे है जिनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है और उन्हे शौचालय निर्माण के लिए मुआवजा न मिलने के कारण वे शौचालय निर्माण का कार्य नहीं करवा पाएं। एक अनुमान के अनुसार पानी की कमी के कारण भी लोग शौचालयों का प्रयोग नहीं कर पा रहें हैं क्योंकि अधिकतर शौचालयों में फ्लश लगा हुआ है और जल स्तर घट जाने के कारण उनका प्रयोग नहीं किया जा रहा है। वैसे तो शिक्षा प्राप्त करने के बाद ग्रामीण जनता को भी शौचालयों का महत्व समझ में आने लगा है। लेकिन आज भी एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो शौचालयों में शौच करना पसंद नहीं करते और घर में शौचालय होने के बावजूद भी वे मल त्याग करने बाहर जाते हैं। सरकार द्वारा प्रयास किए जाने से पहले इन लोगों की आदत में परिर्वतन आना बहुत आवश्यक है। क्योंकि जब अगर आम जनता की सोच नही बदलती तो सरकार द्वारा किए जाने वाले सभी प्रयास असफल हैं।

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