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तो क्या शिवसेना-भाजपा फिर होंगे साथ-साथ

राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं माना जाता है। 25 बरस तक एक-दूसरे का पूरक रही भाजपा-शिवसेना का रिश्ता 2019 विधानसभा चुनाव बाद टूट गया। शिवसेना को इस चुनाव में मात्र 63 सीटें मिली थी, जबकि सहयोगी दल भाजपा को 122 सीटों पर विजय मिली। शिवसेना ने भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए शर्त रख डाली कि चुनाव पूर्व तय हुए फाॅर्मूले अनुसार मुख्यमंत्री का पद दोनों दलों के बीच रोटेशनल रहेगा। पहले ढाई वर्ष भाजपा का सीएम होगा तो अगले ढाई वर्ष शिवसेना का।

भाजपा नेतृत्व इसके लिए राजी नहीं हुआ। सरकार बनाने को लेकर आ रहे गतिरोध चलते राज्य में 12 नवंबर 2019 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद जोड़-तोड़ और खरीद-फरोख्त का ‘खेला’ मुंबई में शुरू हो चला। एक तरफ एनसीपी नेता शरद पवार, कांगे्रस और शिवसेना संग मिलकर सरकार बनाने की कवायद में जुटे तो उनके भतीजे अजीत पवार ने भाजपा के साथ हाथ मिलाने की मुहिम शुरू कर डाली। यह वही अजीत पवार हैं जिन्हें भाजपा के नेता महाराष्ट्र का सबसे भ्रष्ट नेता कहते नहीं थकते थे। खेल जमकर खेला गया। 23 नवंबर को राष्ट्रपति शासन गुपचुप तरीके से समाप्त कर भाजपा ने अजीत पवार के साथ हाथ मिला राज्य में सरकार का गठन कर डाला। शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के लिए यह बड़ा सदमा था। राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार ने तत्काल ही अपने भतीजे अजीत पवार को पार्टी से बाहर कर दिया। शाम होने तक स्पष्ट हो गया कि राष्ट्रवादी पार्टी के विधायक अजीत पवार संग जाने वाले नहीं। भाजपा की जमकर किरकिरी हुई। मात्र तीन दिन बाद ही यह सरकार निपट गई और दो दिन बाद असंभव को संभव बनाते हुए शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे कांग्रेस- राष्ट्रवादी कांग्रेस के कंधों पर सवार हो राज्य के सीएम बन गए। धर्मनिरपेक्षता का दंभ भरने वाली कांग्रेस हमेशा ही शिवसेना को सांप्रदायिक पुकारती आई थी तो शिवसेना अपने जन्म से ही कांग्रेस की धुर विरोधी रही है। सत्तामोह में लेकिन दोनों ने सभी मतभेद- मनभेद भुला एक-दूसरे का हाथ थाम लिया। शरद पवार पहले से ही सत्ता संग रहने का गुर जानते थे इसलिए उनका इस गठबंधन में रहना किसी को चैंकाया नहीं। पिछले दिनों यकायक ही इस गठबंधन सरकार पर खतरे के बादल मंडराने तब लगे जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की आपाधापी के बीच शरद पवार और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की गुपचुप मुलाकात का राज फाश हुआ।

सत्ता गलियारों में नाना प्रकार की चर्चाओं ने जन्म ले लिया। अनुमान लगाया जा रहा है कि शरद पवार शिवसेना सरकार से पल्ला झाड़ भाजपा के साथ हो सकते हैं ताकि उनकी पार्टी के नेता अनिल देशमुख पर मुंबई के पूर्व पुलिस कमिशनर परमवीर सिंह द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोंपों की आंच खुद शरद पवार तक न आ पहुंचे। अब इससे भी ज्यादा चैंकाने वाली खबरें दिल्ली दरबार से होकर मुंबई के ‘मातोश्री’ तक में कही-सुनी जाने लगी हैं। बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत और उद्धव ठाकरे की इन दिनों खासी छन रही है। शिवसेना और संघ के रिश्ते हमेशा से ही प्रगाढ़ रहे हैं। खबर का सार यह है कि पांच राज्यों के चुनाव नतीजों बाद भाजपा और शिवसेना एक बार फिर से एक होने पर विचार कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे के पास ऐसा करने का बहाना भी मजबूत है। वे राष्ट्रवादी कांग्रेस के मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपेां को आगे कर इस बेमेल गठबंधन को तोड़ हिंदुत्व खेमे में वापसी बड़े आराम से कर सकते हैं। शिवसेना सूत्रों की मानें तो पेंच सीएम की कुर्सी को लेकर फंसा हुआ है। इन सूत्रों का दावा है कि 2 मई यानी पांच राज्यों के चुनाव नतीजों बाद इस बाबत आखिरी फैसला ले लिया जाएगा। खबर यह भी गर्म है कि स्वयं संघ प्रमुख इस मुहिम को लीड कर रहे हैं। पिछले दिनों उनकी उद्धव ठाकरे संग इस मुद्दे पर बातचीत के बाद भाजपा नेता एवं पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी नागपुर जाकर भागवत से मंत्रणा की है। जानकारों की मानें तो मई मध्य तक महाविकास अघाड़ी सरकार के स्थान पर भाजपा- शिवसेना सरकार महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होने जा रही है।

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