- वृंदा
- यादव
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बढ़ते अपराधों पर लगाम लगाने के लिए बहुत जल्द यहां गुजरात का ‘पीएएसएए’ कानून लागू हो सकता है। उपराज्पाल विनय कुमार सक्सेना ने इसे तत्काल लागू करने की सिफारिश कर इस संबंध में गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा है। कानून विदों का कहना है कि अगर दिल्ली में ये कानून लागू हो जाता है तो पुलिस और भी ज्यादा ताकतवर हो जाएगी। अपराधियों के खिलाफ एक्शन लेने में उसके पास पहले से ज्यादा अधिकार होंगे। खासकर नशे और चोरी जैसे अपराधों पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा
- पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अपराध के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। जिससे सुरक्षा व्यवस्था संभाल रहे प्रशासन पर दबाव बढ़ता जा रहा था। इसे रोकने के लिए बहुत जल्द यहां गुजरात का ‘पीएएसएए’ कानून लागू करने की तैयारी जोरों पर है। इस दिशा में गत सप्ताह उपराज्पाल विनय कुमार सक्सेना ने इस कानून को राष्ट्रीय राजधानी में तत्काल लागू करने की सिफारिश कर इस संबंध में गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा है।
दरअसल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ‘द गुजरात प्रिवेंशन आॅफ एंटी-सोशल एक्टिविटीज एक्ट, 1985’ की चर्चा जोरों पर है। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर यह कानून क्या है? इसके तहत कितने कठोर निर्णय लिए जा सकते हैं? इसके लागू होने से दिल्ली में कोई बदलाव आएगा?
क्या है इस कानून के प्रावधान
इस एक्ट के मुताबिक, अपराधियों, अवैध शराब और नशीली वस्तुओं के विक्रेता, ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों और संपत्ति हड़पने वालों समेत तमाम असामाजिक गतिविधियों को अंजाम देने वालों को हिरासत में लिया जा सकता है। इस एक्ट का मुख्य मकसद सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आरोपी को एहतियातन हिरासत में रखना है।
कानून के लागू होने पर क्या होगा
कानूनविदों का कहना है कि अगर दिल्ली में यह कानून लागू हो जाता है तो पुलिस और भी ज्यादा ताकतवर हो जाएगी। अपराधियों के खिलाफ एक्शन लेने में उसके पास पहले से ज्यादा अधिकार होंगे। इस कानून की वजह से क्राइम पर बड़ी चोट होगी और नशे और चोरी जैसे अपराधों पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा। क्योंकि अगर कोई व्यक्ति सार्वजनिक सुरक्षा व्यवस्था को भंग करता है तो इस कानून के तहत उसे एहतियातन हिरासत में लेने का अधिकार पुलिस के पास होगा। जिसके तहत पुलिस उस व्यक्ति को एक हफ्ते तक हिरासत में रख सकेगी। हालांकि वर्तमान कानून के अनुसार पुलिस सुरक्षा की दृष्टि से गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को सिर्फ एक दिन के लिए ही हिरासत में ले सकती है, यानी 24 घंटे में पुलिस को व्यक्ति की हिरासत का कारण बताना होता है। लेकिन अगर गुजरात का प्रिवेंशन आॅफ एंटी-सोशल एक्टिविटीज एक्ट 1985 दिल्ली में भी लागू हो जाता है तो पुलिस के पास एक हफ्ता होगा और इन सात दिनों के भीतर पुलिस को यह स्पष्ट करना होगा कि उसने हिरासत में लिए गए शख्स को किस आधार पर गिरफ्तार किया है और इसमें कितनी सच्चाई है। इस कानून का एक अलग नियम यह भी है कि यदि कोई व्यक्ति जिसके खिलाफ हिरासत का आदेश दिया गया है वह फरार हो गया है या खुद को छुपा रहा है तो संबंधित प्राधिकारी को राज्य के भीतर उसकी संपत्ति को कुर्क करने या बेचने का अधिकार है। हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी के पास हिरासत के आदेश की तारीख से किसी बंदी को हिरासत के आधार के बारे में बताने के लिए 7 दिनों तक का समय होता है और यदि इनमें से कोई भी तथ्य ‘सार्वजनिक हित’ के खिलाफ है, तो उनका खुलासा नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार के पास बंदी की सुनवाई के लिए सलाहकार बोर्ड के समक्ष आदेश देने के लिए तीन सप्ताह तक का समय है, यदि वह अपना प्रतिनिधित्व करना चाहता है, भले ही कानूनी प्रतिनिधित्व के बिना, फिर सलाहकार बोर्ड के पास सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए हिरासत की तारीख से सात सप्ताह का समय होता है। बोर्ड की राय को छोड़कर पूरी रिपोर्ट गोपनीय रखी जाएगी। बोर्ड को अधिकतम एक वर्ष की अवधि के लिए हिरासत की पुष्टि करने का अधिकार है। यदि ऐसा निरोध आदेश रद्द कर दिया जाता है या समाप्त हो जाता है तो उसी व्यक्ति को फिर से हिरासत में लिया जा सकता है, बशर्ते कि ऐसे मामले में जहां ऐसे व्यक्ति के खिलाफ दिए गए पहले के निरोध आदेश की समाप्ति या रद्द होने के बाद कोई नया तथ्य सामने नहीं आया है, वह अधिकतम अवधि जिसके लिए ऐसा व्यक्ति बाद के निरोध आदेश के अनुसरण में हिरासत में लिया जा सकता है, किसी भी मामले में पिछले निरोध आदेश के तहत हिरासत की तारीख से बारह महीने की अवधि की समाप्ति से आगे नहीं बढ़ाया जाएगा।
साइबर अपराधों में लगाया जाता है ‘पीएएसएए’
साल 2020 के संशोधन विधेयक ने साइबर अपराधों को भी इसके दायरे में ला दिया, जिसका मतलब था कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत वर्णित अपराध करने वाले किसी भी व्यक्ति को ‘पीएएसएए’ के तहत हिरासत में लिया जा सकता है। इसके अलावा इसमें धन उधार देने के अपराध भी शामिल है, जिसमें धन उधार देने वालों द्वारा नियुक्त व्यक्ति शामिल है जो लोगों से धन इकट्ठा करने के लिए धमकी देते हैं या बल का प्रयोग करते हैं। इसमें अब यौन अपराधी भी शामिल हैं, जिसका मतलब भारतीय दंड संहिता के तहत परिभाषित यौन अपराध करने वाला कोई भी व्यक्ति हो सकता है। पीएएसएए के तहत आने वाले अपराध पहले से ही किसी न किसी कानून के तहत अपराध हैं, जिसका अर्थ है कि इन अपराधों के लिए पहले से ही दंड निर्धारित हैं, लेकिन पीएएसएए के व्यापक दायरे का मतलब यह होगा कि पुलिस को इन व्यापक अपराधों को करने के संदेह में किसी को भी व्यावहारिक रूप से हिरासत में लेने का अधिकार है। उचित प्रक्रिया के बिना।
इस विधेयक का कई राजनीतिक दल विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार असंतोष की आवाज को दबाने के लिए कानून का दुरुपयोग कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि कई लोग जो सरकार और उसकी नीतियों के खिलाफ आॅनलाइन अभियान चला रहे हैं, उन्हें इस अधिनियम के माध्यम से निशाना बनाया जाएगा।
दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने भेजा प्रस्ताव
दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने 27 जून, 2023 को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में गुजरात के इस कानून को लागू करने को केंद्र शासित प्रदेश (कानून) अधिनियम की धारा-2 के तहत अधिसूचना जारी करने के लिए यह प्रस्ताव उपराज्यपाल के पास अनुमोदित हेतु प्रस्तुत किया था। विभाग ने उपरोक्त कानून के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम 2021 के प्रविधानों के अनुरूप होने की जांच की। साथ ही ट्रांजेक्शन आॅफ बिजेनस रूल्स (1993) के प्रविधानों औरजीएनसीटीडी (संशोधन) अध्यादेश 2023 से संबंधित नियमों का भी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन में ध्यान रखा गया। इसके लिए तेलंगाना में लागू इसी तरह के कानून ‘द तेलंगाना प्रिवेंशन आॅफ डेंजरस एक्टिविटिज आॅफ बूट लेगर्स, प्रोपर्टी आफेंडर्स एक्ट 1986’ पर भी विचार किया गया, लेकिन गुजरात के कानून को ज्यादा बेहतर और उपयुक्त पाया गया।
दिल्ली पुलिस ने की थी इस कानून की मांग
राष्ट्रीय राजधानी में बेलगाम अपराध पर लगाम लगाने के लिए दिल्ली पुलिस ने इसी साल 14 फरवरी को एक पत्र लिखकर यह मांग की थी कि दिल्ली के लिए भी गुजरात अधिनियम के प्रावधानों की जांच की जाए।
क्या है ‘पीएएसएए’ 1985
गुजरात असामाजिक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1985 प्रशासन को सार्वजनिक सुरक्षा बनाए रखने के लिए, खतरनाक व्यक्तियों, नशीली दवाओं के तस्करों, अनैतिक तस्करी अपराधियों और संपत्ति हड़पने वालों को निवारक हिरासत के तहत लेने की अनुमति देता है।
प्रस्ताव को मार्च में मिली थी मंजूरी
इस साल मार्च की शुरुआत में, एलजी ने गृह विभाग के उस प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी थी, जिसमें कहा गया था कि कुछ संगीन मामलों में दिल्ली पुलिस को ‘द नेशनल सिक्योरिटी एक्ट’ 1980 को प्रभावी तरीके से लागू करना चाहिए।
चर्चा में रहा है ‘पीएएसएए’
गुजरात का ‘द प्रिवेंशन आॅफ एंटी-सोशल एक्टिविटीज एक्ट’ 1985 अधिनियम चर्चाओं का विषय रहा है। राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने इस कानून का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए गुजरात सरकार की कई बार आलोचना की है। कोर्ट की ओर से भी इस एक्ट को लेकर फटकार लगाई जा चुकी है। यह कानून दो साल पहले तब चर्चा में रहा था जब एक डाॅक्टर को इस कानून के तहत हिरासत में लिया गया था।
दरअसल, डाॅक्टर मितेश ठक्कर को पुलिस ने रेमेडिसविर इंजेक्शन कोरोना के मरीजों को दिए जाने वाला इंजेक्शन की बिक्री के संदेह में हिरासत में लिया था। 27 जुलाई 2021 को 106 दिन जेल में बिताने के बाद गुजरात हाई कोर्ट ने मितेश ठक्कर को रिहा करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने पीएएसएए के तहत उन्हें हिरासत में रखने पर रोक लगा दी थी। राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, राज्य ने इस कानून के तहत 2018 में 2 हजार 315 और 2019 में 3 हजार 308 नागरिकों को हिरासत में लिया था।
सरकार ने नई गाइडलाइंस की थी जारी
गुजरात हाई कोर्ट के निर्देशों पर बीते मई के महीने में राज्य सरकार ने असामाजिक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम के तहत हिरासत आदेश पारित करने को लेकर नई गाइडलाइंस जारी की। इसमें संबंधित अधिकारियों से केवल एक अपराध पर उचित सत्यापन और आधार के बिना इस कानून को लागू नहीं करने के लिए कहा गया था। इसके बाद 3 मई को गुजरात के गृह विभाग ने अधिकारियों के लिए निर्देश जारी किए थे जिसमें उन्हें तथ्यों के बारे में सतर्क रहने और यदि व्यक्ति की ओर से सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने की संभावना नहीं है, तो ‘पीएएसए’ लागू नहीं करने के लिए कहा गया था।